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संत कबीर जी के दोहे — 2201 to 2250

अंतरजामी एक तूं, आतम के आधार।
जो तुम छांड़ो हाथ तो, कौन उतारै पार।।२२०१।।

अर्थ: आप सभी के दिलों के जानने वाले, आत्मा के आधार हैं। अगर आप मेरा हाथ छोड़ देंगे, तो मुझे इस जीवन सागर से कौन पार कराएगा?

Meaning: You are the knower of all hearts, the support of the soul. If you let go of my hand, who will help me cross the ocean of existence?

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी भगवान से अपनी पूरी निर्भरता व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान ही उनके आत्मा का आधार हैं और अगर भगवान ने उनका साथ छोड़ दिया, तो कोई भी उन्हें भवसागर से पार नहीं करा सकता।


भवसागर भारी भया, गहरा अगम अथाह।
तुम दयाल दाया करो, तब पाऊं कछु थाह।।२२०२।।

अर्थ: भवसागर गहरा, अगम और अथाह हो गया है। हे दयालु, कृपा करें, ताकि मैं कुछ थाह पा सकूं।

Meaning: The ocean of existence is deep, unfathomable, and vast. O Merciful One, show your mercy, so that I may find some depth.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी जीवन के महासागर की गहराई और कठिनाई को व्यक्त कर रहे हैं। वे भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी सहायता करें, ताकि वे इस कठिन जीवन सागर में कुछ दिशा पा सकें।


सतगुरु बड़े दयाल हैं, संतन के आधार।
भवसागर अथाह सों, खेइ उतारै पार।।२२०३।।

अर्थ: सतगुरु बहुत दयालु हैं, संतों का आधार हैं। वे उन्हें अथाह भवसागर से पार उतारते हैं।

Meaning: The true Guru is very compassionate, the support of the saints. He helps them cross the unfathomable ocean of existence.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी सतगुरु की दया और कृपा की प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि सतगुरु संतों का सहारा हैं और वे ही उन्हें इस कठिन जीवन सागर से पार कराते हैं।


अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।२२०४।।

अर्थ: अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय। कहते हैं कबीर, दो नाम सुनने से भ्रम और संदेह उत्पन्न होता है।

Meaning: The divine is one, though names are two. Kabir says, hearing two names creates confusion and doubt.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर एक है, लेकिन हमारे भिन्न-भिन्न नामों के कारण भ्रम और संदेह उत्पन्न होता है। वे कहते हैं कि एक ही दिव्य सत्ता को दो नामों से अलग समझना भ्रमकारी है। इस प्रकार, वे एकता की सच्चाई को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं और दो नामों के माध्यम से भ्रम से बचने की सलाह देते हैं।


राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरमि परौ मति कोय।।२२०५।।

अर्थ: राम और रहीम एक हैं, हालांकि नाम भिन्न हैं। कबीर कहते हैं कि दो नाम सुनने से भ्रम और गलतफहमी उत्पन्न होती है।

Meaning: Ram and Rahim are one, though names are different. Kabir says that hearing two names leads to confusion and misperception.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह दर्शाते हैं कि राम और रहीम, जो कि विभिन्न नाम हैं, वास्तव में एक ही दिव्य शक्ति का प्रतीक हैं। वे यह भी बताते हैं कि इन दो नामों के कारण भ्रम और गलतफहमी उत्पन्न हो सकती है। कबीर जी एकता की सच्चाई को उजागर करने का प्रयास करते हैं और यह समझाते हैं कि नाम भिन्न हो सकते हैं, लेकिन परमात्मा एक ही है।


काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा इक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।२२०६।।

अर्थ: काशी और काबा एक ही हैं, जैसे राम और रहीम एक ही हैं। कबीर जी बैठकर भोजन करते हैं, और सभी में एकता पर विचार करते हैं।

Meaning: Kashi and Kabah are the same, as are Ram and Rahim. Kabir sits and eats, reflecting on the unity in all.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह दिखाते हैं कि धार्मिक स्थलों और नामों में कोई भेद नहीं है। काशी और काबा, और राम और रहीम, सभी एक ही दिव्य सत्ता का प्रतीक हैं। कबीर जी इस सच्चाई को समझते हुए सहजता से भोजन करते हैं और एकता की बात करते हैं, यह दर्शाते हुए कि वास्तविकता में सभी धर्म और स्थल एक ही दिव्य के पहलू हैं।


एक वस्‍तु के नाम बहु, लीजै वस्‍तु पहिचान।
नाम पक्ष नहिं कीजिये, सार तत्त्‍व ले जान।।२२०७।।

अर्थ: एक वस्तु के लिए कई नाम होते हैं; नामों पर ध्यान न दें, सार तत्व को समझें। वस्तुओं की सच्ची प्रकृति को जानें।

Meaning: Many names exist for one thing; recognize the essence rather than focusing on names. Understand the true nature of things.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह सिखाते हैं कि वस्तुओं और घटनाओं के विभिन्न नाम होते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण बात उनकी वास्तविकता और सार तत्व को समझना है। नामों के पीछे छिपे सार और तत्त्व को जानना ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह दोहा नामों की भिन्नता की तुलना में वस्तु की सच्चाई पर ध्यान देने की सलाह देता है।


नाम अनन्‍त जो ब्रह्म का, तिनका वार न पार।
मन मानै सौ लीजिये, कहै कबीर बिचार।।२२०८।।

