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संत कबीर जी के दोहे — 1951 to 2000

राम रसाइन प्रेम रस, पीवत अधिक रसाल।
कबीर पीवण दुर्लभ है, मांगै सीस कलाल।।१९५१।।

अर्थ: राम के प्रेम का रस अत्यंत मीठा होता है। कबीर कहते हैं कि इस प्रकार के अमृत को प्राप्त करना दुर्लभ है और इसके लिए सिर की बलि चढ़ानी पड़ती है।

Meaning: The essence of Ram's love is exceedingly sweet. Kabir says that obtaining such nectar is rare and requires one to offer their head to attain it.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने प्रेम और भक्ति के अमृत की मिठास का वर्णन किया है। यह प्रेम केवल सच्ची भक्ति से ही प्राप्त होता है और इसे पाने के लिए आत्मसमर्पण की आवश्यकता होती है। 'सिर की बलि' से तात्पर्य है कि व्यक्ति को अपनी अहंकारिता और आत्म-स्वार्थ को त्यागना होता है।


कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तो पिया न जाइ।।१९५२।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि कुम्हार की भट्ठी को तपाने में काफी समय लगता है। सिर समर्पण करने वाले ही पी सकते हैं, अन्यथा प्रिय नहीं मिलते।

Meaning: Kabir says that a potter’s kiln requires a long time to fire. Only those who offer their heads will drink, otherwise, the beloved will not come.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बताते हैं कि आत्मज्ञान और प्रेम प्राप्त करने में समय और धैर्य लगता है। जैसे कुम्हार की भट्ठी को अच्छे से गर्म करने में समय लगता है, वैसे ही सच्ची भक्ति के लिए पूर्ण समर्पण और धैर्य की आवश्यकता होती है। सिर समर्पण का अर्थ है कि हमें अपनी अहंकारिता को छोड़कर पूरी तरह से खुद को समर्पित करना होता है।


मैंमंता तिण नां चरै, सालै चिता सनेह।
एक बारि जु बांध्‍या प्रेम कै, डारि रह्या सिरि षेह।।१९५३।।

अर्थ: सांसारिक चीजों की ममता जलती चिता की तरह होती है। एक बार प्रेम से बंध जाने पर, व्यक्ति उसी में स्थिर रहता है, जैसे उसका सिर उसी के साथ बंधा हो।

Meaning: The attachment to worldly things is like a burning pyre. Once bound by love, one remains steadfast in it, as if their head is tied with it.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बताते हैं कि सांसारिक प्रेम और ममता स्थायी सुख प्रदान नहीं कर सकते, बल्कि यह तो एक जलती चिता की तरह होती है। सच्चे प्रेम के बंधन में बंध जाने पर, व्यक्ति उस प्रेम के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाता है। प्रेम का यह बंधन जीवन के हर पहलू में स्थिरता और संपूर्णता लाता है।


मैंमंता अविगत रता, अकलप आसा जीति।
राम अमलि माता रहै, जीवत मुकति अतीति।।१९५४।।

अर्थ: ममता अनजाने में लगातार बनी रहती है, यह अपरिवर्तित आशा को पराजित कर देती है। जब राम की पवित्रता माता के रूप में बनी रहती है, तब जीवन में ही मुक्ति प्राप्त होती है।

Meaning: Attachment is unknowingly persistent, it defeats the unconditioned hope. When Ram's pure essence remains as the mother, liberation is achieved in life itself.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने बताया है कि सांसारिक ममता और attachments अनजाने में स्थायी होती हैं, और ये वास्तविक आशा को हराती हैं। जब एक व्यक्ति राम की पवित्रता और उसकी मां के रूप में दिव्यता को अपने जीवन में स्वीकार कर लेता है, तो उसे इस जीवन में ही मुक्ति का अनुभव होता है। इसका तात्पर्य है कि आत्मा की सच्ची पहचान और समर्पण से ही मोक्ष प्राप्त होता है।


जिहि सर घड़ा न डूबता, अब मैंगल मलि मलि न्‍हाइ।
देवल बूड़ा कलम सूं, पंषि तिसाई जाइ।।१९५५।।

अर्थ: जिस घड़े का सर झील में डूबता नहीं, वह बार-बार मैल से स्नान करने के बावजूद, अंततः ईश्वरीय लेखक की कलम से नष्ट हो जाएगा, और पक्षी चले जाएंगे।

Meaning: The pitcher that does not sink in the pond, even if it repeatedly bathes in impurities, will eventually be destroyed by the pen of the divine writer, and the bird will depart.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह सिखाते हैं कि जो व्यक्ति अपने अंदर की अस्थिरता और पापों से मुक्त नहीं होता, वह भले ही बाहरी शुद्धता की कोशिश करता रहे, अंततः उसकी वास्तविक स्थिति बदलती नहीं है। ईश्वरीय लेखनी (जो भाग्य और कर्म को नियंत्रित करती है) से उसकी स्थिति तय होती है और अंततः उसे भी अपने कर्मों के अनुसार परिणाम भोगने पड़ते हैं।


सबै रसाइण मैं किया, हरि सा और न कोइ।
तिल इक घट मैं संचरै, तौ सबतन कंचन होइ।।१९५६।।

अर्थ: सभी रस मेरे भीतर हैं, हरि के जैसा कोई और नहीं है। यदि एक तिल का बीज संचित हो, तो सब कुछ सोने में बदल जाता है।

