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संत कबीर जी के दोहे — 1901 to 1950

झल बांयें झल दांहिनैं, झलहि मांहि ब्‍यौहार।
आगैं पीछे झलमई, राखै सिरजनहार।।१९०१।।

अर्थ: दुनिया बाईं, दाईं ओर और हर क्रिया में फंसी हुई है। फिर भी, सृष्टिकर्ता सभी को बनाए रखता है, उन्हें आगे और पीछे से बचाता है।

Meaning: The world is ensnared to the left, to the right, and in every action. Yet, the Creator sustains all, protecting them in the front and back.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी इस संसार की उलझनों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति हर दिशा में, हर कार्य में उलझा हुआ है। लेकिन भगवान सभी की रक्षा करते हैं और उन्हें जीवन में सुरक्षित रखते हैं। यह दोहा हमें इस बात का एहसास कराता है कि चाहे जीवन में कितनी भी उलझनें क्यों न हों, सृष्टिकर्ता हमेशा हमारी रक्षा करता है।


सांई मेरा बांणियां, सहजि करै ब्‍यौपार।
बिन डांडी बिन पालड, तोलै सब संसार।।१९०२।।

अर्थ: मेरा प्रभु सच्चा व्यापारी है, जो अपने व्यापार को सहजता से करता है। बिना किसी तराजू या बाट के, वह पूरे संसार को तौलता है।

Meaning: My Lord is a true merchant, conducting His business effortlessly. Without any scales or balance, He measures the entire world.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी भगवान को एक सच्चे व्यापारी के रूप में वर्णित करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान बिना किसी साधन के ही पूरे संसार को तौलते हैं, यानी वे हर चीज का आकलन और न्याय करते हैं। यह दोहा भगवान की सर्वज्ञता और उनके न्यायपूर्ण स्वभाव को उजागर करता है।


कबीर बारया नाव परि, कीया राई लूंण।
जिसहि चलावै पंथ तूं, तिसहि भुलावै कौंण।।१९०३।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, सत्य की नाव पर चढ़ने के बाद, एक चुटकी नमक भी पर्याप्त हो जाती है। जिन्हें सच्चा मार्गदर्शन प्राप्त होता है, उन्हें कौन भटका सकता है?

Meaning: Kabir says, once you've boarded the boat of truth, even a pinch of salt becomes enough. Who can mislead those whom the true path guides?

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी सत्य और ईश्वर पर विश्वास रखने की महत्ता पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जब व्यक्ति सत्य की राह पर चलने लगता है, तो छोटी से छोटी चीज भी उसके लिए पर्याप्त हो जाती है। जो व्यक्ति सच्चे मार्ग पर है, उसे कोई भी गलत दिशा में नहीं ले जा सकता। यह दोहा ईश्वर और सत्य में अडिग विश्वास की प्रेरणा देता है।


कबीर करणी क्‍या करै, जे राम न करै सहाइ।
जिहि जिहि डाली पग धरै, सोई नवि नवि जाइ।।१९०४।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, यदि भगवान मदद न करें तो कर्म क्या कर सकते हैं? जिस भी डाल पर आप कदम रखते हैं, वह झुक जाती है और टूट जाती है।

Meaning: Kabir says, what can deeds accomplish if the Lord does not assist? Whichever branch you step on, it bends and breaks.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि बिना भगवान की कृपा के हमारे कर्म किसी काम के नहीं होते। वे कहते हैं कि जब भगवान की मदद नहीं होती, तो जिस भी रास्ते पर हम चलते हैं, वह टूट जाता है। यह दोहा इस बात का प्रतीक है कि हमें हर समय भगवान की कृपा की आवश्यकता होती है और हमारे कर्म तभी सफल होते हैं जब ईश्वर का सहारा हो।


जदि का माइ जनमियां, कहूं न पाया सुख।
डाली डाली मैं फिरौं, पातौं पातौं दुख।।१९०५।।

अर्थ: यदि मेरे जन्म में सुख नहीं मिला, तो मैं एक डाल से दूसरी डाल पर भटकता हूँ और हर जगह दुख ही पाता हूँ।

Meaning: If in my birth I did not attain happiness, I wander from branch to branch, finding sorrow everywhere.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी जीवन की कठिनाइयों और निराशा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि अगर जीवन में सुख नहीं मिलता, तो व्यक्ति हर जगह दुख ही अनुभव करता है। यह दोहा इस बात का संकेत है कि सुख की प्राप्ति जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है और जब यह नहीं मिलता, तो जीवन में निरंतर संघर्ष और दुख बना रहता है।


सांई से सब होत हैं, बंदे से कछु नाहिं।
राई से परबत करे, परबत राई मांहि।।१९०६।।

अर्थ: सब कुछ भगवान की कृपा से होता है, व्यक्ति से कुछ भी नहीं। एक सरसों का दाना पर्वत बना सकता है, और पर्वत को सरसों का दाना भी बना सकता है।

Meaning: Everything happens through the Lord, nothing through the individual. A mustard seed can turn into a mountain, and a mountain into a mustard seed.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह स्पष्ट करते हैं कि सब कुछ भगवान की कृपा से होता है और व्यक्ति के प्रयासों से नहीं। वे उदाहरण देते हैं कि एक छोटे से सरसों के दाने से भी पर्वत बन सकता है, और बड़े पर्वत को भी छोटा किया जा सकता है। यह दोहा भगवान की शक्ति और कृपा की महिमा को उजागर करता है।


