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संत कबीर जी के दोहे — 501 to 550

सतगुरु मेरा शूरमा, तकि तकि मारै तीर।
लागे पन भागे नही, ऐसा दास कबीर।।५०१।।

अर्थ: सतगुरु एक महान योद्धा हैं जो ज्ञान की बाणों को छोड़ते हैं। वे किसी भी प्रकार की हानि से बचाते हैं और उनकी रक्षा कभी विफल नहीं होती।

Meaning: The True Guru is a great warrior who shoots arrows of wisdom. They protect from harm and their protection is unfailing.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास ने सतगुरु की महानता को दर्शाया है। सतगुरु एक योद्धा की तरह होते हैं जो ज्ञान की बाण छोड़ते हैं और हमें हर प्रकार की हानि से बचाते हैं। उनकी रक्षा हमेशा सफल होती है।


सतगुरु महिमा अनंत है, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघारिया, अनंत दिखावन हार।।५०२।।

अर्थ: सतगुरु की महिमा अनंत है और उनकी कृपा भी अपार है। उनकी दृष्टि अनंत सत्य प्रकट करती है और उनकी अवतार की शक्ति भी असीम है।

Meaning: The glory of the True Guru is infinite, and their benevolence is boundless. The eyes reveal infinite truths and their manifestations are endless.

व्याख्या: यह दोहा सतगुरु की अनंत महिमा और उनकी कृपा को दर्शाता है। सतगुरु की दृष्टि और उनकी उपस्थिति अनंत सत्य और ज्ञान को प्रकट करती है, जिससे व्यक्ति को असीम लाभ और अनुभव प्राप्त होते हैं।


सतगुरु शरण न आवहीं, फिर‍ि फिरि होय अकाज।
जीव खोय सब जायेंगे, काल तिहूं पुर राज।।५०३।।

अर्थ: सतगुरु की शरण में आए बिना, व्यक्ति बार-बार असफल होता है। आत्मा खो जाती है और सभी को समय के शासन का सामना करना पड़ता है।

Meaning: Without seeking refuge in the True Guru, one repeatedly fails in their endeavors. The soul will be lost and everyone will face the reign of time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास ने सतगुरु की शरण लेने की महत्वपूर्णता को बताया है। अगर व्यक्ति सतगुरु की शरण में नहीं आता, तो उसे बार-बार असफलता का सामना करना पड़ता है और आत्मा खो जाती है। समय का शासन सबको प्रभावित करता है।


सतगुरु सम को है सगा, साधु सम को दात।
हरि समान को है हितु, हरिजन सम को जात।।५०४।।

अर्थ: सतगुरु सभी के लिए एक रिश्तेदार की तरह हैं, साधुओं के लिए एक दाता हैं। वे भगवान के समान प्रेम में हैं और सभी भक्तों के लिए समान हैं।

Meaning: The True Guru is like a relative to all, a benefactor to saints. He is like the Lord in his love, and equal to all the devotees.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास ने सतगुरु की विशिष्टता और उनके स्नेह को बताया है। सतगुरु सभी के लिए एक रिश्तेदार की तरह होते हैं और साधुओं के लिए एक दाता की भूमिका निभाते हैं। वे भगवान की तरह सभी के प्रति समान प्रेम और स्नेह दिखाते हैं, और हर भक्त के लिए समान रूप से देखभाल करते हैं।


कबीर समुझा कहत है, पानी थाह बताय।
ताकूं सतगुरु को करे, जो औघट डूबे जाय।।५०५।।

अर्थ: कबीर समझाते हैं कि व्यक्ति को सत्य गुरु की खोज करनी चाहिए, जो पानी की गहराई बता सके। गुरु के बिना, सक्षम तैराक भी डूब जाएगा।

Meaning: Kabir explains that one should seek the true Guru who can reveal the depth of the water, as without the Guru, even the skilled swimmer will drown.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह स्पष्ट करते हैं कि सत्य गुरु की खोज महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे जीवन की गहराई और सत्य को समझाने में मदद करते हैं। गुरु के बिना, व्यक्ति चाहे कितना भी सक्षम क्यों न हो, वह जीवन की जटिलताओं और समस्याओं में डूब सकता है।


सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्‍ड।
तीन लोक न पाइये, अरु इक-इस ब्रह्मण्‍ड।।५०६।।

अर्थ: सतगुरु की तुलना किसी से नहीं की जा सकती, वे सात दीपों के समान हैं। तीन लोकों और इस ब्रह्मांड में भी गुरु को नहीं पाया जा सकता।

Meaning: There is no comparison to the true Guru, who is like seven lamps in nine realms. One cannot find the Guru even in the three worlds or this entire universe.