अर्थ: अनन्त ब्रह्म का नाम शब्दों से पूरी तरह समझा नहीं जा सकता। कबीर कहते हैं, इसे अपने मन से स्वीकार करें।

Meaning: The name of the infinite Brahman cannot be fully understood by words. Accept the truth with your mind, Kabir says.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी बताते हैं कि ब्रह्म (परमात्मा) के नाम को शब्दों से पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता। वे सुझाव देते हैं कि हमें इसे अपने मन से समझकर स्वीकार करना चाहिए। यह दोहा नामों की सीमाओं को स्वीकार करने और गहरी समझ प्राप्त करने की बात करता है।


सब काहू का लीजिये, सांचा शब्‍द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर बिचार।।२२०९।।

अर्थ: सभी से सार लें; superficial शब्दों पर ध्यान न दें। पक्षपात न करें, कबीर की सलाह है।

Meaning: Take the essence from all; do not focus on superficial words. Do not show partiality, Kabir advises.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी सभी से सार तत्व को लेने की सलाह देते हैं, बजाय इसके कि हम सतही शब्दों पर ध्यान दें। वे पक्षपात करने से मना करते हैं और सच्चाई की खोज में निष्पक्षता को प्रोत्साहित करते हैं। यह दोहा सच्चाई को समझने में निष्पक्षता और गहराई की आवश्यकता की बात करता है।


राम कबीरा एक है, दूजा कबहु न कोय।
अंतर टाटी कपट की, ताते दीखे दोय।।२२१०।।

अर्थ: राम और कबीर एक हैं; कोई दूसरा नहीं है। कपट और छल की परत के कारण दो दिखाई देते हैं।

Meaning: Ram and Kabir are one; there is no other. Due to the veil of deceit and hypocrisy, two appear.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी कहते हैं कि राम और कबीर एक ही हैं, और कोई दूसरा नहीं है। वे बताते हैं कि कपट और छल की वजह से हमें अलग-अलग दिखाई देते हैं। इस दोहे में एकता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, कबीर जी कपट और छल के प्रभाव को उजागर करते हैं।


राम कबीरा एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगरु मिला न हाय।।२२११।।

अर्थ: राम और कबीर एक ही हैं, हालांकि उन्हें दो कहा जाता है। केवल वे लोग जो सच्चे गुरु से मिले हैं, इस सच्चाई को समझते हैं।

Meaning: Ram and Kabir are one, though they are spoken of as two. Only those who have met the true Guru understand this.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी बताते हैं कि राम और कबीर वास्तव में एक ही हैं, लेकिन वे दो के रूप में बोला जाता है। वे यह भी कहते हैं कि इस सच्चाई को केवल वे लोग समझ सकते हैं जिन्होंने सच्चे गुरु से मिलकर इसका ज्ञान प्राप्त किया है। यह दोहा एकता और सच्चे ज्ञान की महत्वता को दर्शाता है।


हरि का बना स्‍वरूप सब, जेता यह आकार।
अक्षर अर्थ यों भाषिये, कहै कबीर बिचार।।२२१२।।

अर्थ: हरि के सभी रूप दिव्य के स्वरूप हैं। अक्षर और उसका अर्थ एक ही है, कबीर कहते हैं।

Meaning: All forms are manifestations of the Divine. The letter and its meaning are one, Kabir says.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह समझाते हैं कि हर रूप और आकार दिव्य के ही स्वरूप हैं। वे यह भी बताते हैं कि अक्षर और उसका अर्थ एक ही होते हैं, जो कि एक गहरी सच्चाई को दर्शाता है। कबीर जी का यह विचार है कि हमें रूपों और शब्दों के बजाय उनके अंतर्निहित अर्थ और सार को समझने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रकार, वे वास्तविकता को समझने के लिए अक्षर और उसके अर्थ के एकत्व पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हैं।


देखनही की बात है, कहने को कछु नाहिं।
आदि अंत को मिलि रहा, हरिजन हरिही माहिं।।२२१३।।

अर्थ: यह देखे जाने या कहे जाने की बात नहीं है; यह उससे परे है। आदि और अंत, सब कुछ दिव्य में मिल जाता है, भक्त के हृदय में।

Meaning: It is not a matter of seeing or speaking; it is beyond that. The beginning and end are found in the divine, within the heart of the devotee.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी बताते हैं कि सच्चाई केवल देखने या कहने से परे है। वास्तविकता की गहराई में, आदि और अंत का मिलन दिव्य के भीतर होता है, जो भक्त के हृदय में महसूस किया जा सकता है। कबीर जी का यह कहना है कि बाहरी दिखावे और शब्दों से परे जाकर, हमें अपनी आंतरिक समझ और अनुभव पर ध्यान देना चाहिए।


नगर चन तब जानिये, जब एकै राजा होय।
याहि दुराजी राज में, सुखी न देखा कोय।।२२१४।।

अर्थ: नगर तब ही जानना चाहिए जब वहाँ एक ही राजा हो। कई शासकों के राज्य में, किसी ने भी सच्ची खुशी नहीं देखी।

Meaning: A city can only be known when there is one king. In a land with multiple rulers, no one has ever seen true happiness.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह दर्शाते हैं कि एक साम्राज्य या नगर तब ही समृद्ध और संगठित हो सकता है जब वहाँ एक ही राजा हो। कई शासकों के बीच, व्यवस्था और शांति की कमी होती है, जिससे सच्ची खुशी प्राप्त नहीं होती। कबीर जी यह सिखाते हैं कि एकता और एकल नेतृत्व ही सामाजिक और व्यक्तिगत खुशहाली की कुंजी है।


सबै हमारे एकहैं, जो सुमिरै हरि नाम।।
वस्‍तु लही पहिचान कै, बासन सों क्‍या काम।।२२१५।।

अर्थ: जो हरि के नाम का स्मरण करता है, वह सभी एक है। वस्तुओं की पहचान करने का क्या लाभ, जब आपके पास भक्ति का सार है?