काइर हुंवां न छूटिये, कछु सूरातन साहि।
भरम भलका दूरि करि, सुमिरण सेल संवाहि।।१९०७।।

अर्थ: मूर्ख को मुक्ति नहीं मिलती, चाहे कितनी भी कोशिश कर ली जाए। भ्रांतियों को दूर करो और भगवान के नाम का स्मरण करो।

Meaning: The fool will not be freed, despite all attempts. Dispel doubts and remember the Lord's name.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह सिखाते हैं कि जो व्यक्ति अज्ञानी या मूर्ख है, उसे मुक्ति नहीं मिलती, चाहे वह कितनी भी कोशिश कर ले। सच्ची मुक्ति और शांति पाने के लिए आवश्यक है कि संदेह और भ्रांतियों को दूर किया जाए और भगवान के नाम का सच्चे मन से स्मरण किया जाए। यह दोहा ध्यान और भक्ति की ओर इशारा करता है।


षूंणै पड्या न छुटियो, सुण‍ि रे जीव अबूझ।
कबीर मरि मैदान मैं, करि इंद्रया सूं झूझ।।१९०८।।

अर्थ: बहरा व्यक्ति सत्य से नहीं बच सकता, सुनो ओ आत्मा। कबीर कहते हैं, मृत्यु के समय भी इंद्रियों से संघर्ष करना होगा।

Meaning: The deaf will not escape from the truth, listen, O soul. Kabir says, even in death, struggle with the senses.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी बताते हैं कि जो व्यक्ति सत्य को नहीं सुनता, वह सत्य से बच नहीं सकता। वे यह भी कहते हैं कि मृत्यु के समय भी इंद्रियों से संघर्ष करना पड़ता है। यह दोहा जीवन की सच्चाई और आत्मा की आवश्यकताओं की ओर इशारा करता है।


कबीर साई सूरिवां, मन सूं मांडे झूझ।
पंच पयादा पाड़‍ि ले, दूरि करै सब दूज।।१९०९।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, जो भगवान के प्रति समर्पित है, वह मन से संघर्ष करता है। पांच दुश्मनों को हटाकर, वह अन्य सभी दुश्मनों से मुक्त हो सकता है।

Meaning: Kabir says, one who is devoted to the Lord, fights with the mind. Removing the five enemies, one can be free from all others.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी बताने की कोशिश करते हैं कि जो व्यक्ति भगवान के प्रति सच्चे मन से समर्पित होता है, वह अपने मन के पाँच दुश्मनों से संघर्ष करता है। ये पाँच दुश्मन काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार हैं। इन दुश्मनों को दूर करके, व्यक्ति सभी अन्य समस्याओं से मुक्त हो जाता है। यह दोहा आंतरिक शांति और समर्पण की महत्वता को दर्शाता है।


सूरा झूझै गिरद सूं, इक दिसि सूर न होइ।
कबीर यौं बिन सूरिवां, भला न कहिसी कोइ।।१९१०।।

अर्थ: एक योद्धा शेर से संघर्ष करता है, लेकिन एक ओर वह शेर पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। कबीर कहते हैं, बिना सच्चे गुरु के कोई भी व्यक्ति वास्तव में अच्छा नहीं है।

Meaning: A hero struggles with a lion, but on one side, he cannot overcome the lion. Kabir says, without a true guide, no one is truly good.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि एक व्यक्ति बाहरी संघर्षों में भले ही मजबूत प्रतीत हो, लेकिन यदि उसके पास एक सच्चा मार्गदर्शक (गुरु) नहीं है, तो वह पूरी तरह से सफल नहीं हो सकता। सच्चे गुरु के बिना, कोई भी व्यक्ति सही मार्ग पर नहीं चल सकता। यह दोहा सच्चे गुरु की महत्वता को उजागर करता है।


कबीर आरणि पैसि करि, पीछैं रहै सु सूर।
सांई सूं साचा भया, रहसी सदा हजूर।।१९११।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, यदि आप आग के साथ संघर्ष करते हैं, तो भी सूर्य पीछे रहता है। भगवान के प्रति सच्चे रहते हुए, आप हमेशा उनकी उपस्थिति में रहेंगे।

Meaning: Kabir says, even if you struggle with the fire, the sun remains behind. By being true to the Lord, you will always be in His presence.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि चाहे आप कितनी भी कठिनाइयों का सामना करें, भगवान के प्रति सच्चे और ईमानदार रहने पर आप हमेशा उनकी उपस्थिति में रहेंगे। यह दोहा सच्चे समर्पण और विश्वास की महत्ता को दर्शाता है।


कबीर मेरे संसा को नहीं, हरि सूं लागा हेत।
काम क्रोध सूं झूझणां, चौड़े मांडूया खेत।।१९१२।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, मेरा संदेह भगवान से नहीं है, बल्कि इच्छाओं और क्रोध से है। ये शक्तियाँ चौड़े खेत को लेकर संघर्ष करती हैं।

Meaning: Kabir says, my doubt is not with the Lord, but with the desire and anger. The broad field is fought over by these forces.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि उनका संदेह भगवान के प्रति नहीं है, बल्कि उनके भीतर की इच्छाओं और क्रोध के कारण है। ये भावनाएँ उनके जीवन के 'खेत' पर प्रभाव डालती हैं। यह दोहा आंतरिक संघर्ष और स्वयं की समझ की ओर इशारा करता है।


सूरैं सार संबाहिया, पहरया सहज संजोग।
अब कै ग्‍यांन गयंद चढ़‍ि, खेत पड़न का जोग।।१९१३।।