व्याख्या: यह दोहा गुरु की महत्वता को दर्शाता है। कबीर बताते हैं कि सतगुरु की तुलना किसी भी अन्य चीज से नहीं की जा सकती, क्योंकि वे सभी लोकों और ब्रह्मांड में अनमोल और अद्वितीय होते हैं।


सतगुरु सांचा शूरमा, नख शिख मारा पूर।
बाहिर घाव न दीखई, अन्‍तर चकनाचूर।।५०७।।

अर्थ: सतगुरु एक सच्चे योद्धा होते हैं, जिनका पूरा अस्तित्व शक्ति से भरा होता है। बाहरी तौर पर घाव न दिखें, पर आंतरिक रूप से वे टूटा हुआ महसूस कर सकते हैं।

Meaning: The true Guru is a real hero, whose entire being is filled with strength. While there may be no visible wounds, internally they are shattered.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सतगुरु के भीतर की शक्ति और उनकी संघर्ष की वास्तविकता को उजागर करते हैं। सतगुरु बाहरी दुनिया के लिए भले ही स्थिर और मजबूत दिखते हों, लेकिन आंतरिक रूप से उनकी चुनौतियाँ और संघर्ष हो सकते हैं।


केते पढि गुनि पचि मुए, योग यज्ञ तप लाय।
बिन सतगुरु पावै नहीं, कोटिन करे उपय।।५०८।।

अर्थ: कई लोगों ने अध्ययन किया, योग, यज्ञ, और तपस्या की, लेकिन सतगुरु के बिना, इन सभी प्रयासों का कोई मूल्य नहीं है।

Meaning: Many have studied and practiced various disciplines, including yoga, rituals, and penance. However, without the true Guru, none of these efforts bear fruit.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह स्पष्ट करते हैं कि चाहे कोई भी कितनी भी धार्मिक क्रियाएँ करे, जैसे योग, यज्ञ, या तपस्या, लेकिन सत्य गुरु के बिना, इनका वास्तविक लाभ प्राप्त नहीं होता। गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन इन प्रयासों को पूर्णता और अर्थ प्रदान करते हैं।


सतगुरु तो सतभाव है, जो अस भेद बताय।
धन्‍य शीष धन भाग तिहिं, जो ऐसी सुधि पाया।।५०९।।

अर्थ: सतगुरु सत्य का सार हैं, जो इस वास्तविकता के रहस्यों को प्रकट करते हैं। वे धन्य हैं जिन्होंने इस प्रकार का ज्ञान और पहचान प्राप्त की है।

Meaning: The true Guru is the essence of truth, revealing the secrets of this reality. Blessed are those who attain such knowledge and recognition.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सतगुरु के सत्यत्व को दर्शाते हैं, जो जीवन के रहस्यों को उजागर करते हैं। ऐसे लोग धन्य हैं जिन्होंने इस सच्चाई को पहचान लिया है और सतगुरु के मार्गदर्शन से लाभान्वित हुए हैं।


सतगुरु हमसों रीझि कै, कह्यौ एक परसंग।
बरषै बादल प्रेम को, भींजि गयो सब अंग।।५१०।।

अर्थ: सतगुरु, जो हमसे प्रसन्न थे, ने एक कथा सुनाई। जैसे प्रेम की वर्षा करने वाला बादल होता है, वैसे ही शरीर के हर अंग को उस प्रेम में भिगो दिया।

Meaning: The true Guru, who was pleased with us, recounted a tale. Like the raincloud showering love, every part of the body got drenched in it.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सतगुरु की प्रेममयता को वर्णित करते हैं, जो एक कथा के माध्यम से प्रेम की वर्षा करते हैं। यह प्रेम हर अंग में समा जाता है, जैसे बारिश से हर जगह पानी फैल जाता है।


पाछे लागे जाय था, लोक वेद के साथ।
पैडे में सतगुरु मिले, दीपक दीन्‍हा हाथ।।५११।।

अर्थ: लोग वेदों का अनुसरण करते हैं, लेकिन सतगुरु की उपस्थिति में उन्हें ज्ञान का दीपक हाथ में मिलता है।

Meaning: One may follow the worldly scriptures, but in the presence of the true Guru, they find the lamp of enlightenment in their hands.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दर्शाते हैं कि भले ही लोग वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अनुसरण करते हैं, वास्तविक ज्ञान और समझ की प्राप्ति केवल सतगुरु की उपस्थिति में संभव है। सतगुरु के मार्गदर्शन से ही सही ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो जीवन को सही दिशा में ले जाता है।


जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव।
कहैं कबीर सुन साधवा, करु सतगुरु की सेव।।५१२।।

अर्थ: ब्रह्मा, देवता, ऋषि-मुनि और सभी देवता भी अपनी खोज में थक जाते हैं। कबीर कहते हैं, सुनो साधक, सत्य गुरु की सेवा करो।

Meaning: Even Brahma, the gods, sages, and deities become weary in their search. Kabir says, listen, O seekers, serve the true Guru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर बताते हैं कि ब्रह्मा, देवता, और अन्य सभी धार्मिक व्यक्ति भी सत्य की खोज में थक जाते हैं। यह दिखाता है कि सच्चे गुरु की सेवा और उनके मार्गदर्शन के बिना, कोई भी पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता। कबीर साधकों को प्रेरित करते हैं कि वे सतगुरु की सेवा करें, जो वास्तविक ज्ञान और समझ प्रदान कर सकते हैं।


सतगुरु मिले जु सब मिले, न तो मिला न कोय।
माता-पिता सुत बांधवा, ये तो घर घर होय।।५१३।।

अर्थ: जब सच्चा गुरु मिल जाता है, तो सब कुछ मिल जाता है; और अगर गुरु नहीं मिला, तो कुछ नहीं मिला। माता-पिता, संतान, और रिश्तेदार तो हर घर में होते हैं, लेकिन सच्चा गुरु केवल भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है।

