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भजन: अमरपुर ले चलो सजना

अमरपुर ले चलो सजना, अमरपुर ले चलो सजना।।

अमरपुर की साँकर गलियाँ, अड़बड़ है चलना।।

गुरु ज्ञान शब्द की ठोकर, उघर गये झपना।।

वहीं अमरपुर लागि बज़रिया, सौदा है करना।।

अमरपुर संत बसत है वहीं, दर्शन है लहना।।

संत समाज जहाँ बैठी, वहीं पुरुष अपना।।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, भवसागर तरना।।

— गुरु कबीर साहब

सरल व्याख्या:

ओ मेरे प्यारे मुझे उस अमर भूमि पर ले चलो।

इसकी गलियाँ संकीर्ण हैं इसीलिए वहाँ पर चलना कठिन है।

जिन्हें गुरुज्ञान अर्थात् आत्मज्ञान प्राप्त हुआ है, उनकी अज्ञान रुपी, सदियों की नींद दूर हो चुकी है।

मुझे अमरपुर का बाज़ार दिखाई दे रहा है, वहाँ जाकर मुझे सौदा करना है (अर्थात सुख दुःख के बदले में आनंद अथवा सुकून खरीदना है)।

अमरपुर में सारे संत हैं, मुझे उनके साथ रहना है।

जहाँ पर संत जन रहते हैं, वहीं मेरा प्रेमी बसता है।

और कबीर साहब कहते हैं कि वहीं जाकर ही इस सांसारिक जीवन रुपी भवसागर से मुक्ति संभव है।