अर्थ: सूरज की सार तत्व को मौसम ले जाते हैं, जो स्वाभाविक रूप से जुड़ते हैं। अब ज्ञान के उदय के साथ, खेत बोने के लिए तैयार है।

Meaning: The essence of the sun is carried by the seasons, which naturally connect. Now with the rise of knowledge, the field is ready for sowing.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि सूर्य का सार तत्व मौसम द्वारा प्रभावित होता है, जो स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से जुड़े होते हैं। अब जब ज्ञान का प्रकाश फैल गया है, तो खेत फसल के लिए तैयार है। यह दोहा ज्ञान की महत्ता और इसके परिणामस्वरूप होने वाले सकारात्मक बदलावों को दर्शाता है।


सूरा तबही कै परषिये, लडै दीन कै हेत।
पुरिजा पुरिजा ह्व पड़ै, तऊ न छांडै खेत।।१९१४।।

अर्थ: योद्धा गरीबों के लिए लड़ा, लेकिन जब खेत बंजर हो गया, तो भी उसने इसे नहीं छोड़ा।

Meaning: The hero fights for the sake of the poor, but when the field becomes barren, he does not abandon it.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि सच्चे योद्धा या व्यक्ति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाता है, चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो। खेत का उदाहरण देते हुए, कबीर यह समझाते हैं कि सच्ची प्रतिबद्धता और लगन से ही किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है।


खेत न छाडै सूरिवां, झझै द्वै दल मांहि।
आसा जीवन मरण की, मन मैं आंणै नाहि।।१९१५।।

अर्थ: सच्चा योद्धा खेत को नहीं छोड़ता, चाहे वह दो भागों में बंटा हो। जीवन और मृत्यु के बारे में मन में कोई आशा नहीं है।

Meaning: The true hero does not abandon the field, even when it is divided into two parts. There is no hope in the mind about life and death.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि सच्चा व्यक्ति किसी भी कठिनाई का सामना करने में हिचकिचाता नहीं है और अपने कर्तव्यों को निभाने में पूरी लगन दिखाता है। जीवन और मृत्यु की चिंता किए बिना, वह अपने उद्देश्य की ओर ध्यान केंद्रित करता है। यह दोहा समर्पण और धैर्य की महत्ता को दर्शाता है।


अब तौ झूझयां ही वणौं, मूढ़‍ि चाल्‍यां घर दूरि।
सिर साहिब कौं सौंपता, सोच न कीजै सूरि।।१९१६।।

अर्थ: अब मैंने पर्याप्त संघर्ष किया है, मेरी मूर्खताएं मुझे घर से दूर ले आई हैं। मैंने अपना सिर भगवान को सौंप दिया है, ओ योद्धा, चिंता मत करो।

Meaning: Now I have fought enough, my foolish actions have taken me far from home. I have surrendered my head to the Lord, do not worry, O hero.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह व्यक्त करते हैं कि उन्होंने बहुत संघर्ष किया है और उनकी मूर्खताएं उन्हें दूर कर चुकी हैं। अब वे भगवान को पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं और किसी चिंता की आवश्यकता नहीं है। यह दोहा आत्मसमर्पण और भगवान पर विश्वास की भावना को दर्शाता है।


अब तो ऐसी ह्वै पड़ी, मनका रुचित कीन्‍ह।
मरनैं कहा डराइये, हाथि स्‍यंधौरा लीन्‍ह।।१९१७।।

अर्थ: अब स्थिति ऐसी हो गई है कि मन को सुख मिला है। मृत्यु से डरने की क्या बात है? हाथी के दांत को पकड़ लिया गया है।

Meaning: Now that it is like this, it has pleased the mind. Why should we fear death? The elephant's tusk has been seized.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह व्यक्त करते हैं कि वर्तमान स्थिति में मन को शांति प्राप्त हो गई है और मृत्यु से डरने की कोई बात नहीं है। हाथी के दांत की उपमा देकर, कबीर यह समझाते हैं कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसे स्वीकार करना चाहिए। यह दोहा मृत्यु और जीवन की वास्तविकता को समझने की ओर इशारा करता है।


जिस मरनै से जग डरै, सो मेरे आनंद।
कब मरिहूं कब देखिहूं, पूरन परमानंद।।१९१८।।

अर्थ: जिससे दुनिया डरती है, वही मेरा आनंद है। मैं कब मरूंगा और कब पूर्ण आनंद को देखूंगा?

Meaning: That which causes fear to the world is my joy. When will I die and when will I see the complete bliss?

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि जो चीज़ दुनिया को डराती है, वह उन्हें आनंद प्रदान करती है। वे मृत्यु और पूर्ण आनंद की प्राप्ति के बारे में सोचते हैं। यह दोहा मृत्यु और सच्चे आनंद की गहरी समझ की ओर इशारा करता है।


कायर बहुत पमांवहीं, बहकि न बोलैं सूर।
काम पड्यांं ही जांणिहै, किसके मुख परि नूर।।१९१९।।

अर्थ: कायर बहुत दिखावा करता है, लेकिन सच्चाई नहीं बोलता। जब आवश्यकता होती है, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि किसके चेहरे पर अनुग्रह है।