Meaning: All essences are within me, there is no other like Hari. If a single seed of sesame is contained, then everything turns into gold.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दर्शाते हैं कि सच्चे आत्मज्ञान में सभी रस और गुण समाहित होते हैं। जब एक व्यक्ति अपनी आत्मा में हरि की उपस्थिति को महसूस करता है, तो वह हर चीज को अमूल्य और दिव्य समझने लगता है। एक तिल का बीज प्रतीक है कि एक छोटी सी आंतरिक साधना भी सम्पूर्णता और अमृतत्व को प्रदान कर सकती है।


जहां जुरा मरण व्‍यापै नहीं, मुवा न सुणिये कोइ।
चलि कबीर तिहि देसड, जहां वैद विधाता होइ।।१९५७।।

अर्थ: जहां मृत्यु और रोगों का वास नहीं है, और कोई भी मरने की बात नहीं करता, कबीर उस देश की ओर जाते हैं जहां ईश्वरीय चिकित्सक और सर्जक निवास करते हैं।

Meaning: Where death and disease do not pervade, and no one is said to die, Kabir moves towards that land where the divine physician and creator reside.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने उस आध्यात्मिक स्थिति का वर्णन किया है जहां मृत्यु और बीमारी का कोई प्रभाव नहीं होता। यह स्थिति शाश्वत और अमर होती है। कबीर उस दिव्य भूमि की ओर इशारा कर रहे हैं जहां ईश्वर या परमात्मा रहते हैं, जो सृष्टि के सर्जक और उपचारक होते हैं। यह दोहा आत्मा की अमरता और दिव्य क्षेत्र की ओर संकेत करता है।


कबीर जोगी बनि बस्‍या, षणि खाये कंद मूल।
नां जाणौं किस जड़ी थै, अमर भए असथूल।।१९५८।।

अर्थ: कबीर ने योगी बनकर कंद और मूल खाकर जीवन यापन किया। मुझे नहीं पता कि कौन सी औषधि ने उन्हें अमर और निराकार बना दिया।

Meaning: Kabir became a yogi and lived on roots and tubers. I do not know which herb made him immortal and incorporeal.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने बताया है कि वे एक योगी के रूप में साधारण जीवन जीते थे और केवल कंद और मूल खाकर अपना गुजारा करते थे। लेकिन कबीर स्वीकारते हैं कि अमरता प्राप्त करने की विधि या रहस्य उनके लिए भी अज्ञात है। यह दोहा यह संकेत करता है कि अमरता और दिव्यता बाहरी साधनों या जड़ी-बूटियों से नहीं, बल्कि आंतरिक साधना और दिव्य ज्ञान से प्राप्त होती है।


कबीर हरि चरणौं चल्‍या, माया मोह थै टूटि।
गगन मंडल आसण किया, काल गया सिर कूटि।।१९५९।।

अर्थ: कबीर ने हरि के चरणों की राह पर चलकर माया और मोह से मुक्ति पाई। उन्होंने आकाश को अपनी आसन बनाया और काल ने उनकी मृत्यु की घोषणा की।

Meaning: Kabir walked on the path of Hari's feet, breaking free from illusion and attachment. He made the sky his seat, and time struck on his head.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्मज्ञान और भक्ति के माध्यम से सांसारिक मोह और माया से मुक्ति पाने की बात की है। जब कबीर ने हरि की भक्ति की राह पर चलना शुरू किया, तो उन्होंने सांसारिक बंधनों को तोड़ दिया और आकाश में ध्यान केंद्रित किया। 'काल सिर कूटना' का तात्पर्य है कि मृत्यु और समय उनके लिए अब कोई मायने नहीं रखते।


यह मन पटकि पछाड‍ि लै, सब आपा मिटि जाइ।
पगलु ह्वै पिव पिव करै, पीछौं काल न खाइ।।१९६०।।

अर्थ: जब मन को फेंक दिया जाता है, तो सारी अहंकारिता मिट जाती है। जो पागल व्यक्ति बार-बार पीता है, वह समय द्वारा नहीं खाया जाता।

Meaning: When the mind is cast off and thrown away, all ego vanishes. The mad person who drinks and drinks, is not eaten by time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की अहंकारिता को त्यागने और आत्म-साक्षात्कार की ओर इशारा किया है। जब व्यक्ति अपने मन और अहंकार को त्याग देता है, तो वह समय और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। यहाँ 'पगलु' शब्द का प्रयोग यह दर्शाता है कि पूर्ण समर्पण और भक्ति से व्यक्ति काल की सीमा से परे चला जाता है।


कबीर मन तीषा किया, बिरह लाइ परषांन।
चित चरणूं मैं चभि रह्या, तहां नहीं काल का पाण।।१९६१।।

अर्थ: कबीर ने अपने मन को तीखी धार वाला औजार बना लिया, जो विरह के कष्ट से परेशान था। उनका चित्त हर समय हरि के चरणों में लगा रहा, जहां काल की पहुंच नहीं है।

Meaning: Kabir made his mind a razor, troubled by the pain of separation. His heart remained fixed on the feet, where time’s hand does not reach.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अपने मन को विरह और भक्ति के संदर्भ में एक तीखी धार वाला औजार बताया है। जब मन पूरी तरह से हरि की भक्ति और चरणों में ध्यान केंद्रित हो जाता है, तो वह काल और मृत्यु की पहुंच से परे हो जाता है। इसका अर्थ है कि सच्चे भक्ति से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।


तरवर तास बिलांबिए, बारह मास फलंत।
सीतल छाया गहर फल, पंषी केलि करंत।।१९६२।।

अर्थ: वृक्ष धीरे-धीरे फलता है और बारह महीने फल देता है। ठंडी छाया बनी रहती है, जबकि पक्षी अपनी खेल-कूद में व्यस्त रहते हैं।