Meaning: All are one who remembers the name of Hari. What use is identifying objects, when you have the essence of devotion?

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर जी यह स्पष्ट करते हैं कि जो व्यक्ति हरि के नाम का स्मरण करता है, वह सभी से एक है। वस्तुओं की पहचान या बाहरी दुनिया की चीजों का मूल्य तब कम हो जाता है, जब आपके पास वास्तविक भक्ति का अनुभव होता है। कबीर जी का यह विचार है कि भक्ति और एकता ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, और बाहरी चीजें उस भक्ति के आगे महत्वहीन हो जाती हैं।


कांसे ऊपर बीजुरी, परै अचानक आय।
तात निर्भय ठीकरा, सतगुरु दिया बताय।।२२१६।।

अर्थ: तांबे पर अचानक बिजली चमकती है। निर्भीक मार्गदर्शन सतगुरु ने दिखाया।

Meaning: A lightning strikes on brass suddenly. The fearless guidance was shown by the true Guru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दिखाते हैं कि जैसे तांबे पर अचानक बिजली चमकती है, वैसे ही सच्चे गुरु के मार्गदर्शन से व्यक्ति को निर्भीकता और सच्ची राह मिलती है। यह भी स्पष्ट करता है कि गुरु का मार्गदर्शन अचानक और प्रभावशाली होता है, जो एक व्यक्ति को सही दिशा में ले जाता है।


हद्द छांड‍ि बेहद गया, लिया ठीकरा हाथ।
भया भिखारी दीन का, दर्शन भया सनाथ।।२२१७।।

अर्थ: सीमित को छोड़कर अनंत को प्राप्त करते हुए, एक भिक्षा पात्र पकड़ा। भिखारी विनम्र हो गया और दर्शन शुद्ध हो गया।

Meaning: Leaving the limited, one attains the infinite, holding a bowl. The beggar became humble, and the vision became pure.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सिखाते हैं कि सीमित विचारों और भौतिक वस्तुओं को छोड़कर अनंत को प्राप्त किया जाता है। एक भिखारी की तरह विनम्रता अपनाकर, व्यक्ति अपने दृष्टिकोण को शुद्ध कर सकता है और सच्ची समझ प्राप्त कर सकता है। कबीर जी का यह संदेश है कि आत्मिक उन्नति के लिए विनम्रता और परे हटकर देखना आवश्यक है।


हद्द छांडि बेहद गया, अबरन किया मिलान।
दास कबीरा मिलि रहा, सो कहिये रहमान।।२२१८।।

अर्थ: सीमित को छोड़कर अनंत को प्राप्त किया, और आच्छादन हटा दिए। दास कबीर ने दिव्य को पाया, अर्थात रहमान।

Meaning: Leaving the limited, one attains the infinite, and the coverings were removed. The servant Kabir found the divine, that is to say, Rahman.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि सीमितता को छोड़कर अनंत को प्राप्त किया जा सकता है। जब बाहरी आच्छादन हट जाते हैं, तब व्यक्ति दिव्य का अनुभव करता है। कबीर जी का यह कहना है कि सच्चे ज्ञान और दिव्यता की प्राप्ति के लिए सीमाओं को पार करना आवश्यक है और बाहरी बाधाओं को हटाना होता है।


बेहद बिचारौ हद तजौ, हद तजि मेलो आस।
सबै अलिंगन मेटिकै, करौ निरन्‍तर वास।।२२१९।।

अर्थ: अनंत पर विचार करें, सीमित को त्यागें, और सीमाओं को त्यागने के साथ निरंतर आलिंगन में रहें।

Meaning: Consider the infinite, abandon the limited, and with the abandoning of limits, live in constant embrace.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सुझाव देते हैं कि अनंत को समझने के लिए सीमित विचारों और सीमाओं को छोड़ना पड़ता है। जब व्यक्ति सीमाओं को त्यागता है, तो वह निरंतर प्रेम और एकता का अनुभव करता है। कबीर जी का यह संदेश है कि वास्तविक समझ और दिव्यता की प्राप्ति के लिए अनंत की ओर सोचने और सीमाओं को छोड़ने की आवश्यकता है।


निरन्‍तर बासी निरमला, शून स्‍थूल सो निनार।
पूरब गंगा पश्चिम बहावै, पेखे बहु उजियार।।२२२०।।

अर्थ: अविरल, निर्मल तत्व रूप से परे है, जैसे गंगा नदी पूरब से पश्चिम की ओर बहती है, बहुत अधिक प्रकाश लाती है।