Meaning: The coward is very pompous but does not speak the truth. When the need arises, it becomes clear whose face shines with grace.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह दर्शाते हैं कि जो लोग केवल दिखावा करते हैं और सच्चाई से दूर रहते हैं, वे अपने कर्मों में कभी सफल नहीं हो सकते। जब वास्तविक संकट आता है, तब ही यह स्पष्ट होता है कि सच्चा सम्मान और अनुग्रह किसके पास है। यह दोहा सच्चाई और सजगता की महत्वता को उजागर करता है।


जाइ पूछौ उस घाइलै, दिवस पीड निस जाग।
बांहणहारा जणि है, कै जांणै जिस लाग।।१९२०।।

अर्थ: जाओ और घायल से पूछो, वह दिन-रात दर्द में जागता रहता है। जो दर्द सहता है, वही जानता है कि वह कैसा होता है।

Meaning: Go and ask the wounded one, he remains awake in the pain of the day and night. The one who bears the pain knows best what it feels like.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि जो लोग खुद दर्द और कष्ट झेलते हैं, वे ही उसकी वास्तविकता को समझ सकते हैं। दूसरों को केवल उनकी पीड़ा के बारे में बताने से वास्तविक समझ नहीं मिलती। यह दोहा सहनशीलता और अनुभव की गहराई को दर्शाता है।


घाइल घूंमे गहि भरया, राख्‍या रहै न ओट।
जतन कियां जीवै नहीं, बणीं मरम की चोट।।१९२१।।

अर्थ: घायल व्यक्ति इधर-उधर घूमता रहता है, लेकिन वह ढका नहीं रहता। किए गए प्रयास व्यर्थ हैं; घाव गहरा है।

Meaning: The wounded one moves around, but remains uncovered. The efforts made are of no use; the wound is a deep one.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह दर्शाते हैं कि जब किसी का घाव गहरा होता है, तो साधारण उपचार या प्रयास उसे ठीक नहीं कर सकते। इसके लिए गहन और सटीक उपचार की आवश्यकता होती है। यह दोहा कठिन समस्याओं के समाधान की गहराई को समझने की ओर इशारा करता है।


ऊंचा विरष अकासि फल, पंषरू मूए झूर।
बहुत सयांने पचि रहे, फल निरमल परि दूरि।।१९२२।।

अर्थ: आकाश में ऊंचा फल परिंदे खाते हैं जो मर चुके हैं। बहुत से ज्ञानी लोग अब भी सोच रहे हैं, शुद्ध फल अभी भी दूर है।

Meaning: The high fruit of the sky is enjoyed by the birds who have passed away. Many wise people are still pondering, the pure fruit remains distant.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि जो लोग पहले ही गुजर चुके हैं, वे उच्च आदर्शों और ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं, जबकि जीवित लोग अभी भी उसे समझने और प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। यह दोहा जीवन के ज्ञान और आदर्शों की वास्तविकता को दर्शाता है।


दूरि भया तो का भया, सिर दे नेडा होइ।
जब लग सिर सौंपै नहीं, कारिज सिधि न होइ।।१९२३।।

अर्थ: दूरी का क्या फायदा? सिर को करीब से अर्पित करना चाहिए। पूरी तरह से समर्पण किए बिना सफलता प्राप्त नहीं होती।

Meaning: What is the use of distance? The head must be offered up close. Without surrendering completely, success cannot be achieved.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह कहते हैं कि केवल दूर से देखने या प्रयास करने से काम नहीं चलेगा। पूर्ण समर्पण और निष्ठा से ही किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। यह दोहा समर्पण और सच्ची लगन की महत्वता को दर्शाता है।


कबीर यह घर प्रेम का, खाला का घर नांहि।
सीस उतारै हाथि करि, सो पैठ घर मांहि।।१९२४।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, यह प्रेम का घर है, खाला का घर नहीं। जो अपने सिर और हाथ को वहां अर्पित करता है, वही प्रेम के घर में वास्तव में निवास करता है।

Meaning: Kabir says, this is the home of love, not the house of the maternal uncle. He who places his head and hands there, truly resides in the house of love.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी प्रेम के वास्तविक स्वरूप को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि प्रेम केवल बाहरी दिखावे का नाम नहीं है, बल्कि यह एक गहरा और सच्चा अनुभव है। प्रेम के घर में प्रवेश पाने के लिए सच्चे समर्पण और निष्ठा की आवश्यकता होती है। सिर और हाथ को अर्पित करना यह दर्शाता है कि व्यक्ति पूरी तरह से प्रेम के प्रति समर्पित है।


कबीर निज घर प्रेम का, मारग अगम अगाध।
सीस उतारि पग तलि घरै, तब निकटि प्रेम का स्‍वाद।।१९२५।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, प्रेम के घर तक पहुँचने का मार्ग गहरा और अनजान है। केवल सिर और पांव को अर्पित करके ही वहाँ प्रेम का स्वाद सच्चे अर्थ में अनुभव किया जा सकता है।

Meaning: Kabir says, the path to the home of love is profound and unfathomable. Only by bowing down and placing one's head and feet there can one truly experience the taste of love.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताते हैं कि प्रेम का मार्ग बहुत गहरा और रहस्यमय है। इसे समझने और अनुभव करने के लिए पूरी तरह से समर्पण और विनम्रता की आवश्यकता है। सिर और पांव को अर्पित करना यह दिखाता है कि व्यक्ति ने प्रेम के सच्चे अनुभव के लिए पूरी तरह से आत्मसमर्पण किया है।


सीस काटि पासंग दिया, जीव सरभरि लीन्‍हा।
जाहि भावे सो आइ ल्‍यो, प्रेम हाट हम कीन्‍ह।।१९२६।।