Meaning: The tree takes its time, and bears fruit for twelve months. The cool shade remains, while the birds continue their play.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने वृक्ष की उपमा का उपयोग करते हुए स्थिरता और धैर्य की बात की है। जैसे वृक्ष धीरे-धीरे फल देता है और अपनी छाया प्रदान करता है, उसी तरह, साधक को भी धैर्य और समय के साथ अपने प्रयासों का फल मिलता है। यह दोहा हमें यह सिखाता है कि आत्मिक शांति और संतोष धैर्य और समर्पण से ही प्राप्त होते हैं।


दाता तरवर दया फल, उपगारी जीवंत।
पंषा चले दिसावरां, विरषा सुफल फलंत।।१९६३।।

अर्थ: दाता का वृक्ष दया का फल देता है, जो जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी होता है। पक्षी विभिन्न दिशाओं में जाते हैं, और वर्षा फलदायी परिणाम लाती है।

Meaning: The tree of the giver bears fruit of compassion, which is beneficial to the living. The birds go to different directions, and the rain produces fruitful results.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने दाता वृक्ष की दया और कृपा की बात की है। जैसे वृक्ष दया से फल देता है और सबको शीतलता प्रदान करता है, वैसे ही एक दाता भी अपने दान और दया से सबके जीवन में सुख और समृद्धि लाता है। यहाँ 'पक्षी' और 'वर्षा' का संकेत है कि दया और करुणा के फल सभी जीवों को लाभ पहुंचाते हैं और समाज में सुख और शांति का संचार करते हैं।


ऐसा कोई ना मिले, हम कौं दे उपदेस।
भौसागर मैं डूबता, कर गहि काढ़े केस।।१९६४।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो हमें सही उपदेश दे सके। जब हम सांसारिक समुद्र में डूब रहे होते हैं, तो कौन हमारी जुल्फें पकड़कर हमें बाहर निकालता है?

Meaning: No one is found to give us advice. While we are drowning in the ocean of worldly existence, who will grasp our hair and pull us out?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सांसारिक जीवन की कठिनाइयों और मोह की स्थिति को दर्शाया है। उन्होंने इसे एक समुद्र के रूप में चित्रित किया है जिसमें लोग डूब रहे हैं। कबीर ने इस बात पर चिंता जताई है कि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलता जो हमें इस स्थिति से बाहर निकाल सके और सही मार्ग दिखा सके।


ऐसा कोई न मिले, हम कौं लेइ पिछानि।
अपना करि किरपा करे, ले उतारे मैदानि।।१९६५।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो हमें उठाकर बचा सके। केवल अपनी करुणा से ही हम संघर्ष के क्षेत्र से बाहर निकल सकते हैं।

Meaning: No one is found to lift us up and rescue us. Only by showing mercy to ourselves, we can be saved from the field of strife.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्म-करुणा और आत्म-सहायता की महत्वपूर्णता को व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि बाहरी मदद की कमी के बावजूद, आत्म-प्रेम और करुणा से हम अपनी समस्याओं और संघर्षों से बाहर निकल सकते हैं।


ऐसा कोई ना मिले, राम भगति का गीत।
तन मन सौंपे मृग ज्‍यूं, सुनै बधिक का गीत।।१९६६।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो राम की भक्ति का गीत गा सके। जैसे एक हिरण अपने तन और मन को पूरी तरह से सौंप देता है और शिकारी के गीत को सुनता है।

Meaning: No one is found to sing the song of Ram's devotion. Just as a deer surrenders its body and mind, it listens to the hunter's song.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने राम की भक्ति और समर्पण की बात की है। उन्होंने इसे एक हिरण के उदाहरण से स्पष्ट किया है, जो अपने पूरे अस्तित्व को शिकार के गीत को सुनने के लिए समर्पित कर देता है। यह भक्ति और समर्पण की गहराई को दर्शाता है, जो सच्ची भक्ति में अपेक्षित है।


ऐसा कोई ना मिले, अपना घर देइ जराइ।
पंचूं लरिका पटिक करि, रहै राम ल्‍यौं लाइ।।१९६७।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो अपने घर को आग लगा दे। पांच बच्चे भिखारी के कपड़े पहनकर, वहीं राम भी स्थिर रहते हैं।

Meaning: No one is found who will set fire to their own house. Five children are dressed as beggars, while Ram remains in the same place.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अपने घर को आग लगाने के रूपक का उपयोग किया है, जो अपनी आसक्ति और संसारिक संपत्ति को छोड़ने के लिए होता है। यहाँ 'पांच बच्चे' प्रतीक हैं, जो भिखारी के वस्त्र पहनकर अपने आंतरिक पवित्रता को दर्शाते हैं, जबकि राम का स्थिर रहना यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से ही आत्मा की शांति प्राप्त होती है।


ऐसा कोई ना मिले, जासौं रहिये लागि।
सब जग जलता देखिये, अपणीं अपणीं आगि।।१९६८।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो स्थिर और अपरिवर्तित रहे। पूरे जगत को जलते हुए देखना पड़ता है और खुद की आग पर ध्यान देना होता है।

Meaning: No one is found who remains constant. Seeing the whole world burning, one must attend to their own fire.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने बाहरी दुनिया के बदलाव और अशांति के बीच खुद की आंतरिक स्थिति को बनाए रखने की बात की है। जब हम पूरे जगत को जलते हुए देखते हैं, तो हमें अपनी आंतरिक समस्याओं और चिंताओं पर ध्यान देना होता है। यह आत्म-निरीक्षण और आंतरिक शांति की आवश्यकता को दर्शाता है।


ऐसा कोई ना मिले, सब विधि देइ बताइ।
सुंनि मंडल मैं पुरिष एक, ताहि रहै ल्‍यो लाइ।।१९६९।।