Meaning: The constant, pure essence is beyond form, like the river Ganga flowing from east to west, bringing immense light.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि वास्तविक, शुद्ध तत्व रूप से परे होता है, जैसे गंगा नदी का बहाव जो एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर जाता है और बहुत अधिक प्रकाश लाता है। यह बताता है कि दिव्यता और शुद्धता का अनुभव वास्तविकता से परे है और यह लगातार अवलोकन और ध्यान की स्थिति में समझा जा सकता है।


बेहद्द अगाधी पीव है, ये सब हदके जीव।
जे नर राते हद्दसो, ते कदी न पावै पीव।।२२२१।।

अर्थ: असीम अमृत सीमाओं से परे है, लेकिन ये जीव सीमाओं में रहते हैं। जो सीमाओं से बंधे हैं, वे कभी इस अमृत का स्वाद नहीं ले सकते।

Meaning: The infinite nectar is beyond limits, yet these creatures live within bounds. Those who are confined by limits can never taste this nectar.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दिखाते हैं कि असीम अमृत या दिव्यता सीमाओं से परे होती है। जो लोग सीमाओं के भीतर रहते हैं, वे इस दिव्य अमृत को कभी नहीं प्राप्त कर सकते। यह दोहा यह समझाता है कि आध्यात्मिक अनुभव और वास्तविकता का आनंद सीमाओं को पार करने और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने से मिलता है।


हदमें पीव न पाइये, बेहद में भरपूर।
हद बेहद की गम लखै, तासौं पीव हजूर।।२२२२।।

अर्थ: सीमाओं के भीतर अमृत नहीं पाया जा सकता; यह अनंत में प्रचुर मात्रा में है। सीमाओं और अनंत के सार को समझने से यह अमृत प्रकट होता है।

Meaning: One cannot find the nectar within limits; it is abundant in the infinite. Understanding the essence of limits and the infinite reveals this nectar.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सिखाते हैं कि अमृत या दिव्यता सीमाओं के भीतर नहीं मिलती, बल्कि अनंत में प्रचुर मात्रा में होती है। सीमाओं और अनंत के सार को समझकर ही इस अमृत की प्राप्ति होती है। कबीर जी का यह संदेश है कि आध्यात्मिक आनंद और सच्चा ज्ञान सीमाओं को पार करने और अनंत को समझने में ही है।


हद बंधा बेहद रमैं, पल पल देखै नूर।
मनवा तहां ले राखिया, जहां बाजै अनहद तूर।।२२२३।।

अर्थ: सीमाओं से बंधा हुआ, अनंत का अनुभव होता है; हर पल यह प्रकाश प्रकट करता है। मन को वहीं रखना चाहिए जहां दिव्य का अनहद ध्वनि सुनी जाती है।

Meaning: Bound by limits, the infinite is experienced; every moment it reveals light. The mind should be kept there where the unstruck sound of the divine is heard.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि भले ही व्यक्ति सीमाओं में बंधा हुआ हो, लेकिन वह अनंत का अनुभव कर सकता है। हर पल यह प्रकाश और दिव्य ध्वनि को प्रकट करता है। यह भी सिखाते हैं कि मन को उस स्थिति में बनाए रखना चाहिए जहां दिव्य ध्वनि सुनाई देती है, जो आध्यात्मिक अनुभव की गहराई को दर्शाता है।


हद्द मांहि हदका घनां, लीया जीव तुराय।
रिगसि बिगसि बेहद गया, मरै न आवै जाय।।२२२४।।

अर्थ: सीमाओं के भीतर, सीमाएं ही पाई जाती हैं; आत्मा, जिसने सीमाओं को छोड़ दिया है, अनंत का अनुभव करती है। यह न आता है और न जाता है।

Meaning: Within limits, one finds limitations; the soul, having left the limits, experiences the infinite. It neither comes nor goes.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सिखाते हैं कि सीमाओं के भीतर व्यक्ति को सीमाएं ही मिलती हैं, लेकिन जब आत्मा सीमाओं को पार कर लेती है, तो अनंत का अनुभव होता है। यह अवस्था न तो आती है और न ही जाती है, बल्कि स्थिर और शाश्वत होती है। कबीर जी का यह संदेश है कि आत्मा की यात्रा और अनुभव सीमाओं को पार करने से संबंधित है और यह असीम और शाश्वत होता है।


हद छांडि बेहद गया, रहा निरन्‍तर होय।
बेहद के मैदान में, रहा कबीरा सोय।।२२२५।।

अर्थ: सीमाओं को छोड़कर, अनंत में प्रवेश किया, लगातार रहता है। कबीर अनंत के क्षेत्र में निवास करते हैं।

Meaning: Leaving behind the limits, one enters the infinite, remaining continuously. Kabir resides in the field of the infinite.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दर्शाते हैं कि सीमाओं को पार करने के बाद व्यक्ति अनंत में प्रवेश करता है और वहां स्थिर रहता है। कबीर जी का निवास अनंत के क्षेत्र में है, जो यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक उन्नति और वास्तविकता की गहराई केवल सीमाओं को पार करके ही प्राप्त की जा सकती है।


हद्द छाडि बेहद गया, तासों राम हजूर।
पारब्रह्म परचा भया, अब नियरे तब दूर।।२२२६।।

अर्थ: सीमाओं को छोड़कर अनंत में प्रवेश करते हुए, राम उपस्थित हो जाते हैं। परम ब्रह्म का सार प्रकट होता है, फिर भी दूर बना रहता है।