अर्थ: सिर को काटकर अर्पित करने से आत्मा पूरी तरह से समर्पित हो गई है। जो भी आत्मा चाहती है, वह प्राप्त कर ली है; हमने प्रेम का बाजार स्थापित किया है।

Meaning: By cutting off his head and offering it, the soul has been completely absorbed. Whatever the soul desires, it has attained; we have established the marketplace of love.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह दर्शाते हैं कि जब व्यक्ति पूरी तरह से समर्पित होकर प्रेम की ओर अग्रसर होता है, तो उसकी आत्मा पूरी तरह से प्रेम में समा जाती है। यह दोहा प्रेम के समर्पण और सच्चे अनुभव की गहराई को उजागर करता है।


सूर सीस उतारिया, छाड़ा तन की आस।
आगैं थैं हरि मुलकिया, आवत देख्‍या दास।।१९२७।।

अर्थ: सिर को झुका कर अर्पित किया गया, शरीर की इच्छाओं को छोड़कर। आगे भगवान का क्षेत्र है; इस प्रकार, दास भगवान को आते हुए देखता है।

Meaning: By bowing down, the head is offered, leaving aside the desires of the body. Ahead is the realm of the Lord; thus, the servant sees the Lord coming.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बताते हैं कि जब व्यक्ति अपने शरीर की इच्छाओं को त्याग कर पूरी श्रद्धा के साथ भगवान के प्रति समर्पित होता है, तो वह भगवान के क्षेत्र में प्रवेश करता है और भगवान को अपने निकट अनुभव करता है। यह दोहा समर्पण और भक्ति की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।


सती जलन कूं नीकली, चित्त धरि एकबमेख।
तन मन सौंप्‍या पीव कूं, तब अंतर रही न रेख।।१९२८।।

अर्थ: पत्नी की अग्नि में जलने की प्रक्रिया तब सही थी जब मन पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित था। जब शरीर और मन भगवान को सौंप दिए गए, तब कोई भेदभाव की रेखा नहीं रही।

Meaning: The burning of the wife (in the fire of sacrifice) was proper when the mind was focused solely on the divine. When the body and mind were surrendered to the Lord, no trace of distinction remained.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने समर्पण और एकनिष्ठता की महत्वपूर्णता को दर्शाया है। जब व्यक्ति अपने तन और मन को पूर्ण रूप से भगवान को सौंप देता है, तब कोई भी भेदभाव की रेखा नहीं रहती। यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण में सभी भौतिक भिन्नताओं को पार कर दिया जाता है।


हौं तोहि पूछौं हे सखी, जीवत क्‍यूं न मराइ।
मूंवा पीछे सत करै, जीवत क्‍यूं न कराइ।।१९२९।।

अर्थ: मैं तुमसे पूछता हूँ, मेरे दोस्त, जीवित रहते हुए कोई क्यों नहीं मरता? मृत व्यक्ति को मृत्यु के बाद सुधार सकते हैं, लेकिन जीवित रहते हुए क्यों नहीं किया जा सकता?

Meaning: I ask you, my friend, why does one not die while living? The dead can be rectified after death, but why is it not rectified while living?

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी जीवन और मृत्यु के बीच के संबंध को समझाते हैं। वे यह सवाल उठाते हैं कि जब व्यक्ति जीवित है, तब उसे सुधारने का प्रयास क्यों नहीं किया जाता, जबकि मृत व्यक्ति को बाद में सुधारने की संभावना होती है। यह जीवन की सच्चाई को उजागर करने का प्रयास है।


कबीर प्रगट राम कहि, छांनै राम न गाइ।
फूस क जौंड़ा दूरि करि, ज्‍यूं बहुरि न लागै लाइ।।१९३०।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, यदि कोई प्रकट राम का उल्लेख करता है लेकिन राम का गायन नहीं करता, तो यह वैसा ही है जैसे छप्पर को हटा देना, जो फिर से बारिश से नहीं बचा सकता।

Meaning: Kabir says, if one speaks of the revealed Ram but does not sing of Ram, then it is like removing the thatch from the roof, which does not stop the rain from falling again.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकटता के वास्तविक महत्व को दर्शाया है। वे बताते हैं कि यदि व्यक्ति केवल नाम लेता है लेकिन सच्चे भाव से ईश्वर की भक्ति नहीं करता, तो यह बाहरी ढांचे को हटाने जैसा है, जो किसी भी गहरी समस्या को हल नहीं करता।


कबीर हरि सबकूं भजै, हरि कूं भजै न कोइ।
जब लग आस सरीर की, तब लग दास न होइ।।१९३१।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, सभी भगवान की पूजा करते हैं, लेकिन कोई भी सच्चे दिल से भगवान की पूजा नहीं करता। जब तक शरीर से जुड़ी आसक्ति बनी रहती है, तब तक कोई सच्चा दास नहीं हो सकता।

Meaning: Kabir says, everyone worships the Lord, but no one worships the Lord truly. As long as there is attachment to the body, one cannot be a true servant.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाते हैं कि सच्ची भक्ति और समर्पण तब संभव है जब शरीर और भौतिक इच्छाओं की आसक्ति को छोड़ दिया जाए। सच्चे दास बनने के लिए, व्यक्ति को केवल बाहरी पूजा से अधिक गहरी और सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है।