अर्थ: कोई ऐसा नहीं मिलता जो सब विधियों को स्पष्ट कर सके। संसार के मंडल में केवल एक ही व्यक्ति ऐसा है जो स्थिर और अपरिवर्तित रहता है।

Meaning: No one is found who explains everything as per the laws of nature. In the circle of existence, there is only one person who remains constant.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कहा है कि संसार में कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से सभी विधियों और नियमों को नहीं समझा सकता। केवल एक ही शाश्वत सत्य है जो हर परिस्थिति में स्थिर रहता है। यहाँ स्थिरता और निरंतरता की ओर इशारा किया गया है, जो केवल दिव्य तत्व या परमात्मा में प्राप्त होती है।


हम देखत जग जात है, जग देखत हम जांह।
ऐसा कोई ना मिले, पकड़‍ि छुड़ावे बांह।।१९७०।।

अर्थ: हम दुनिया को उसकी चाल देख रहे हैं, और दुनिया हमें हमारे चलने के दौरान देखती है। कोई ऐसा नहीं मिलता जो हमारी पकड़ को छोड़ सके और हमें स्वतंत्र कर सके।

Meaning: We observe the world as it moves, and the world observes us as we go. No one is found who can grasp and release the arm.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार की गतिशीलता और आत्मा की स्थिति को दर्शाया है। जब हम संसार को देख रहे होते हैं, तो संसार भी हमें देखता है। लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलता जो हमारी आत्मा की बंधनों को खोल सके और हमें पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान कर सके। यह स्वतंत्रता और आत्मज्ञान की खोज की बात करता है।


तीनि सनेही बहु मिले, चौथे मिले न कोइ।
सब पियारे राम के, बैठे परबसि‍ होइ।।१९७१।।

अर्थ: तीन लोकों में बहुत से प्रेमी मिलते हैं, लेकिन चौथे लोक में कोई नहीं मिलता। सभी प्रेमी राम के हैं, जो उनके नियंत्रण में होते हैं।

Meaning: Many lovers are found in the three realms, but no one is found in the fourth. All beloveds are of Ram, who are under His control.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कहा है कि संसार के तीन लोकों में बहुत से प्रेमी और भक्त होते हैं, लेकिन चौथे लोक, जो पूर्णता और दिव्यता का प्रतीक है, में कोई नहीं मिलता। सभी प्रेमी और भक्त अंततः राम के नियंत्रण में होते हैं और उनकी इच्छा के अनुसार होते हैं। यह दोहा परमात्मा के प्रति समर्पण और उसकी इच्छा के प्रभाव को दर्शाता है।


माया मिले महोबंती, कूड़े आखे बैन।
कोई घायल बेध्‍या ना मिलै, साई हंदा सैण।।१९७२।।

अर्थ: माया (भ्रम) महान आनंद देती है, लेकिन यह कूड़े की आवाज़ की तरह है। कोई घायलों को ठीक करने वाला या उद्धारक नहीं मिलता, केवल अंधे और असहाय लोग मिलते हैं।

Meaning: Maya (illusion) gives great pleasure, but it is like the sound of trash. No healer or savior is found to cure the wounded, only the blind and helpless ones.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने माया और भ्रम की प्रकृति को उजागर किया है। माया एक प्रकार का भ्रामक सुख प्रदान करती है, जो बाहरी रूप से आनंददायक हो सकती है लेकिन उसकी वास्तविकता में केवल विकृति होती है। यहाँ 'घायल' और 'अंधे' का संकेत है कि सही मार्गदर्शक और वास्तविक उद्धारक का अभाव है।


सारा सूरा बहु मिलैं, घाइल मिले न कोइ।
घाइल ही घाइल मिले, तब राम भगति दिढ़ होइ।।१९७३।।

अर्थ: बहुत से लोग शराब के साथ मिलते हैं, लेकिन कोई घायल नहीं मिलता। केवल घायल व्यक्ति ही राम की भक्ति को प्राप्त करता है।

Meaning: Many are found with wine, but no one is found with wounds. Only the wounded find the way to Ram's devotion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भौतिक सुख और आत्मिक स्थिति के अंतर को दर्शाया है। शराब या भौतिक आनंद से केवल बाहरी सुख मिल सकता है, लेकिन असली भक्ति और आत्मज्ञान केवल तब ही प्राप्त होता है जब व्यक्ति भीतर से घायल और आत्मसाक्षात्कार के लिए तैयार होता है। यह दोहा आत्मिक दर्द और भक्ति की गहराई को दर्शाता है।


हम घर जाल्‍या आपणां, लिया मूराड़ा हाथिम।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।१९७४।।

अर्थ: हमने अपने घर को जला दिया है और हाथ में राख ले ली है। अब, अगर घर हमारे साथ जलता है, तो जलने दो।

Meaning: We have burned our own house and taken a handful of ashes. Now, if the house burns with us, let it be.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आंतरिक परिवर्तन और आत्म-समर्पण की बात की है। जब व्यक्ति अपनी पुरानी सांसारिक वस्तुओं और बंधनों को छोड़ देता है, तो वह किसी भी नई चुनौती या कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार होता है। यह व्यक्तिगत और आत्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है।


पाइ पदारथ पेलि करि, कंकर लीया हाथि।
जोड़ी बिछुटी हंस की, पड्या बंगा कै साथि।।१९७५।।

अर्थ: खजाना प्राप्त कर लेने के बाद, मैंने एक कंकर अपने हाथ में ले लिया। बिछड़े हुए हंसों ने उसे पाया और नदी के किनारे विश्राम किया।

Meaning: Having obtained the treasure, I took a pebble in my hand. The pair of separated swans found it and rested by the riverbank.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने वास्तविकता और भ्रम के बीच अंतर को स्पष्ट किया है। भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के बाद, व्यक्ति किसी साधारण चीज को भी अनमोल मान सकता है। यहाँ 'बिछड़े हंस' का संदर्भ बताता है कि सच्ची पहचान और आत्मज्ञान के बाद, साधारण चीजें भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं।


एक अचंभा देखिया, हीरा हाटि बिकाइ।
परिषणहारे बाहिरा, कौड़ी बदले जाइ।।१९७६।।

अर्थ: मैंने एक आश्चर्य देखा: हीरे बाजार में बिक रहे हैं। दुर्लभ बाहरी पत्थर को कौड़ी के लिए बदला जाता है।

Meaning: I saw a wonder: diamonds are sold in the market. The rare outer stones are exchanged for cowries.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मूल्य और वस्तुओं की सापेक्षता को दर्शाया है। उन्होंने बताया है कि दुनिया में आमतौर पर मूल्यवान चीज़ें भी सस्ते और मामूली वस्तुओं के लिए बदल दी जाती हैं। यह दोहा हमारे भौतिक दृष्टिकोण और वास्तविकता की परख को संदर्भित करता है।


कबीर गुदड़ी बीषरी, सौदा गया बिकाइ।
खोटा बांध्‍या गांठड़ी, इब कुछ लिया न जाइ।।१९७७।।

अर्थ: कबीर की पुरानी गुदड़ी बिक गई है। जो झूठी गांठ बांधी गई थी, अब कुछ भी नहीं लिया जाता।

Meaning: Kabir's worn-out rag has been sold. The false knot that was tied, now nothing is taken.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने पुराने और दोषपूर्ण विश्वासों या वस्तुओं के महत्व को समाप्त होने की बात की है। जब इन वस्तुओं का मूल्य समाप्त हो जाता है, तो व्यक्ति को समझ में आता है कि सच्ची मूल्यवानता और ज्ञान कुछ और ही होते हैं। यह आत्मिक सफाई और सच्चाई की प्राप्ति की ओर संकेत करता है।


पैड़ै मोती बिखरया, अंधा निकस्‍या आइ।
जोति बिनां जगदीस की, जगत उलंघ्‍या जाइ।।१९७८।।

अर्थ: मोती जमीन पर बिखरे हुए हैं, लेकिन अंधा उन्हें देख नहीं सकता। दिव्य प्रकाश के बिना, संसार को पार करना असंभव है।

Meaning: Pearls are scattered on the ground, but the blind cannot see them. Without the light of the divine, the world is crossed over.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने दिव्य ज्ञान की आवश्यकता को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया है कि चाहे कितना भी मूल्यवान और महत्वपूर्ण क्यों न हो, अगर हमें दिव्य ज्ञान और दृष्टि प्राप्त नहीं है, तो हम उसकी असली मूल्य को नहीं पहचान सकते। यह दोहा आत्मज्ञान की महत्वता को दर्शाता है।


कबीर यहु जग अंधला, जैसी अंधी गाइ।
बछा था सो मरि गया, ऊभी चांम चटाइ।।१९७९।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, यह संसार अंधा है, जैसे अंधी गाय। बछड़ा पैदा हुआ लेकिन मर गया, और उसकी चमड़ी रह गई।

Meaning: Kabir says, this world is blind, just like a blind cow. The calf was born but has died, and the skin is left behind.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार की स्थिति को अंधेपन के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने अंधी गाय और मर चुके बछड़े का उदाहरण देकर बताया है कि जैसे संसार अंधा है और उसके कुछ वास्तविक मूल्य नहीं हैं। यह वास्तविकता और संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है।


चंदन की कुटकी भली, नां बंबुर को अवरांऊं।
वैसनो की छपरी भलो, नां साषत का बड गाउं।।१९८०।।

अर्थ: चंदन की छोटी सी कुटकी हजारों भौंरों से बेहतर है। संतों की एक छोटी सी झोपड़ी एक बड़े विद्वानों के गांव से बेहतर है।

Meaning: A small piece of sandalwood is better than a thousand bumblebees. A small hut of saints is better than a large village of scholars.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने साधारण और सरल चीजों की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उन्होंने बताया है कि भले ही बाहरी रूप से छोटी और साधारण चीजें हों, लेकिन वे उच्च और मूल्यवान होती हैं। यह भौतिकता की अस्थायी प्रकृति की तुलना में आत्मिक मूल्य की स्थिरता को दर्शाता है।


पुरपाटण सुबस बसै, आनंद ढांये ढांइ।
राम सनेही बाहिरा, ऊंजड़ मेरे भांइ।।१९८१।।

अर्थ: पुराना वस्त्र अच्छा लगता है, और इसका आनंद अनगिनत है। राम का प्रिय बाहर है, और मैं पीछे रह गया हूँ।

Meaning: The old garment sits well, and the joy it brings is indescribable. The beloved of Ram is outside, and I am left behind.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने पुराने और पारंपरिक वस्त्रों के आराम और सुख को दर्शाया है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि राम का प्रिय व्यक्ति बाहर है, और कबीर स्वयं को पीछे छोड़ दिया हुआ महसूस करते हैं। यह आत्मिक संयोग और भक्ति के साथ जुड़ने के विषय को दर्शाता है।


जिहं घरि साध न पूजिये, हरि की सेवा नांहि।
ते घर मुड़हट सारषे, भूत बसै तिन मांहि।।१९८२।।

अर्थ: जहाँ साधुओं की पूजा नहीं होती और हरि की सेवा नहीं की जाती, वह घर बेकार है और वहां भूत निवास करते हैं।