Meaning: When you find a true Guru, you find everything; without a Guru, you find nothing. Parents, children, and relatives are found in every household.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी गुरु की महिमा का वर्णन कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यदि सच्चा गुरु मिल जाए, तो जीवन में सब कुछ प्राप्त हो जाता है, क्योंकि गुरु हमें जीवन की सच्चाई से अवगत कराता है और मोक्ष का मार्ग दिखाता है। दूसरी ओर, अगर गुरु नहीं मिला, तो जीवन अधूरा रह जाता है। माता-पिता, संतान, और रिश्तेदार तो हर किसी के पास होते हैं, लेकिन सच्चा गुरु केवल भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है।


गुरवा तो सस्‍ता भया, पैसा केर पचास।
राम नाम धन बेचि के, शिष्‍य करन की आस।।५१४।।

अर्थ: गुरु तो सस्ता हो गया है, खुद की कीमत केवल पचास रुपये में मानता है। राम नाम के धन को बेचकर वह शिष्यों को बनाने की उम्मीद करता है।

Meaning: The Guru has become cheap, valuing himself at just fifty rupees. Selling the wealth of God's name, he hopes to make disciples.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी उन नकली गुरुओं की आलोचना कर रहे हैं जो धन और शिष्य बनाने की लालसा में सच्चे ज्ञान और भक्ति का व्यापार करते हैं। ऐसे गुरु अपनी सच्ची कीमत नहीं समझते और राम के नाम को भी पैसों में तौलते हैं। यह दोहा उन लोगों को चेतावनी देता है जो सच्चे गुरु की पहचान किए बिना ही उनके पीछे चल पड़ते हैं।


गुरु नाम है गम्‍य का, शीष सीख ले सोय।
बिनु पद बिनु मरजाद नर, गुरु शीष नहिं कोय।।५१५।।

अर्थ: गुरु का नाम ही अंतिम लक्ष्य है; केवल वही व्यक्ति उसे प्राप्त कर सकता है, जो शीश झुकाकर सीखता है। बिना मार्ग और बिना मर्यादा के, कोई व्यक्ति सच्चा शिष्य नहीं बन सकता।

Meaning: The Guru's name is the destination; only those who learn by bowing down can reach it. Without a path or dignity, a person cannot be a true disciple.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी गुरु के महत्व और सच्चे शिष्य की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं। वह कहते हैं कि गुरु का नाम और मार्ग ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और इसे प्राप्त करने के लिए शिष्य को अपने अहंकार को त्याग कर सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। बिना विनम्रता और सम्मान के, कोई भी व्यक्ति सच्चा शिष्य नहीं बन सकता। गुरु के प्रति समर्पण और मार्गदर्शन के बिना, जीवन का सच्चा अर्थ नहीं समझा जा सकता।


गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्‍हा नांहि।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खांहि।।५१६।।

अर्थ: यदि आप शरीर को ही अपना गुरु मान लेते हैं और सच्चे गुरु को नहीं पहचानते, तो आप बार-बार भवसागर के जाल में फंसते रहेंगे।

Meaning: If you consider the body as your Guru and do not recognize the true Guru, you will keep drowning again and again in the ocean of existence.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी शरीर को गुरु मानने की भूल की ओर संकेत कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति केवल शरीर और सांसारिकता को ही अपना गुरु मान लेता है और सच्चे गुरु का ज्ञान नहीं प्राप्त करता, तो वह बार-बार इस संसार रूपी समुद्र में डूबता रहेगा। सच्चे गुरु का मार्गदर्शन ही व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जा सकता है, अन्यथा वह भ्रम और अज्ञान के जाल में फंसा रहेगा।


गुरु बिचारा क्‍या करै, शब्‍द न लागै अंग।
कहै कबीर मैली गजी, कैसे लागै रंग।।५१७।।

अर्थ: गरीब गुरु क्या कर सकता है, अगर उसके शब्द असर नहीं करते? कबीर कहते हैं, मैली गजी पर रंग कैसे चढ़ सकता है?

Meaning: What can the poor Guru do if his words do not take root? Kabir says, how can a dirty cloth take color?

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी शिष्य की अयोग्यता के बारे में बता रहे हैं। वह कहते हैं कि अगर शिष्य में सीखने की योग्यता और विनम्रता नहीं है, तो गुरु कितना भी प्रयास कर ले, उसके शब्द और शिक्षा असर नहीं करेगी। जैसे मैली गजी पर रंग नहीं चढ़ता, वैसे ही अयोग्य शिष्य पर गुरु की शिक्षा का असर नहीं होता। शिष्य को शुद्ध मन और विनम्रता के साथ गुरु के ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए।


गु अंधियारी जानिये, रु कहिये परकास।
मिटे अज्ञान तम ज्ञान ते, गुरु नाम है तास।।५१८।।

अर्थ: अज्ञान अंधकार है, ज्ञान प्रकाश है। अज्ञान को मिटाने के लिए गुरु का नाम आवश्यक है।

Meaning: Ignorance is darkness, knowledge is light. The removal of ignorance through knowledge is achieved through the name of the Guru.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी ज्ञान और अज्ञान के बीच के अंतर को समझा रहे हैं। वह कहते हैं कि अज्ञान अंधकार के समान है, जबकि ज्ञान प्रकाश के समान है। गुरु का नाम और उनकी शिक्षा ही हमें अज्ञान के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जा सकती है। इस प्रकार गुरु जीवन में प्रकाश का स्त्रोत हैं और अज्ञान को मिटाने वाले हैं।


कबीर बेड़ा सार का, ऊपर लादा सार।
पापी का पापी गुरु, यो बूड़ा संसार।।५१९।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, भूसे की नाव पर अधिक भूसा लादने से वह नाव डूब जाएगी। पापी गुरु पापी संसार को डूबने की ओर ले जाएगा।

Meaning: Kabir says, a boat made of straw, laden with more straw, will sink. A sinful Guru will lead the sinful world to its downfall.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी ने नकली और पापी गुरुओं की आलोचना की है। वे कहते हैं कि जैसे भूसे से बनी नाव पर और भूसा लादने से वह नाव डूब जाती है, वैसे ही पापी गुरु अपने अनुयायियों और इस संसार को विनाश की ओर ले जाता है। यह दोहा हमें सच्चे गुरु की पहचान करने की शिक्षा देता है ताकि हम ऐसे गुरुओं के प्रभाव से बच सकें।


जानीता बूझा नहीं, बूझि किया नहिं गौन।
अंधे को अंधा मिले, राह बताये कौन।।५२०।।

अर्थ: जानकारी होने के बाद भी समझ न आना, और समझ कर भी अभ्यास न करना व्यर्थ है। जब अंधा अंधे का मार्गदर्शन करता है, तो कौन रास्ता दिखा सकता है?

Meaning: Knowing without understanding, and understanding without practice is futile. When the blind lead the blind, who can show the way?

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी ज्ञान और समझ की महत्ता पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति केवल जानकारी प्राप्त कर लेता है, लेकिन उसे समझ नहीं पाता या समझ कर भी उसका पालन नहीं करता, तो वह ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि जब अज्ञानी व्यक्ति अज्ञानी को मार्ग दिखाने का प्रयास करता है, तो दोनों ही सही मार्ग नहीं पा सकते। इसलिए, सच्चे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है, जो सही दिशा दिखा सके।


भेदी लीया साथ करि, दीन्‍हा वस्‍तु लखाय।
कोटि जनम का पंथ था, पल में पहुंचा जाय।।५२१।।

अर्थ: जो सत्य के मार्ग पर चला, सब वस्तुओं में दिव्य दृष्टि प्राप्त करता है। जो मार्ग अनगिनत जन्मों में तय होता है, वह पल में पूरा हो सकता है।

Meaning: One who has taken the path of truth, sees the divine in all things. The path that took countless lifetimes to traverse can be covered in a moment.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सत्य के मार्ग पर चलने के महत्व को बताया है। उन्होंने कहा कि जिस मार्ग को तय करने में अनगिनत जन्म लग जाते हैं, वह मार्ग अगर सत्य पर आधारित हो, तो उसे एक पल में पार किया जा सकता है। यह दोहा यह भी दिखाता है कि सच्चे मार्ग पर चलकर हम सभी वस्तुओं में दिव्यता देख सकते हैं।


गुरु लोभी शिष लालची, दोनों खेले दांव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़‍ि पाथर की नांव।।५२२।।

अर्थ: लालची गुरु और लालची शिष्य दोनों ही छल-कपट खेलते हैं। दोनों ही वृद्ध और बीमार हैं, पत्थर की नाव में सवार हैं।

Meaning: The greedy guru and the avaricious disciple both play tricks. Both are old and decrepit, riding a boat made of stone.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में गुरु और शिष्य की लालच पर कटाक्ष किया है। वे कहते हैं कि जब गुरु और शिष्य दोनों ही लालच से भरे हुए होते हैं, तो वे केवल छल-कपट के खेल में लिप्त रहते हैं और उनकी स्थिति अत्यंत खराब होती है। यह दोहा यह भी बताता है कि दोनों की यात्रा कठिन और निराधार है।


सो गुरु निसदिन बन्दिये, जासों पाया राम।
नाम बिना घट अंध है, ज्‍यो दीपक बिन धाम।।५२३।।

अर्थ: वह गुरु हमेशा पूजा करने योग्य है, जिससे राम की प्राप्ति होती है। नाम के बिना मन अंधा है, जैसे दीपक बिना प्रज्वलित है।

Meaning: That guru is always to be revered, from whom one attains Ram. Without the name, the mind is blind, like a lamp without a flame.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सच्चे गुरु की महिमा को उजागर किया है। उन्होंने कहा है कि वह गुरु सच्चे श्रद्धा के योग्य है, जो हमें राम की प्राप्ति कराता है। नाम की महत्वपूर्णता को बताते हुए कबीर ने कहा कि बिना नाम के मन अंधा होता है, जैसे बिना दीपक के अंधेरा होता है।


जा गुरु को तो गम नहीं, पाहन दिया बताय।
शिष शोधे बिन सेइया, पार न पहुंचा जाय।।५२४।।

अर्थ: जो गुरु उदासीन है और पत्थर को मार्गदर्शन के रूप में देता है। शिष्य बिना नाव के खोज करता है, वह नदी पार नहीं कर सकता।

Meaning: The guru who is indifferent and gives stone as guidance. The disciple searches without a boat, cannot cross the river.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में ऐसे गुरु की आलोचना की है जो उदासीन होता है और केवल बेमतलब की बातें बताता है। जब शिष्य बिना उचित मार्गदर्शन के प्रयास करता है, तो उसे सफलता नहीं मिलती। यह दोहा यह बताता है कि सच्चे गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है ताकि शिष्य जीवन की कठिनाइयों को पार कर सके।


झूठे गुरु के पक्ष को, तजज न कीजै बार।
द्वार न पावै शब्‍द का, भटके बारम्‍बार।।५२५।।

अर्थ: झूठे गुरु का समर्थन बार-बार न करें। जो बार-बार भटकता है, उसे सही ज्ञान का द्वार नहीं मिलता।