आप सवारथ मेदनीं, भगत सवारथ दास।
कबीर राम सवारथी, जिनि छाड़ी तन की आस।।१९३२।।

अर्थ: जो स्वयं के लाभ के लिए कार्य करता है, वही संसार का स्वामी है; भक्त भगवान का दास है। कबीर कहते हैं, जो व्यक्ति शरीर की सभी इच्छाओं को त्याग देता है, वही सच्चा राम का दास है।

Meaning: One who is self-serving is the master of the world; the devotee is the servant of the Lord. Kabir says, the one who has abandoned all desires for the body is the true servant of Ram.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने सच्ची भक्ति और समर्पण के महत्व को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया है कि केवल आत्म-लाभ की सोच रखने वाले लोग संसार के स्वामी बन सकते हैं, लेकिन जो अपने शरीर की इच्छाओं को छोड़कर पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित हो जाते हैं, वे सच्चे भक्त और दास होते हैं।


कस्‍तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूढै बन मांहि।
ऐसै घटि घटि राम हैं, दुनियां देखै नांहि।।१९३३।।

अर्थ: मस्क मृग की नाभि में मस्क होता है, लेकिन वह इसे जंगल में खोजता है। इसी तरह, राम हर प्राणी में निवास करते हैं, फिर भी दुनिया इसे पहचान नहीं पाती।

Meaning: The musk deer has musk in its navel but searches for it in the forest. Similarly, Ram resides within every being, yet the world fails to recognize this.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने भीतर की सच्चाई और बाहरी खोज के बीच के अंतर को उजागर किया है। मस्क मृग का उदाहरण देते हुए वे बताते हैं कि जैसे मृग अपने भीतर की सच्चाई को खोजने के बजाय बाहरी स्थानों पर खोजता है, वैसे ही लोग भगवान को अपने भीतर देखना छोड़कर बाहरी खोज में लगे रहते हैं।


कोइ एक देखै संत जन, जांकै पांचूं हाथि।
जाके पांचूं बस नहीं, ता हरि संग न साधि।।१९३४।।

अर्थ: जो एक सच्चे संत को देखता है, उसे पता चलता है कि उसके सभी पांचों इंद्रियां नियंत्रित हैं। जिनके इंद्रियां नियंत्रित नहीं हैं, वे ईश्वर के साथ मिलन प्राप्त नहीं कर सकते।

Meaning: One who truly sees a saint knows that all five senses are under control. If one's senses are not under control, one cannot attain union with the Divine.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने संत के वास्तविक स्वरूप को दर्शाया है। उन्होंने बताया है कि एक सच्चे संत की पहचान तब होती है जब उसकी सभी इंद्रियां पूरी तरह से नियंत्रित होती हैं। अगर किसी की इंद्रियां नियंत्रित नहीं हैं, तो वह ईश्वर के साथ एकता प्राप्त नहीं कर सकता।


सो सांई तन मैं बसै, भ्रम्‍यों न जाण तास।
कस्‍तूरी के मृग ज्‍यूं, फिर फिर सूधैं घास।।१९३५।।

अर्थ: ईश्वर शरीर के भीतर निवास करता है, लेकिन भ्रमित लोग इसे पहचान नहीं पाते। जैसे मस्क मृग घास में मस्क की खोज करता रहता है, वैसे ही लोग भीतर के सत्य को खोजने के बजाय बाहर खोजते रहते हैं।

Meaning: The Divine resides within the body, but the deluded do not recognize this. Just like the musk deer keeps searching for musk in the grass, they search outside for what is within.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने आत्मा और ईश्वर के भीतर के अस्तित्व को दर्शाया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि लोग बाहरी खोज में लगे रहते हैं जबकि सच्चाई और ईश्वर उनके भीतर ही हैं। मस्क मृग का उदाहरण देकर वे इस भ्रम को उजागर करते हैं।


कबीर खोजी राम का, गया जु सिंघल दीप।
राम तो घट भीतर रमि रह्या, जौ आवै परतीत।।१९३६।।

अर्थ: कबीर, जो राम के खोजी थे, श्रीलंका द्वीप गए। लेकिन राम तो भीतर निवास करता है, और इसे केवल विश्वास से ही महसूस किया जा सकता है।

Meaning: Kabir, a seeker of Ram, went to Ceylon Island. But Ram, who resides within, is realized only when one has faith.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया है कि राम को खोजने के लिए यात्रा पर जाना जरूरी नहीं है। राम भीतर ही निवास करता है और इसे पहचानने के लिए विश्वास की आवश्यकता होती है। कबीर ने अपने अनुभव के माध्यम से इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि वास्तविक खोज आत्मा के भीतर होती है।


घटि बधि कहीं न देखिए, ब्रह्म रह्या भरपूरि।
आप पिछांणै बहिरा, नेड़ा की थैं दूरि।।१९३७।।

अर्थ: ईश्वर को कहीं और न देखें, क्योंकि ब्रह्म सर्वत्र विद्यमान है। यदि आप इसे देख नहीं पाते, तो आप इससे दूर हैं भले ही यह आपके निकट हो।

Meaning: Do not look elsewhere for the Divine, for Brahman is present everywhere. If you are blind to it, you are far from it even when it is near.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में यह स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है और कहीं भी उसकी तलाश की जा सकती है। लेकिन यदि व्यक्ति इसे पहचानने में असमर्थ है, तो वह भले ही ईश्वर के पास हो, फिर भी वह उसे दूर ही महसूस करेगा। यह जीवन में आत्मज्ञान की खोज की गहराई को दर्शाता है।