Meaning: Where saints are not honored, and service to Hari is not performed, that house is of no worth, inhabited by ghosts.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने उन घरों की अवहेलना की है जहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ नहीं होतीं। उन्होंने कहा है कि ऐसे घरों का कोई महत्व नहीं होता और वे भूतों द्वारा निवासित होते हैं। यह दोहा धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों की महत्वता को दर्शाता है।


है गै गैंवर सघन घन, छत्र धजा फहराइ।
ता सुख थैं भिष्‍या भली, हरि सुमिरत दिन जाइ।।१९८३।।

अर्थ: घने बादल की छांव और झंडा फहराता हुआ दृश्य बहुत सुखद है। इस सुख की तुलना में गर्मी की पीड़ा कम है; हरि का स्मरण करते हुए दिन सुखपूर्वक बीत जाता है।

Meaning: The dark cloud of thick rain, with the flag fluttering. The comfort of that is better than the heat; by remembering Hari, the day passes peacefully.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने गर्मी और धूप के विपरीत घने बादल की छांव की सुखदता की बात की है। उन्होंने यह भी कहा है कि हरि का स्मरण करके दिन अच्छे से बीत जाता है, जो इस धरती की परेशानियों से मुक्ति प्रदान करता है। यह भक्ति और ध्यान के माध्यम से शांति की प्राप्ति को दर्शाता है।


क्‍यूं नृप नारी नींदये, क्‍यूं पनिहारी कौं मान।
व मांग संवारै पीव कौं, वा नित उठि सुमिरै राम।।१९८४।।

अर्थ: राजा और रानी क्यों सोते हैं, और पानी भरने वाली को क्यों सम्मानित किया जाता है? जो दुल्हन को सजाता है और हमेशा राम का स्मरण करता है, वही सच्चे सम्मान का पात्र है।

Meaning: Why do the king and queen sleep, and why is the water carrier honored? One who adorns the bride and always remembers Ram, is truly honored.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कहा है कि भौतिक सम्मान और सोना कुछ भी नहीं है। सच्चा सम्मान उस व्यक्ति को मिलता है जो हर समय राम का ध्यान करता है और भक्ति में लीन रहता है। यह भक्ति और आध्यात्मिक समर्पण की वास्तविकता को उजागर करता है।


कबीर धनि ते सुंदरी, जिन जाया बैसनौं पूत।
राम सुमरि नरिभै हुवा, सब जग गया अऊत।।१९८५।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि धनवान और सुंदर स्त्री, जिनके पास पुत्र और धन है, ने राम का स्मरण करके वास्तविक महानता प्राप्त की है। पूरी दुनिया उसकी प्रशंसा करती है।

Meaning: Kabir says, the rich and beautiful woman, who has sons and wealth, has attained true greatness by remembering Ram. All the world is in awe of her.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने उस महिला की महानता को बताया है जो धन और सौंदर्य के बावजूद राम का स्मरण करती है। उनका कहना है कि वास्तविक महानता और सम्मान केवल भक्ति और आस्था से प्राप्त होती है, न कि भौतिक संपत्ति से। यह भक्ति के महत्व को दर्शाता है।


कबीर कुल तौं सो भला, जिहि कुल उपजै दास।
जिहि कुल दास न ऊपजै, सो कुल आक पलास।।१९८६।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक कुल तब ही अच्छा होता है जब उसमें भगवान के सेवक उत्पन्न होते हैं। जो कुल ऐसे सेवक नहीं उत्पन्न करता, वह बंजर वृक्ष की तरह है।

Meaning: Kabir says, a family is truly good if it gives rise to servants of God. A family that does not produce such servants is like a barren tree.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने परिवार और समाज की वास्तविक सफलता को धार्मिक और आध्यात्मिक सेवा से जोड़ा है। एक ऐसा परिवार जो ईश्वर के सेवकों को जन्म देता है, वही वास्तव में अच्छा है। अन्यथा, वह परिवार व्यर्थ और बंजर होता है। यह आध्यात्मिकता और सेवा के महत्व को दर्शाता है।


साषत बांभण मति मिलै, बैसनौं मिलै चंडाल।
अंकमाल दे भेटिये, मांनों मिले गोपाल।।१९८७।।

अर्थ: ज्ञान ब्राह्मणों के पास मिलता है और निचली जातियों के लोग बाहर के होते हैं। जब हम दिव्य को मिलते हैं, तो यह गोपाल (कृष्ण) से मिलने जैसा होता है।

Meaning: Wisdom is found with the Brahmins, and the lower castes are met with outcasts. When we meet the divine, it is like meeting Gopal (Krishna).

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सामाजिक भेदभाव और धार्मिक ज्ञान की बात की है। उन्होंने कहा है कि वास्तविक दिव्य अनुभव, चाहे किसी भी जाति या सामाजिक वर्ग से संबंधित हो, सबके लिए समान होता है। जब हम दिव्य से मिलते हैं, तो वह सभी भौतिक और सामाजिक विभाजनों से ऊपर होता है। यह भक्ति और समरसता की भावना को प्रकट करता है।


राम जपत दालिद भला, टूटि घर की छांनि।
ऊचे मंदिर जालि दे, जहां भगति न सारंगपांनि।।१९८८।।

अर्थ: राम का जाप गरीबों के लिए अच्छा है, चाहे घर की छत टूट जाए। ऊंचे मंदिर को आग लगा दो जहां भक्ति नहीं पहुंचती।

Meaning: Chanting Ram is good for the poor, even if the roof of the house breaks. Set fire to the high temple where devotion does not reach.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्ति की वास्तविकता को दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि भगवान का स्मरण और भक्ति गरीबों के लिए भी अमूल्य होती है, जबकि भव्य मंदिरों की कोई महत्ता नहीं है यदि वहां सच्ची भक्ति नहीं है। यह भक्ति के सहजता और उसकी वास्तविकता की ओर इशारा करता है।


निरबैरी निहकांमता, सांई सेती नेह।
विषिया सूं न्‍यारा रहै, संतहि का अंग एह।।१९८९।।

अर्थ: निस्सारता और विनम्रता ही ईश्वर के साथ प्रेम की असली निशानी है। सांसारिक इच्छाओं से परे रहना, यही संत की पहचान है।

Meaning: Harmlessness and humility are the essence of love with the divine. Being detached from worldly pleasures, this is the true mark of a saint.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संत के गुणों को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया है कि संत वह होता है जो न तो किसी से बैर रखता है और न ही दुनियावी इच्छाओं में लिप्त रहता है। वास्तविक प्रेम और भक्ति ईश्वर के प्रति सच्चे समर्पण में होती है। यह आत्मिक परिपक्वता और संतत्व को दर्शाता है।


संत न छाडै संतई, जे कोटिक मिलैं असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया, तउ सीतलता न तजंत।।१९९०।।

अर्थ: संत अपनी संतता को नहीं छोड़ता, भले ही लाखों असंत उसे घेरे हों। जैसे चंदन जलते समय भी अपनी ठंडक नहीं छोड़ता, वैसे ही सच्चा संत अपनी मूलता को नहीं छोड़ता।

Meaning: A saint does not abandon his saintliness even if millions of ungodly people come. Just as sandalwood does not lose its coolness while burning, a true saint does not lose his essence.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संत की स्थिरता और उसके गुणों को बताया है। उन्होंने कहा है कि सच्चा संत अपनी नैतिकता और गुणों को बनाए रखता है, चाहे उसे कितना भी विरोध या चुनौतियों का सामना करना पड़े। चंदन की ठंडक की तुलना कर के संतत्व की स्थिरता को दर्शाया गया है।


कबीर हरि का भावता, झीणां पंजर तास।
रैणि न आवै नींदड़ी, अंगि न चढ़ई मास।।१९९१।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि जो हरि की उपस्थिति को महसूस करता है, उसके लिए एक पतली चादर भी पर्याप्त होती है। वह रात को सो नहीं पाता और समय का अहसास भी नहीं होता।

Meaning: Kabir says, the one who feels the presence of Hari, even a thin cover is enough for him. He does not find sleep at night, and the body does not feel the passage of time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्ति की गहराई और उसके प्रभाव को दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि सच्चे भक्त के लिए साधारण सुख-सुविधाएं भी काफी होती हैं और भक्ति में डूबा हुआ व्यक्ति समय की परवाह नहीं करता। यह भक्ति की वास्तविक अनुभूति और उसके असर को दर्शाता है।


अणरता सुका सीवणां, रातै नींद न आइ।
ज्‍यूं जल टूटै मंछली, यूं बेलंत बिहाइ।।१९९२।।

अर्थ: आत्मा की प्यास सूखे नदी की तरह है, रात को नींद नहीं आती। जैसे पानी से बाहर मछली तड़पती है, वैसे ही आत्मा अपनी तृष्णा में तड़पती है।

Meaning: The thirst of the soul is like a dried-up river, it does not find sleep at night. Just as a fish out of water flounders, so does the soul in its longing.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्मा की प्यास और तृष्णा को सूखी नदी और मछली के माध्यम से व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि जब आत्मा को आत्मिक तृप्ति नहीं मिलती, तो वह असीम पीड़ा और तड़प का अनुभव करती है। यह आध्यात्मिक प्यास और उसकी वास्तविकता को उजागर करता है।


जिन्‍य कुछ जाण्‍या नहीं तिन्‍ह, सुख नींदड़ी बिहाइ।
भैर अबूझी बूझिया, पूरी पड़ी बलाइ।।१९९३।।

अर्थ: जो कुछ भी नहीं जानते, उन्हें सुख और नींद मिलती है। अज्ञात भय दूर हो जाता है, और वे पूरी तरह से आनंद में लीन रहते हैं।

Meaning: Those who do not know anything, find comfort and sleep. The incomprehensible fear is dispelled, and they remain completely absorbed in bliss.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ज्ञान और अज्ञान के प्रभावों की बात की है। उन्होंने कहा है कि जो लोग जीवन के रहस्यों को नहीं समझते, वे सरलता से सुख और शांति का अनुभव करते हैं। जबकि ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की खोज में अज्ञात भय और संघर्ष होते हैं। यह ज्ञान की प्राप्ति और उसके प्रति भिन्न दृष्टिकोण को दर्शाता है।


जांण भगत का नित मरण, अणजाणे का राज।
सर अपसर समझै नहीं, पेट भरण सूं काज।।१९९४।।

अर्थ: भक्त ज्ञान में निरंतर मरता रहता है, जबकि अज्ञानी आराम की खोज करते हैं। वे आत्मा की वास्तविकता को नहीं समझते और केवल अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति में लगे रहते हैं।

Meaning: The devotee is constantly dying in knowledge, while the ignorant seek comfort. They do not understand the essence of the self and are only concerned with fulfilling their basic needs.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्त और अज्ञानी के दृष्टिकोण का अंतर दर्शाया है। भक्त ज्ञान की खोज में लगातार आत्मिक मृत्यु का अनुभव करता है, जबकि अज्ञानी केवल सांसारिक आराम और भौतिक जरूरतों में व्यस्त रहते हैं। यह जीवन के दो भिन्न दृष्टिकोणों और उनकी वास्तविकता को उजागर करता है।


जिहि घटि जांण बिनांण है, तिहि घटि आबटणां घणां।
बिन षडै संग्राम है, नित उठि मन सौं झूझुणां।।१९९५।।

अर्थ: जहां ज्ञान का अभाव होता है, वहां बहुत कष्ट होते हैं। षडयुद्ध के बिना, मन रोज संघर्ष करता है और परेशान रहता है।

Meaning: In a place where there is no knowledge, there is much suffering. Without the six stages of conflict, the mind rises and struggles daily.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ज्ञान के अभाव और उसके परिणामों की बात की है। उन्होंने कहा है कि जहां ज्ञान की कमी होती है, वहां लगातार कष्ट और संघर्ष होते रहते हैं। षडयुद्ध (आध्यात्मिक संघर्ष) के बिना, मन अपनी परेशानियों और समस्याओं से जूझता रहता है। यह ज्ञान और आध्यात्मिक संघर्ष के महत्व को दर्शाता है।


राम वियोगी तन बिकल, ताहि न चीन्‍है कोइ।
तंबोली के पान ज्‍यूं, दिन दिन पीला होइ।।१९९६।।

अर्थ: जो राम से वियोगी है, उसका शरीर कष्ट में रहता है, लेकिन कोई इसे पहचानता नहीं है। जैसे पान का पत्ता दिन-प्रतिदिन पीला होता जाता है, वैसे ही उस व्यक्ति का शरीर भी ढलता जाता है।

Meaning: The body of the one separated from Ram is in distress, but no one recognizes this. Just like the betel leaf turns yellow day by day, so does the body of such a person.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने राम से वियोग की स्थिति और उसके प्रभावों को व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति राम से वियोग में रहता है, उसका शरीर और जीवन दुखी हो जाता है, लेकिन यह दुख अक्सर दूसरों द्वारा अनदेखा रहता है। यह भक्ति और उसके अभाव के असर को दर्शाता है।


पीलक दौड़ी सांइयां, लोग कहै पिंड रोग।
छांनै लंघण नित करै, राम पियारे जोग।।१९९७।।

अर्थ: पागल व्यक्ति दौड़ता रहता है, लोग इसे शरीर की बीमारी कहते हैं। लेकिन जो व्यक्ति प्रतिदिन भक्ति करता है, वह राम की सच्ची योग साधना में लीन रहता है।

Meaning: The mad person runs about, people call it a disease of the body. But the one who practices devotion daily is engaged in the true yoga of Ram.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्ति की महत्वपूर्णता को और बाहरी दुनिया की समझ को स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति भक्ति में दिन-रात व्यस्त रहता है, वह सच्चे योग की साधना कर रहा है, भले ही बाहरी दुनिया उसे पागल या बीमार मानें। यह भक्ति के प्रति समर्पण और समाज के पूर्वाग्रहों की आलोचना को दर्शाता है।


काम मिलावे राम कूं, जे कोइ जांणे राषि।
कबीर बिचारा क्‍या करे, जाकी सुखदेव बोले साषि।।१९९८।।

अर्थ: जो व्यक्ति कर्म के सार को समझता है, वह राम को प्राप्त करता है। बेचारे कबीर क्या कर सकते हैं, जिनकी प्रशंसा खुद सुखदेव ने की है?

Meaning: One who understands the essence of work achieves Ram. What can the poor Kabir do, whom even Sukdev has praised?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कर्म के महत्व को और उसकी आध्यात्मिक प्राप्ति को दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति कर्म के गहरे अर्थ को समझता है, वह राम की प्राप्ति करता है। कबीर ने अपनी स्थिति को व्यक्त किया है, जहां वह भी महान संतों द्वारा सराहा गया है, लेकिन उनकी भूमिका सीमित है।


कांमणि अंग बिरकत भया, रत भया हरि नांहि।
साषी गोरखनाथ ज्‍यूं, अमर भए कलि मांहि।।१९९९।।

अर्थ: भक्त का शरीर वैराग्यपूर्ण हो गया है, और वह हरि में लीन है। जैसे गोरखनाथ ने कलियुग में अमरता प्राप्त की, वैसे ही वह भी अमर हो गया है।

Meaning: The devotee's body has become detached, and he is absorbed in Hari. Just like Gorakhnath, he has become immortal in this Kali Yuga.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्त की आत्मिक स्थिति और वैराग्य की महत्ता को दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि जब भक्त हरि में पूरी तरह से समाहित हो जाता है, तो उसका शरीर वैराग्यपूर्ण हो जाता है। गोरखनाथ की तरह, वह भी इस कलियुग में अमरता प्राप्त कर लेता है।


जदि बिषै पियारी प्रीति सूं, तब अंतर हरि नांहि।
जब अंतर हरि जी बसै, तब विषिया सूं चित्त नांहि।।२०००।।

अर्थ: यदि कोई व्यक्ति संसार से गहरी प्रेम करता है, तो दिव्य तत्व अंतर में निवास नहीं करता। जब अंतर में दिव्य तत्व निवास करता है, तब मन संसारिक इच्छाओं की ओर आकर्षित नहीं होता।

Meaning: If one loves the world with deep affection, then the divine does not dwell within. When the divine resides within, the mind is not attracted to worldly pleasures.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने प्रेम और भक्ति के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा है कि जब व्यक्ति संसारिक प्रेम और इच्छाओं में डूबा होता है, तो भीतर दिव्य तत्व का निवास नहीं होता। लेकिन जब अंतर में दिव्य तत्व निवास करता है, तो मन संसारिक इच्छाओं से अछूता रहता है।