Meaning: Do not support the false guru repeatedly. One who wanders repeatedly does not find the door of true knowledge.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में झूठे गुरु के समर्थन से दूर रहने की सलाह दी है। बार-बार भटकने से कोई भी व्यक्ति सही ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। यह दोहा हमें सचेत करता है कि झूठे मार्गदर्शकों से दूर रहना चाहिए और सही मार्ग की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


जा गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रांति न जिनकी जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्‍यागत देर न लाय।।५२६।।

अर्थ: यदि गुरु भ्रम और संदेह को दूर नहीं करता है, तो उसे झूठा मानिए और उसे त्यागने में देरी न करें।

Meaning: If the guru does not remove doubts and confusions, Consider that guru false, and do not delay in renouncing them.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने उन गुरु की आलोचना की है जो भ्रम और संदेह को दूर नहीं कर पाते हैं। ऐसे गुरु को झूठा मानना चाहिए और उसे त्याग देने में कोई विलंब नहीं करना चाहिए। यह दोहा यह दर्शाता है कि सच्चा गुरु वह है जो शिष्य की समस्याओं को हल कर सके।


सांचे गुरु के पक्ष में, मन को दे ठहराय।
चंचल से निश्‍चल भया, नहिं आवै नहिं जाय।।५२७।।

अर्थ: सच्चे गुरु की उपस्थिति में, चंचल मन को शांत करें। जब मन स्थिर हो जाता है, तो न आना और न जाना होता है।

Meaning: In the presence of a true guru, calm the restless mind. When made still, it neither comes nor goes.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में सच्चे गुरु की उपस्थिति में मन को शांत करने का महत्व बताया है। जब मन स्थिर हो जाता है, तो वह स्थिरता ही शांति का कारण बनती है। यह दोहा यह दर्शाता है कि सच्चा गुरु हमें आंतरिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।


जाका गुरु है आंधरा, चेला खरा निरंध।
अन्‍धे को अन्‍ध मिला, पड़ा काल के फन्‍दा।।५२८।।

अर्थ: जो गुरु अंधा है और शिष्य सच्चा है, अंधा अंधे को मार्गदर्शन करता है, और काल के जाल में फंस जाता है।

Meaning: The guru who is blind, and the disciple who is truly sincere. The blind leads the blind, falling into the trap of time.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में अंधे गुरु और सच्चे शिष्य की स्थिति का वर्णन किया है। जब गुरु खुद अंधा होता है, तो वह शिष्य को सही मार्गदर्शन नहीं कर सकता और दोनों ही काल के जाल में फंस जाते हैं। यह दोहा यह चेतावनी देता है कि अंधे मार्गदर्शक के पीछे चलना खतरनाक हो सकता है।


पूरा सतगुरु न मिला, सुनी अधूरी सीख।
स्‍वांग यती का पहिन के, घर-घर मांगी भीख।।५२९।।

अर्थ: पूर्ण सत्य गुरु के बिना, अधूरी शिक्षा सुनते हैं। संत की भेष में, घर-घर भिक्षा मांगते हैं।

Meaning: Without finding a complete true guru, one hears incomplete teachings. Wearing the disguise of a monk, begs for alms from door to door.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पूर्ण और सच्चे गुरु की महत्ता को समझाते हैं। उन्होंने कहा है कि बिना सच्चे गुरु के, व्यक्ति अधूरी और अधकचरी शिक्षा ही सुनता है। इस अधूरी शिक्षा के कारण, कुछ लोग यति या साधू का भेष धारण कर, दर-दर भिक्षा मांगते हैं, जो वास्तविक ज्ञान या साधना का प्रतीक नहीं है। यह दोहा इस बात को उजागर करता है कि केवल सच्चे गुरु से ही पूर्ण और सही शिक्षा प्राप्त की जा सकती है।


बंधे को बंधा मिला, छूटै कौन उपाय।
कर सेवा निरबंध की, पल में लेत छुड़ाय।।५३०।।

अर्थ: बंधन में बंधा हुआ व्यक्ति बंधन ही पाता है, मुक्ति का कोई उपाय नहीं है। निरबन्ध की सेवा करो, पल में मुक्ति मिल जाएगी।

Meaning: The bound one finds bondage, who has the means to escape? Serve the unbound, and in a moment, you will be freed.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताना चाहते हैं कि जो व्यक्ति बंधन में है, उसे बंधन ही मिलेगा और मुक्ति का कोई साधन नहीं है। इस बंधन से मुक्ति पाने के लिए निरबन्ध (निर्भरता रहित) की सेवा करनी चाहिए, जिससे पल भर में बंधन से मुक्ति मिल जाएगी।


गुरु कीजै जानि के, पानी पीजै छानि।
बिना बिचारे गुरु करे, परै चौरासी खानि।।५३१।।

अर्थ: गुरु को जानकर ही पानी पियो और छानकर पियो। बिना सोचे-समझे गुरु कुछ करते हैं, जिससे चौरासी योनियों का बंधन होता है।

Meaning: Know the guru and drink filtered water. Without consideration, the guru acts, leading to eighty-four reincarnations.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी गुरु के महत्व को समझाते हैं। अगर गुरु को जानकर ही अमृत जैसे ज्ञान की प्राप्ति होती है, तो गुरु का अनुकरण बिना सोचे-समझे करना कई योनियों में बंधन का कारण बनता है।


गुरु तो ऐसा चाहिए, शिष सो कछु न लेय।
शिष तो ऐसा चाहिए, गुरु को सब कुछ देय।।५३२।।

अर्थ: गुरु ऐसा होना चाहिए जो शिष्य से कुछ भी न ले। शिष्य ऐसा होना चाहिए जो गुरु को सब कुछ दे दे।

Meaning: The guru should be such that he takes nothing from the disciple. The disciple should be such that he gives everything to the guru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी आदर्श गुरु और शिष्य के गुणों को बताते हैं। एक सच्चा गुरु वह है जो शिष्य से कुछ नहीं लेता और एक सच्चा शिष्य वह है जो गुरु को सब कुछ अर्पित करता है।


गुरु भया नहिं शिष भया, हिरदे कपट न जाय।
आलो पालो दुख सहै, चढ़‍ि पाथर की नाव।।५३३।।

अर्थ: न गुरु गुरु बना है, न शिष्य शिष्य बना है। दिल में कपट रह जाता है और पत्थर की नाव दुखों को पार नहीं कर सकती।

Meaning: Neither has the guru become a guru, nor has the disciple become a disciple. The heart remains deceitful, and the boat of stone does not rise above pain.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दिखाते हैं कि न तो गुरु वास्तव में गुरु बनता है और न ही शिष्य शिष्य बन पाता है जब दिल में कपट और स्वार्थ होता है। ऐसे में पत्थर की नाव की तरह मुश्किलों को पार करना असंभव हो जाता है।


जिन ढूंढा तिन पाइयां, गहिरै पानी पैठ।
मैं बंपरा बडने डरा, रहा किनारे बैठ।।५३४।।

अर्थ: जिन्होंने गहराई में जाकर ढूंढा, उन्हें सच्चाई मिल गई। मैं गहरे पानी से डरकर किनारे पर ही बैठा रहा।

Meaning: Those who sought found it, diving deep into the water. I feared the depth of the water, remained sitting on the shore.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बताते हैं कि जो लोग गहरे पानी में उतरकर सत्य को खोजते हैं, उन्हें सफलता मिलती है। मैं गहरे पानी के डर से किनारे पर ही बैठा रहा, इसलिए सच्चाई नहीं पा सका।


ऐसा कोई ना मिला, हम को दे उपदेश।
भवसागर में डूबते, कर गहि काढे केश।।५३५।।

अर्थ: मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो मुझे उपदेश दे सके। भवसागर में डूबते हुए, मैंने अपने बाल पकड़ लिए।

Meaning: I did not find anyone to guide me. Drowning in the ocean of existence, I grasped my hair.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी अपने अनुभव को व्यक्त करते हैं कि उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो उन्हें मार्गदर्शन दे सके। जब वे अस्तित्व के महासागर में डूब रहे थे, तब उन्होंने अपने बाल पकड़कर बचने की कोशिश की।


जैसा ढूंढत में फिरुं, तैसा मिला न कोय।
ततवेता तिरंगुन रहित, निरगुन सों रत होय।।५३६।।

अर्थ: मैंने जो ढूंढा, वह मुझे नहीं मिला। सच्चा साधक निर्गुण में रत रहता है, जिसमें कोई गुण नहीं होते।

Meaning: What I sought, I did not find. The seeker remains absorbed in the formless, without traits.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह व्यक्त करते हैं कि जो वे ढूंढ रहे थे, वह उन्हें नहीं मिला। एक सच्चा साधक निरगुण और गुण रहित तत्व में ध्यान लगाता है, जो किसी भी गुण से परे होता है।


शिष्‍य पूजै गुरु आपना, गुरु पूजे सब साध।
कहैं कबीर गुरु शीष को, मत है अगम अगाध।।५३७।।

अर्थ: शिष्य अपने गुरु की पूजा करता है, और गुरु सभी साधुओं द्वारा पूजा जाता है। कबीर कहते हैं कि गुरु अपार और अज्ञेय हैं।

Meaning: The disciple worships his own guru, and the guru is worshipped by all saints. Says Kabir, the guru is beyond comprehension and profound.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी गुरु की महानता को बताते हैं। शिष्य अपने गुरु की पूजा करता है, जबकि गुरु सभी साधुओं द्वारा पूजा जाता है। गुरु की वास्तविकता अज्ञेय और गहन होती है, जिसे पूरी तरह से समझना मुश्किल है।


देश देशान्‍तर मैं फिरुं, मानुष बड़ा सुकाल।
जा देख सुख उपजे, वाका पड़ा दुकाल।।५३८।।

अर्थ: देश-देशांतर की यात्रा करने पर मनुष्य को बड़ा सुख मिलता है। जहाँ सुख देखने को मिलता है, वहीं दुख भी प्राप्त होता है।

Meaning: Traveling from country to country, humanity finds great ease. Wherever there is happiness, there is also suffering.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह व्यक्त करते हैं कि चाहे हम कितने भी देशों की यात्रा कर लें, अंततः मनुष्य को सुख और दुख दोनों का सामना करना पड़ता है। सुख की हर स्थिति के साथ दुख भी जुड़ा होता है, और यात्रा करने से जीवन के इस सत्य का अनुभव होता है।


ऐसा काई ना मिला, जासू कहुं निसंक।
जासो हिरदा की कहूं, सो फिर मारे डंक।।५३९।।

अर्थ: मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जिससे मैं निसंकोच होकर बात कर सकूं। जब मैं अपने दिल की बात किसी से कहता हूं, तो वह मुझे चोट पहुंचाता है।

Meaning: I have not found anyone with whom I can speak without fear. When I share my heart, they end up hurting me.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी मानव संबंधों और विश्वास के बारे में बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलता जिससे बिना डर के अपनी बातें साझा की जा सकें। जब भी दिल की बात किसी से कहते हैं, तो वह व्यक्ति अंत में हमें ही चोट पहुंचा देता है। यह दोहा हमारे सामाजिक संबंधों में विश्वासघात और दुख के अनुभव को व्यक्त करता है।


हिरदे ज्ञान न उपजे, मन परतीत न होय।
ताको सदगुरु कहा करे, घनघसि कुल्‍हर न होय।।५४०।।

अर्थ: जब हृदय में ज्ञान नहीं उत्पन्न होता और मन में विश्वास नहीं होता, तो सच्चा गुरु भी कुछ नहीं कर सकता, जैसे कि एक कुंद कुल्हाड़ी कुछ नहीं काट सकती।

Meaning: When wisdom doesn't arise in the heart and the mind lacks faith, even a true Guru can't help, just as a blunt axe can't cut.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी सच्चे गुरु की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जब व्यक्ति के हृदय में ज्ञान का उदय नहीं होता और मन में विश्वास नहीं होता, तो सच्चा गुरु भी उसकी मदद नहीं कर सकता। यह वैसा ही है जैसे कि एक कुंद कुल्हाड़ी से कोई काम नहीं होता। गुरु की शिक्षा तभी फलदायी हो सकती है जब शिष्य में विश्वास और ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हो।


सरबस सीस चढ़ाइये, तन कृत सेवा सार।
भूख प्‍यास सहे ताड़ना, गुरु के सुरति न‍िहार।।५४१।।

अर्थ: गुरु को अपना सब कुछ अर्पित कर दो, और तन-मन से उनकी सेवा करो। भूख-प्यास और कठिनाइयों को सहो, लेकिन गुरु की शिक्षा से कभी दृष्टि न हटाओ।

Meaning: Offer everything to the Guru, serve with dedication. Endure hunger, thirst, and hardships, but never lose sight of the Guru's teachings.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी गुरु के प्रति शिष्य की भक्ति और समर्पण का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि शिष्य को अपना सब कुछ गुरु के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए और तन-मन से उनकी सेवा करनी चाहिए। चाहे भूख, प्यास, और अन्य कठिनाइयां आएं, लेकिन गुरु की शिक्षा से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। यह दोहा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति की महत्ता को दर्शाता है।


साकट ते संत होत है, जो गुरु मिले सुजान।
राम-नाम निज मंत्र दे, छुड़ावै चारों खान।।५४२।।

अर्थ: एक अविश्वासी भी संत बन सकता है यदि उसे सुजान गुरु मिल जाए। गुरु उसे भगवान के नाम का मंत्र देते हैं, जिससे वह दुनियावी बंधनों से मुक्त हो जाता है।

Meaning: A non-believer can become a saint if they meet a wise Guru. The Guru gives them the mantra of God's name, freeing them from worldly bonds.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी गुरु की महिमा का वर्णन कर रहे हैं, जो एक अविश्वासी व्यक्ति को भी संत बना सकता है। एक सच्चा और ज्ञानी गुरु अपने शिष्य को राम-नाम का मंत्र देकर उसे चारों प्रकार के बंधनों से मुक्त कर सकता है। इस प्रकार गुरु के माध्यम से व्यक्ति का आत्मिक परिवर्तन संभव है।


जो कामिनी पड़दै रहे, सुनै न गुरुमुख बात।
सो तो होगी कूकरी, फिरै उघारै गात।।५४३।।

अर्थ: जो व्यक्ति कामनाओं में लिप्त रहता है और गुरु की बात नहीं सुनता, वह कुत्ते के समान हो जाएगा, जो खुले शरीर के साथ घूमता है।

Meaning: One who is engrossed in worldly desires and ignores the Guru's teachings will degrade to a low state, like a dog wandering with exposed flesh.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जो कामनाओं में लिप्त रहते हैं और गुरु की शिक्षाओं को नजरअंदाज करते हैं। वे कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति अपनी स्थिति को बहुत नीचे गिरा देता है, ठीक वैसे ही जैसे एक कुत्ता जो अपने शरीर को बिना किसी परवाह के खुले में छोड़ देता है। यह दोहा हमें गुरु की शिक्षाओं का पालन करने की सलाह देता है, अन्यथा हम अपने जीवन में नकारात्मक परिणामों का सामना कर सकते हैं।


कबीर हृदय कठोर के, शब्‍द न लागै सार।
सुधि बुधि के हिरदे विधे, उपजे ज्ञान विचार।।५४४।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, कठोर हृदय पर सार्थक शब्दों का असर नहीं होता। लेकिन समझदार और संवेदनशील हृदय में ज्ञान और विचार की वृद्धि होती है।

Meaning: Kabir says, the wise words do not penetrate a hard heart. But in a thoughtful heart, wisdom and reflection grow.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी हृदय की कठोरता और संवेदनशीलता के अंतर को समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि कठोर हृदय पर चाहे कितने भी अच्छे शब्द कहे जाएं, उनका कोई असर नहीं होता। लेकिन अगर व्यक्ति का हृदय संवेदनशील और समझदार है, तो उसमें ज्ञान और विचारों का विकास होता है। यह दोहा हमें अपने हृदय को संवेदनशील और विचारशील बनाने की प्रेरणा देता है।


हरिया जानै रुखड़ा, उस पानी का नेह।
सूखा काठ न जानि है, कितहूं बूड़ा मेह।।५४५।।

अर्थ: हरा-भरा पेड़ पानी के प्रेम को समझता है, लेकिन सूखी लकड़ी नहीं, चाहे कितना भी पानी बरसे।

Meaning: A green tree understands the love of water, but a dry log does not, no matter how much it rains.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी संवेदनशीलता और समझ की बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि एक हरा-भरा पेड़ पानी के महत्व और उसकी प्रेमपूर्ण छुवन को महसूस कर सकता है, जबकि सूखी लकड़ी के लिए पानी का कोई महत्व नहीं है। इसी प्रकार, केवल संवेदनशील और समझदार व्यक्ति ही प्रेम और ज्ञान को आत्मसात कर सकते हैं।


कबीर लहरि समुद्र की, मोती बिखरे आय।
बगुला परख न जानई, हंसा चुनि-चुनि खाय।।५४६।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, समुद्र की लहरों पर मोती बिखरे पड़े हैं, लेकिन केवल हंस ही उन्हें चुन-चुनकर खाता है, जबकि बगुला उनकी परख नहीं जानता।

Meaning: Kabir says, pearls scatter on the waves of the ocean, but only the swan knows how to pick them, while the crane remains unaware.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी ज्ञान और विवेक की बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि ज्ञान के मोती सभी के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन केवल वही व्यक्ति उन्हें प्राप्त कर सकता है जो विवेकशील और ज्ञानी है। अन्य लोग, जो विवेक और ज्ञान से वंचित हैं, उन मोतियों को पहचान नहीं पाते और उन्हें खो देते हैं।


कबीर हरि-रस बरसिया, गिरि परवत बनराय।
नीर निवानु ठाहरै, ना वह छापर डाय।।५४७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, भगवान के नाम का अमृत पर्वतों, जंगलों और वीरानों पर बरसता है, लेकिन वह केवल वहीं ठहरता है जहां उपयुक्त स्थान होता है।

Meaning: Kabir says, the nectar of God's name rains down on mountains, forests, and wilderness, but it only collects where there is a suitable place.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी भगवान के नाम और उसकी महिमा के बारे में बता रहे हैं। वे कहते हैं कि भगवान का नाम और उसकी कृपा सभी जगहों पर बरसती है, लेकिन वह केवल वहीं ठहरती है जहां उसे स्वीकार करने की क्षमता और पात्रता हो। यह दोहा हमें भगवान की कृपा के प्रति संवेदनशील और ग्रहणशील बनने की शिक्षा देता है।


पशुवा सों पालौ पर्यो, रहु रहु हिया न खीज।
ऊषर बीज न ऊगसी, बोवै दूना बीज।।५४८।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, अगर आप खुद को अज्ञानियों के बीच पाएं तो भी धैर्य न खोएं। जैसे ऊसर भूमि में बीज नहीं उगते, चाहे आप कितने भी बीज बोएं।

Meaning: Kabir says, do not lose heart if you find yourself among ignorant beings. Just as seeds will not sprout on barren land, no matter how many you sow.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी धैर्य और समझ की बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि आप खुद को ऐसे लोगों के बीच पाते हैं जो अज्ञानता से भरे हैं, तो आपको निराश नहीं होना चाहिए। जिस प्रकार बंजर भूमि पर बीज नहीं उगते, वैसे ही अज्ञानता से भरे लोगों में ज्ञान के बीज नहीं पनप सकते, चाहे आप कितनी भी कोशिश करें। यह दोहा हमें धैर्य और समझदारी से काम लेने की प्रेरणा देता है।


साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्‍यापै अंग।।५४९।।

अर्थ: दुष्ट व्यक्ति का मुख साँप की तरह होता है, जिसकी बातें विषैली होती हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए मौन ही एक औषधि है, क्योंकि विष तब नहीं फैलता जब शरीर पर उसका प्रभाव न हो।

Meaning: The face of the wicked is like a snake, whose words are poisonous. The remedy for such a person is silence, as poison does not spread if the body is not exposed to it.

व्याख्या: यह दोहा बताता है कि दुष्ट लोगों की बातें विष की तरह होती हैं, जिनसे बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय मौन रहना है। जब तक हम उन लोगों की बातों का प्रतिरोध नहीं करते, तब तक उनका विष हमें प्रभावित करता है। मौन रहकर हम उनकी विषैली बातों से बच सकते हैं।


कबीर गुरु की भक्ति बिनु, राजा रासभ होय।
माटी लदै कुम्हार की, घास न डारै कोय।।५५०।।

अर्थ: गुरु की भक्ति के बिना राजा भी गधा बन जाता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उपयोग करता है और घास को फेंकता नहीं है, वैसे ही गुरु के बिना व्यक्ति का कोई महत्व नहीं रहता।

Meaning: Without devotion to the Guru, even a king becomes like a beast of burden. Just as clay is used by the potter and grass is not discarded, so is a person without Guru’s devotion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने बताया है कि गुरु की भक्ति के बिना, भले ही कोई राजा क्यों न हो, वह गधे की तरह हो जाता है जिसका कोई महत्व नहीं है। गुरु की भक्ति से ही जीवन को सच्चा मूल्य और उद्देश्य मिलता है।