मैं जाण्‍यां हरि दूरि है, हरि रह्या सकल भरपूरि।
आप पिछांणै बहिरा, नेड़ा की थैं दूरि।।१९३८।।

अर्थ: मैं जानता हूँ कि भगवान दूर नहीं है; वह सर्वत्र उपस्थित है। यदि आप इसे पहचानने में असमर्थ हैं, तो आप दूर हैं भले ही यह आपके पास हो।

Meaning: I know that the Divine is not distant; it is present everywhere. If you are blind to it, you are distant even when it is close.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने ब्रह्म के साकार स्वरूप की व्याख्या की है। वे यह बताते हैं कि भगवान कहीं दूर नहीं हैं; वह हर जगह मौजूद हैं। लेकिन अगर व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं पाता, तो वह स्वयं को भगवान से दूर महसूस करेगा, भले ही वह पास ही हो।


तिणकैं आल्‍है राम है, परबत मेरैं भाइ।
सतगुर मिलि परचा भया, तब हरि पाया घट मांहि।।१९३९।।

अर्थ: ईश्वर सभी में है, जैसे पर्वत मेरे भाइयों के लिए हैं। जब सतगुरु मिलते हैं, तो मनुष्य अपने भीतर ईश्वर को प्राप्त करता है।

Meaning: The Divine is in everyone, as mountains are to my brothers. When the True Guru is met, one realizes the Divine within oneself.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया है कि ईश्वर सभी जीवों में विद्यमान है, जैसे पर्वत की उपस्थिति हर जगह होती है। जब कोई सच्चे गुरु से मिलता है, तो उसे अपने भीतर ईश्वर का अनुभव होता है। यह दोहा आत्मज्ञान और गुरु के महत्व को स्पष्ट करता है।


राम नाम तिहूं लोक मैं, सकलहु रह्या भरपूरि।
यह चतुराई जाहु जलि, खोजत डोलैं दूरि।।१९४०।।

अर्थ: राम का नाम तीनों लोकों में व्याप्त है, और सब कुछ उसमें भरा हुआ है। अगर कोई दूर-दूर जाकर खोजता है, तो यह चतुराई किसी काम की नहीं है।

Meaning: The name of Ram is present in all three worlds, pervading everything. Such cleverness is of no use if one is wandering in search of it far away.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि भगवान का नाम हर जगह विद्यमान है और सब कुछ उसी में समाहित है। लेकिन अगर कोई दूर-दूर जाकर इसे खोजता है, तो यह चतुराई बेकार है। यह ज्ञान की गहराई और ईश्वर की सर्वव्यापकता को उजागर करता है।


दीपक पाव आंणिया, तेल भी आण्‍या संग।
तीन्‍यूं मिलि करि जोइया, उड़‍ि उड़‍ि पड़ पतंग।।१९४१।।

अर्थ: दीपक को तेल और बाती की आवश्यकता होती है। जब ये तीनों मिल जाते हैं, तो लौ जलती है और पतंग उड़ती है।

Meaning: The lamp requires oil and wick. When all three come together, the flame rises and the kite flies high.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने यह स्पष्ट किया है कि दीपक जलाने के लिए तेल और बाती आवश्यक हैं। जब ये तीनों चीजें एक साथ होती हैं, तब दीपक जलता है और पतंग ऊँचाई पर उड़ती है। इसका मतलब है कि जीवन की विभिन्न स्थितियाँ एक साथ मिलकर पूर्णता प्राप्त करती हैं।


मारया है जो मरैगा, बिर सर थोथी भालि।
पड्या पुकारै ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि।।१९४२।।

अर्थ: जो मारा गया है, वह बेकार है; समझदार व्यक्ति इसे जानता है। जो पेड़ को मारा जाता है, वह भी बचाने की पुकार करता है, चाहे वह आज मरे या कल।

Meaning: One who is killed is of no value; the wise one knows this. The tree that is struck, still calls out to be saved, whether it dies today or tomorrow.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में यह बताते हैं कि मरे हुए व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है और यह समझदार व्यक्ति ही जानता है। जो पेड़ को मारा जाता है, वह भी बचाने की पुकार करता है। यह दोहा जीवन की नश्वरता और आत्म-रक्षा की अंतर्निहित प्रवृत्ति को दर्शाता है।


हिरदा भीतरि दौं बलै, धूंवां प्रगट न होइ।
जाकै लागी सो लखै, कै जिहि लाई सोइ।।१९४३।।

अर्थ: दिल के भीतर की आग छुपी रहती है, जो बाहर प्रकट नहीं होती। केवल वही लोग इसे जानते हैं जो इसे अनुभव करते हैं, जैसे धुंआ आग को उन लोगों के लिए प्रकट करता है जो इसे देख सकते हैं।

Meaning: The fire inside the heart remains hidden, not revealed outwardly. Only those who experience it know it, just as the smoke reveals the fire to those who can perceive it.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने भीतर की आत्मिक अग्नि को उजागर किया है, जो बाहर से प्रकट नहीं होती। यह केवल उन लोगों द्वारा अनुभव की जाती है जो इसे भीतर से समझ सकते हैं। जैसे धुंआ आग को दिखाता है, वैसे ही आंतरिक अनुभव भी सत्य को प्रकट करता है।


झल ऊठा झाोली जली, खपरा फूटिम फूटि।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति।।१९४४।।

अर्थ: जलती हुई अग्नि ने ऊँचाई पकड़ी, बर्तन टूट गया। जो योगी वहाँ था वह चला गया, और आसन पर केवल राख बची है।