Meaning: Leaving limits and entering the infinite, Ram becomes present. The essence of the supreme being is revealed, yet remains distant.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि जब व्यक्ति सीमाओं को छोड़कर अनंत में प्रवेश करता है, तो राम या ईश्वर की उपस्थिति अनुभव होती है। हालांकि परम ब्रह्म का सार स्पष्ट होता है, फिर भी वह दूर और अप्राप्य लगता है। यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक अनुभव के बावजूद, पूर्णता की अनुभूति और समझ में समय और प्रयास की आवश्यकता होती है।


हद में बैठा कथन है, बेहद की गम नाहिं।
बेहद की गम होयगी, तब कछु कथना काहि।।२२२७।।

अर्थ: सीमाओं के भीतर बैठकर, अनंत की समझ नहीं होती। अनंत की समझ तब ही होती है जब सीमाओं को पार किया जाता है।

Meaning: Sitting within limits, one cannot understand the infinite. Understanding the infinite comes only when one transcends these limits.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सिखाते हैं कि सीमाओं के भीतर रहने पर अनंत की समझ नहीं होती। अनंत की वास्तविक समझ और अनुभव केवल तब होता है जब व्यक्ति इन सीमाओं को पार करता है और व्यापक दृष्टिकोण अपनाता है। यह बताता है कि आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए सीमाओं से परे जाना आवश्यक है।


कबिरा हद के जीव सों, हित करि मुखै न बोल।
जो राचे बेहद सों, तिनसों अन्‍तर खोल।।२२२८।।

अर्थ: कबीर सीमाओं से बंधे लोगों से खुलकर नहीं बोलते। जो लोग अनंत के साथ जुड़े होते हैं, उन्हें वह आंतरिक सत्य प्रकट करते हैं।

Meaning: Kabir does not speak openly with those bound by limits. To those who are in tune with the infinite, he reveals the inner truth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दिखाते हैं कि वह उन लोगों के साथ खुलकर बात नहीं करते जो सीमाओं में बंधे होते हैं। उनके लिए जो अनंत के साथ जुड़े होते हैं, कबीर जी आंतरिक सत्य को प्रकट करते हैं। यह बताता है कि आध्यात्मिक ज्ञान और समझ के लिए गहरी आंतरिक जुड़ाव और अनुभव की आवश्यकता होती है।


हदिया सेतो हद रहो, बेहदिया बेहद।
जो जैसा तहा रोगिया, तहा तैसी औषद।।२२२९।।

अर्थ: सीमित व्यक्ति सीमाओं में ही रहता है, जबकि अनंत व्यक्ति अनंत में रहता है। जैसे औषधि रोग के अनुसार होती है, वैसे ही आध्यात्मिक समाधान स्थिति के अनुसार होता है।

Meaning: The limited person remains within limits, while the infinite person remains infinite. Just as the medicine is suited to the disease, so is the spiritual solution to the condition.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सिखाते हैं कि सीमित व्यक्ति सीमाओं में ही बंधा रहता है, जबकि अनंत व्यक्ति अनंतता में रहता है। यह भी दर्शाते हैं कि जैसे औषधि रोग के अनुसार होती है, वैसे ही आध्यात्मिक समाधान भी व्यक्ति की स्थिति के अनुसार होता है। यह बताता है कि हर स्थिति और व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक मार्ग और समाधान अलग हो सकते हैं।


हद में रहैं सो मानवी, बेहद रहै सो साध।
हद बेहद दोनों तजैं, तिनका मता अगाध।।२२३०।।

अर्थ: जो सीमाओं में रहता है, वह मानव है, और जो अनंत में रहता है, वह साधु है। हद और बेहद दोनों को त्याग कर, जो समझ प्राप्त करता है, वह गहन मति का स्वामी है।

Meaning: One who remains within limits is human, while one who dwells in the infinite is a sage. To transcend both limits and the infinite is to possess profound understanding.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि सीमाओं में बंधा व्यक्ति मानव होता है, जबकि अनंत में निवास करने वाला साधु होता है। लेकिन, जब व्यक्ति हद और बेहद दोनों को पार कर लेता है, तो वह गहरी समझ और ज्ञान प्राप्त करता है। यह दर्शाता है कि वास्तविक आध्यात्मिक समझ दोनों की सीमाओं से परे जाती है।


हद बेहद दोनों तजी, अबरन किया मिलान।
कहै कबीर ता दास पर, वारों सकल जहान।।२२३१।।

अर्थ: हद और बेहद दोनों को पार कर, एकता प्राप्त करने के बाद, कबीर कहते हैं कि दास पूरी दुनिया को प्रणाम करता है।

Meaning: Having transcended both limits and the infinite, and having attained unity, says Kabir, the servant bows to the entire world.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दर्शाते हैं कि हद और बेहद दोनों को पार करने के बाद व्यक्ति एकता और पूर्णता को अनुभव करता है। इस स्थिति में, व्यक्ति समस्त संसार को सम्मान देता है और एक सच्चे दास की तरह समर्पण करता है। यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक उन्नति के बाद, व्यक्ति समस्त जीवों और संसार के प्रति एक गहरी श्रद्धा और समर्पण अनुभव करता है।


अगह गह अकह कहै, अनभेदा भेद लहाइ।
अनभै बाणी आगम की, लेगई संग लगाइ।।२२३२।।

अर्थ: अप्रकट करने वाला अप्रकट को प्रकट करता है, और अप्रभेदित भेदों को प्रकट करता है। शास्त्रों की अप्रकट बाणियाँ अंतिम सत्य के साथ मेल खाती हैं।

Meaning: The unspoken speaks the unspeakable, and the undifferentiated reveals the hidden distinctions. The unspoken words of the scriptures align with the ultimate truth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह दर्शाते हैं कि जो बात शब्दों में नहीं कही जा सकती, वही असल में सबसे महत्वपूर्ण होती है। अप्रभेदितता के भीतर छिपे भेदों को प्रकट किया जाता है, और शास्त्रों की अप्रकट बाणियाँ उस अंतिम सत्य से मेल खाती हैं। यह बताता है कि आध्यात्मिक ज्ञान और सत्य अक्सर शब्दों से परे होता है और उसे केवल अनुभव और गहरी समझ से जाना जा सकता है।


जहां शोक ब्‍यापै नहीं, चल हंसा उस देस।
कहै कबीर गुरगम गहो, छांडि सकल भ्रम भेस।२२३३।।

अर्थ: जहां शोक नहीं फैला है, वहां जाओ, ओ हंस। कबीर कहते हैं, गुरु की दिशा को पकड़ो और सभी भ्रमों को त्याग दो।

Meaning: Where there is no sorrow, go there, O swan. Kabir says, hold on to the Guru's guidance and abandon all illusions.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह सलाह देते हैं कि जहां शोक और दुख नहीं है, वहां जाना चाहिए। गुरु के मार्गदर्शन को अपनाकर सभी भ्रमों को त्याग देना चाहिए। यह बताता है कि आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सत्य की प्राप्ति के लिए हमें केवल गुरु की शिक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए और भ्रमों को छोड़ देना चाहिए।


अंग अठोत्तरसौ कहा, परम पुरुष उपदेश।
कहै कबीर अब हरि मिलै, मानौं साख संदेश।।२२३४।।

अर्थ: अठ्ठारहवें अंग में परम पुरुष के उपदेश का वर्णन है। कबीर कहते हैं, जब तुम हरि (ईश्वर) से मिलोगे, तो इसे सीधे संदेश के रूप में मानो।

Meaning: The 48th verse speaks of divine instructions. Kabir says, when you meet Hari (God), it should be taken as a direct message.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि 48वें अंग में परम पुरुष के उपदेश का उल्लेख है। जब व्यक्ति हरि से मिलता है, तो इसे सीधे और महत्वपूर्ण संदेश के रूप में मानना चाहिए। यह दर्शाता है कि दिव्य मिलन और अनुभव को एक सच्चे संदेश के रूप में समझना और अपनाना चाहिए।


जन कबीर बंदन करै, किस विधि कीजै सेव।
बार पार की गम नहीं, नमो नमो निज देव।।२२३५।।

अर्थ: भक्त कबीर पूछते हैं, सेवा कैसे की जाए? पार करने की जानकारी नहीं है; इसलिए, हमेशा अपने देवता को नमस्कार करना चाहिए।

Meaning: The devotee Kabir asks, how can service be performed? There is no knowledge of crossing the barrier; thus, one should continuously bow to their own deity.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह पूछते हैं कि सही सेवा कैसे की जाए, जबकि पारगमन की कोई जानकारी नहीं है। उनका सुझाव है कि व्यक्ति को निरंतर अपने देवता को प्रणाम करना चाहिए। यह बताता है कि सच्ची भक्ति और सेवा में श्रद्धा और समर्पण महत्वपूर्ण है, और पारगमन की प्रक्रिया को समझने की बजाय अपने देवता की पूजा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


मांस अहारी मानवा, प्रत्‍यक्ष राक्षस जानि।
ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।२२३६।।

अर्थ: जो व्यक्ति मांस खाता है, वह प्रत्यक्ष राक्षस के समान होता है। ऐसी संगति करने से भक्ति में हानि होती है।

Meaning: A person who consumes meat is known to be a visible demon. Associating with such a person harms one's devotion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि मांस खाने वाला व्यक्ति जैसे एक राक्षस के समान होता है। उनकी संगति करने से भक्ति की हानि होती है। यह दर्शाता है कि आहार और संगति का व्यक्ति की धार्मिक और आध्यात्मिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।


मांस खाये ते ढेड़ सब, मद पीवै सा नीच।
कुल की दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।२२३७।।

अर्थ: जो मांस खाते हैं, वे नीच होते हैं, और जो मदिरा पीते हैं, वे भी नीच होते हैं। वे अपने कुल की दुरमति को नष्ट करते हैं; राम कहते हैं कि वे सबसे नीच हैं।

Meaning: Those who consume meat are degraded, and those who drink alcohol are lowly. They destroy the moral values of their lineage; Ram says they are the lowest.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मांस और शराब का सेवन करने वालों को नीच बताते हैं और उनके कुल की नैतिकता को नष्ट करने की बात करते हैं। यह दिखाता है कि कबीर जी धार्मिक और नैतिक आचार संहिता के प्रति गहरी चिंता व्यक्त करते हैं और अनुशासनहीनता को नकारात्मक रूप में देखते हैं।


मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत।
ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।।२२३८।।

अर्थ: जो मांस और मछली खाते हैं और मदिरा का सेवन करते हैं, वे अपने माता-पिता सहित नरक में जाएंगे।

Meaning: Those who consume meat and fish and drink alcohol, will go to hell along with their parents.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मांस, मछली, और मदिरा का सेवन करने वालों के लिए नरक की सजा का वर्णन करते हैं। यह दर्शाता है कि कबीर जी के अनुसार, इन आदतों के कारण व्यक्ति को धार्मिक और नैतिक दंड मिलता है, और यह उनके परिवार के लिए भी हानिकारक होता है।


मांस मछलिया खात हैं, सुरापान सों हेत।
ते नर नरकै जांहिंगे, ज्‍यों मूरी का खेत।।२२३९।।

अर्थ: जो मांस और मछली खाते हैं और मदिरा का सेवन करते हैं, वे नरक में जाएंगे जैसे की गंदे खेत में।

Meaning: Those who consume meat and fish, and drink alcohol, will go to hell like a field of mud.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मांस, मछली, और मदिरा के सेवन को अत्यंत नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे इसे नरक में जाने का कारण बताते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कबीर जी इन आदतों को अत्यंत बुरा मानते हैं और इनके प्रभावों को गंभीरता से देखते हैं।


मांस भखै औ मद पिये, धन वेश्‍या सों खाय।
जूआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।२२४०।।

अर्थ: जो मांस खाता है और मदिरा पीता है, वेश्या के साथ खाता है, जुए में खेलता है और चोरी करता है, उसका अंत पूरी तरह से बुरा होगा।

Meaning: One who consumes meat and drinks alcohol, eats with prostitutes, gambles, and commits theft, will meet a complete downfall in the end.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने उन लोगों के बारे में चेतावनी दी है जो मांस, मदिरा का सेवन करते हैं, वेश्या के साथ संबंध रखते हैं, जुआ खेलते हैं, और चोरी करते हैं। कबीर जी के अनुसार, ऐसे लोग अपने जीवन के अंत में पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं। यह दर्शाता है कि कबीर जी नैतिकता और धार्मिक आचार-संहिता के प्रति सख्त दृष्टिकोण रखते हैं।


मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
आंखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।।२२४१।।

अर्थ: मांस मांस ही है, चाहे वह मुर्गा हो, हिरण हो या गाय। जब मनुष्य इसका सेवन करते हैं, तो वे नरक में जाते हैं।

Meaning: Meat is meat, whether it is chicken, deer, or cow. When humans consume it, they will go to hell.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी यह बताते हैं कि मांस की कोई भी किस्म हो, वह सब एक ही है। कबीर जी के अनुसार, जो लोग मांस का सेवन करते हैं, वे नरक की ओर जाते हैं। यह दर्शाता है कि कबीर जी मांसाहार को धार्मिक दृष्टि से गलत मानते हैं और इसके सेवन को गंभीर दंड के रूप में देखते हैं।


यह कूकर को भक्ष है, मनुष्‍य देह क्‍यों खाय।
मुख में आमिख मेलिके, नरक परते जाय।।२२४२।।

अर्थ: यह कुत्तों के लिए भोजन है, इसे मनुष्य क्यों खाए? मुंह में इस प्रकार की अशुद्धियां होने से, व्यक्ति नरक में चला जाएगा।

Meaning: This is the food for dogs, why should it be eaten by humans? With such impurities in the mouth, one will end up in hell.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने मांसाहार को कुत्तों के भोजन के रूप में चित्रित किया है और इसे मानव शरीर के लिए अनुचित बताते हैं। कबीर जी का कहना है कि अगर व्यक्ति अपने मुख में ऐसी अशुद्धियां रखेगा, तो उसे नरक का सामना करना पड़ेगा। यह दर्शाता है कि कबीर जी शुद्ध आहार और स्वच्छता पर जोर देते हैं।


ब्राह्मन राजा बरन का, और पवनी छत्तीस।
रोटी ऊपर माछली, सब बरन भये खबीस।।२२४३।।

अर्थ: ब्राह्मण, राजा और सभी वर्णों के लोग रोटी के साथ मछली खाते हैं। सभी वर्ण भ्रष्ट हो गए हैं।

Meaning: Brahmins, kings, and people of all varnas and professions eat fish with their bread. All varnas have become corrupt.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने सभी वर्णों और पेशों के लोगों की आलोचना की है जो मछली खाते हैं। कबीर जी का कहना है कि हर कोई भ्रष्ट हो गया है, चाहे वह कोई भी वर्ण या पेशा हो। यह दर्शाता है कि कबीर जी सामाजिक और धार्मिक आचरण के प्रति निराशा और आलोचना व्यक्त करते हैं।


कलियुग केरा ब्राह्मना, मांस मछलिया खाय।
पांय लगे सुखमानई, राम कहे जारि जाय।।२२४४।।

अर्थ: कलियुग में ब्राह्मण मांस और मछली खाते हैं। भले ही वे पैर छुएं, वे नष्ट हो जाएंगे, ऐसा राम कहते हैं।

Meaning: In the Kali Yuga, Brahmins eat meat and fish. Even if they touch their feet, they will perish, says Ram.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने कलियुग में ब्राह्मणों द्वारा मांस और मछली खाने की आलोचना की है। कबीर जी के अनुसार, भले ही वे धार्मिक क्रियाओं में शामिल हों, वे अंततः नष्ट हो जाएंगे। यह दिखाता है कि कबीर जी के लिए धार्मिक और नैतिक आचार में संपूर्णता की अत्यंत महत्वता है।


पापी पूजा बैठिकै, भखे मांस मद दाइ।
तिनकी दीक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होई।।२२४५।।

अर्थ: पापी पूजा में बैठकर, मांस और मदिरा का सेवन करता है। उसकी दीक्षा से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि उसे कोटि नरकों का फल मिलता है।

Meaning: The sinner who sits in worship, with hunger for flesh and intoxication. His initiation does not lead to liberation, instead results in millions of hellish consequences.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति पापी है, वह पूजा-पाठ में बैठकर भी यदि मांस और मदिरा का सेवन करता है, तो उसकी दीक्षा का कोई अर्थ नहीं है। उसके पापों के कारण उसे मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि नरकों में असंख्य कष्ट भोगने पड़ते हैं।


सकल बरन एकत्र ह्व, शक्ति पजि मिलि खाहि।
हरि दासन की भ्रांति करि, केवल जमपुर जाहिं।।२२४६।।

अर्थ: सभी जातियाँ एकत्र होकर, शक्ति की पूजा करके मिलकर खाते हैं। हरि के भक्त होने का भ्रम पालकर, वे केवल यमपुरी (मृत्यु लोक) की ओर जाते हैं।

Meaning: All castes come together, worshiping strength and eat together. In confusion of being devotees of Hari, they only head towards the land of death.

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में बताते हैं कि लोग अपनी जातियों के भेदभाव को भूलकर, शक्ति (शारीरिक शक्ति) की पूजा करते हैं और साथ मिलकर खाते हैं। लेकिन वे हरि के सच्चे भक्त नहीं होते, बल्कि वे केवल भ्रम में रहते हैं और उनके पापों के कारण वे मृत्यु के बाद यमलोक में जाते हैं।


विष्‍ठा का चौका दिया, हांडी सीझै हाड।
छूति बचवै चास की, तिनहूं का गुरु राड।।२२४७।।

अर्थ: वह लोग मल-मूत्र से भरी जगह में खाना पकाते हैं, और हांडियों में हड्डियाँ उबालते हैं। मट्ठा (छाछ) का अवशेष बिना छुए रहता है, फिर भी उन लोगों का गुरु एक धोखेबाज है।

Meaning: They cook in a place filled with excrement, and bones boil in the pot. The residue of buttermilk remains untainted, even such people have a guru who is a rogue.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बताते हैं कि कुछ लोग ऐसी गंदी जगह में खाना पकाते हैं, जहाँ मल-मूत्र पड़ा होता है, और हांडियों में हड्डियाँ उबालते हैं। लेकिन छाछ का अवशेष उनसे बचा रहता है। यह उन लोगों की विडम्बना है कि ऐसे गंदे कार्य करने के बाद भी उनके गुरु होते हैं, जो उन्हें सच्चाई से दूर ले जाते हैं और गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।


जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
पाप सबै जो देखिया, पुन्‍य न देखा कोय।।२२४८।।

अर्थ: जीवों को मारना और हिंसा करना स्पष्ट पाप हैं। जब मैंने चारों ओर देखा, तो केवल पाप ही दिखाई दिए, पुण्य में संलग्न कोई नहीं दिखा।

Meaning: Killing living beings and committing violence are obvious sins. When I looked around, I saw only sins, and no one engaged in virtuous deeds.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जीव हत्या और हिंसा करना स्पष्ट रूप से पाप है। जब वह दुनिया को देखते हैं, तो हर जगह केवल पाप ही दिखाई देता है। कोई भी पुण्य कार्य करता हुआ नहीं दिखाई देता। यह दोहा समाज के नैतिक पतन और पापों की व्यापकता को उजागर करता है।


जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्‍त गया नहिं कोय।।२२४९।।

अर्थ: जीवों को मारना और हिंसा करना स्पष्ट पाप हैं। शास्त्रों के अनुसार, ऐसा पाप करने वाला कोई भी व्यक्ति स्वर्ग नहीं पहुंचा है।

Meaning: Killing living beings and committing violence are obvious sins. According to the scriptures, no one who commits such sins has ever reached heaven.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जीव हत्या और हिंसा करना स्पष्ट पाप है। शास्त्रों के अनुसार, जो इस प्रकार के पाप करता है, वह कभी स्वर्ग नहीं जाता। यह दोहा इस बात पर जोर देता है कि हिंसा और पाप के मार्ग पर चलने वाले लोग कभी भी मोक्ष या स्वर्ग का अनुभव नहीं कर सकते।


हत्‍या सोही हन्‍नसी, भावै जानि बिजान।
कर गहि चोटी तानसी, साहब के दीवान।।२२५०।।

अर्थ: हत्या करने वाले, चाहे वे जानबूझकर करें या अज्ञान में, हत्या करते रहेंगे। उन्हें उनके बालों से पकड़कर साहब (ईश्वर) के दरबार में खींचा जाएगा।

Meaning: Murderers will continue to kill, whether knowingly or unknowingly. They will be dragged by their hair before the Lord's court.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जो लोग हत्या करने की प्रवृत्ति रखते हैं, वे इसे चाहे जानबूझकर करें या अनजाने में, उनके लिए इसका परिणाम एक ही होगा। उन्हें उनके कर्मों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा और उन्हें ईश्वर के न्यायालय में उनके पापों के लिए सजा दी जाएगी। यह दोहा चेतावनी देता है कि हिंसा और हत्या का मार्ग चुनने वालों को अंततः दंड भुगतना पड़ेगा।