Meaning: The burning flame has risen, the pot is shattered. The yogi who was there has gone, and the seat remains covered in ashes.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया है कि जलती हुई अग्नि ने ऊँचाई पकड़ी और बर्तन टूट गया, जो योगी वहाँ था वह चला गया और आसन पर सिर्फ राख रह गई। यह दोहा यह बताता है कि योगी की उपस्थिति का स्थायित्व नहीं होता, और बाहरी दिखावा समाप्त हो जाता है।


अगनि जू लागि नीर मैं, कंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडिता, रहे बिचारि बिचारि।।१९४५।।

अर्थ: अग्नि पानी में आ गई है, और कंदू की आग जल रही है। दक्षिण के पंडित अब भी विचार करते रहते हैं।

Meaning: Fire has come into the water, and the reed is burning in the embers. The scholars of the south are still pondering and reflecting.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने अग्नि और पानी के विरोधाभास का उदाहरण दिया है, जिसमें आग जल रही है और विद्वान विचार में लगे हैं। यह स्थिति असंगति और भ्रम की स्थिति को दर्शाती है, जो बाहरी रूप से दिखाई देती है।


दौं लागी साइर जल्‍या, पंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै, सतगुर गया लगाइ।।१९४६।।

अर्थ: अग्नि और पानी दोनों समाप्त हो चुके हैं, और पक्षी यहाँ आ बैठे हैं। यह निकम्मा शरीर बचाया नहीं जा सकता; सच्चे गुरु चले गए हैं।

Meaning: Both the fire and the water have been consumed, and the birds have come to sit. The unworthy body cannot be saved; the True Guru has departed.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया है कि जब अग्नि और पानी समाप्त हो जाते हैं, तो केवल पक्षी ही यहाँ बैठते हैं। निकम्मे शरीर को बचाया नहीं जा सकता और सच्चे गुरु का भी अवलोकन समाप्त हो जाता है। यह दोहा जीवन की अस्थिरता और गुरु के महत्व को दर्शाता है।


गुर दाघा चेला जल्‍या, बिरहा लागी आगि।
तिणका बपुड़ा ऊबरया, गलि पूरे कै लागि।।१९४७।।

अर्थ: शिष्य गुरु के द्वारा जलाया गया है, और वियोग की आग तीव्र है। छोटा बच्चा बच गया है, लेकिन केवल अपने कार्य को पूरा करने के लिए।

Meaning: The disciple has been burned by the Guru, and the fire of separation is intense. The little fellow has survived, but only to complete his task.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु और शिष्य के संबंधों में वियोग और कठिनाई को स्पष्ट किया है। शिष्य गुरु के कठिन परीक्षण से गुजरता है और वियोग की आग को सहन करता है। यह दोहा जीवन की कठिनाइयों और गुरु के प्रभाव को दर्शाता है।


आहेड़ी दौं लाइया, मृग पुकारै रोइ।
जा बन में क्रीला करी, दाझत है बन सोइ।।१९४८।।

अर्थ: मृग जंगल में रोता और पुकारता है। जब जंगल में आग लगती है, तो वह सब कुछ जला देती है।

Meaning: The deer is crying out and calling in the forest. When the fire rages in the forest, it burns everything within it.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने जंगल में आग लगने और मृग की स्थिति का वर्णन किया है। मृग की पुकार और आग की लपटें सब कुछ जला देती हैं। यह दोहा जीवन की आपत्तियों और उनके प्रभाव को दर्शाता है।


पाणीं माहै प्रजली, भई अप्रबल आगि।
बहती सलिता रहि गई, मंछ रहे जल त्‍यागि।।१९४९।।

अर्थ: जिस पानी में आग लगी थी, वह अब प्रचंड आग बन गई है। बहने वाली धारा वही रह गई है, लेकिन मछलियाँ पानी को छोड़ चुकी हैं।

Meaning: Water that was once on fire has become a fierce blaze. The flowing stream remains, but the fish have abandoned the water.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जल और आग का उदाहरण देते हुए इस बात को समझाते हैं कि जब पानी में आग लग जाती है, तो पानी को जलाना असंभव हो जाता है। इसी तरह, जब कोई व्यक्ति अपने भीतर की आग को तृप्त करने के लिए संघर्ष करता है, तो वह बाहरी वस्तुओं की परवाह नहीं करता। मछलियाँ जो पानी के बिना जीवित नहीं रह सकतीं, वह इसे छोड़ देती हैं, जो यह दर्शाता है कि साधक को अपनी आंतरिक स्थिति को समझना और बाहरी परिवर्तनों को अनदेखा करना चाहिए।


कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि।
पाका कलस कुंभार का, बहुरि न चढ़हि चाकि।।१९५०।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब कोई हरि का रस पी लेता है, तो थकावट खत्म हो जाती है। एक बार पके हुए कलश को फिर से चाक पर नहीं चढ़ाया जाता।

Meaning: Kabir says that once one drinks the nectar of Hari, there is no fatigue left. A potter's vessel that is once baked does not return to the wheel again.

व्याख्या: यह दोहा इस बात को स्पष्ट करता है कि जब व्यक्ति को सच्चे भक्ति या आत्मा का रस प्राप्त हो जाता है, तो वह दुनिया की थकावट से मुक्त हो जाता है। जैसे एक बार बर्तन को पकाने के बाद उसे चाक पर नहीं चढ़ाया जाता, उसी प्रकार एक बार भक्ति की प्राप्ति के बाद, व्यक्ति को पुनः सांसारिक प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती।