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संत कबीर जी के दोहे — 1851 to 1900

हिंदू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, दुई मैं कदे न जाइ।।१८५१।।

अर्थ: हिंदू भगवान को राम कहता है, मुसलमान उसे खुदा कहता है। कबीर कहते हैं कि वह हमेशा जीवित रहते हैं; वह दोनों में से किसी का नहीं हैं।

Meaning: The Hindu calls God Ram, the Muslim calls Him Khuda. Kabir says that He is ever-living; He does not belong to either of the two.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने धर्मों के भिन्न नामों और उनके बीच की धार्मिक विभाजन को समाप्त करने की बात की है। कबीर यह बताते हैं कि जो परमात्मा दोनों धर्मों में पूजनीय है, वह कभी भी किसी धर्म में बंधा नहीं होता। वह हमेशा जीवित रहता है और उसकी उपस्थिति किसी विशेष धर्म की सीमाओं में नहीं बंधी होती। यह दोहा धार्मिक एकता और सार्वभौमिकता को दर्शाता है।


दुखिया मूवा दुख कों, सुखिया सुख को झूरि।
सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दुख मेल्‍हे दूरि।।१८५२।।

अर्थ: दुखी व्यक्ति दुख में मर जाता है, और सुखी व्यक्ति सुख में जीता है। वास्तव में आनंदित व्यक्ति राम के साथ रहता है, जो सुख और दुख की द्वैतता को पार करता है।

Meaning: The unhappy one dies in sorrow, the happy one lives in pleasure. The truly blissful one is with Ram, who transcends the dualities of joy and sorrow.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सुख और दुख की अवधारणाओं को पार करने की बात की है। उन्होंने बताया है कि दुखी व्यक्ति दुख में ही समाप्त हो जाता है और सुखी व्यक्ति सुख में जीता है। लेकिन वास्तविक आनंदित व्यक्ति वह है जो राम के साथ होता है, जो सुख और दुख के द्वैत से परे होता है। यह दोहा आत्मिक संतोष और द्वैत की पारंपरिक समझ को चुनौती देता है।


कबीर हरदी पीयरी, चूना ऊजल भाइ।
राम सनेही यूं मिले, दुन्‍यूं बरन गंवाइ।।१८५३।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि केसर पीला है और चूना उज्ज्वल है। जो लोग राम से प्रेम के साथ मिलते हैं, वे दुनिया के रंगों को छोड़ देते हैं।

Meaning: Kabir says that the saffron is yellow and the lime is bright. Those who meet Ram with love, forsake the world’s colors.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने दिव्य प्रेम और सांसारिक रंगों के त्याग की बात की है। वे बताते हैं कि जिन लोगों का प्रेम राम के प्रति सच्चा है, वे संसार की भौतिक रंगीनियों को त्याग देते हैं। यह दोहा यह दिखाता है कि वास्तविक प्रेम और भक्ति संसार की भौतिक वस्तुओं से परे होती है।


काबा फिर कासी भया, राम भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।।१८५४।।

अर्थ: काबा काशी हो गया, राम रहीम बन गए। आटा, चीनी और ब्रेड मौजूद हैं; कबीर बैठकर खाता है।

Meaning: The Kaaba became Kashi, Ram became Rahim. Flour, sugar, and bread are present; Kabir sits and eats.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने धार्मिक स्थलों और नामों के परिवर्तन की बात की है। वे बताते हैं कि धार्मिक स्थल और नाम जैसे काबा और काशी, या भगवान के नाम जैसे राम और रहीम, केवल बाहरी रूप होते हैं। असली महत्व भीतर के आहार और साधना का है। कबीर का तात्पर्य है कि भौतिक वस्त्र और धार्मिक स्थानों से ज्यादा महत्वपूर्ण है आत्मिक संतोष और साधना।


धरती अरु असमान बिचि, दोइ तूंबड़ा अवध।
षट दरसन संसै पड्या, अरु चौसारी सिध।।१८५५।।

अर्थ: धरती और आकाश के बीच, दो पवित्र शहरों के पात्र हैं। छह दृष्टिकोण संदिग्ध हैं, और बत्तीस विकल्प तत्त्वज्ञान के पथ हैं।

Meaning: Between the earth and the sky, there are two vessels of the sacred city. Six views are in doubt, and forty-two are the paths to realization.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ब्रह्मांडीय वास्तविकता और तत्त्वज्ञान की जटिलता को दर्शाया है। वे कहते हैं कि पृथ्वी और आकाश के बीच दो पवित्र स्थान हैं, और जीवन के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संदेह हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि विभिन्न आध्यात्मिक पथ तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यह दोहा ज्ञान और जीवन के ब्रह्मांडीय पहलुओं की गहराई को उजागर करता है।


कबीर सांई तो मिलहगै, पूछिहिंगे कुसलात।
आदि अंति की कहूंगा, उर अंतर की बात।।१८५६।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, जब तुम भगवान से मिलोगे, वह तुम्हारे कुशलक्षेम के बारे में पूछेंगे। मैं उन्हें सब कुछ बताऊंगा, आरंभ से अंत तक, अपने हृदय की अंतरतम बातें।

Meaning: Kabir says, when you meet the Lord, He will inquire about your well-being. I will tell Him everything from the beginning to the end, the innermost secrets of my heart.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब व्यक्ति भगवान से मिलता है, तो भगवान उसके हाल-चाल पूछते हैं। इस पर कबीरदास जी कहते हैं कि वे अपने हृदय के अंदर की सभी बातों को भगवान के सामने रखेंगे। इससे यह समझ में आता है कि भगवान से कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता। उनके सामने हमें सत्य और निष्कपट होना चाहिए।


कबीर भूलि बिगाड़ि‍या, तूं नां करि मैला चित।
साहिब गरवा लोड़‍िये, नफर बिगाड़ैं नित।।१८५७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, अपने मन को गलतियों से बिगाड़ो मत, और इसे शुद्ध रखो। भगवान की शरण में जाओ, क्योंकि लोग हमेशा नुकसान पहुंचाते हैं।

Meaning: Kabir says, don't ruin your mind with mistakes and keep it pure. Seek the Lord's protection, as people constantly cause harm.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी मनुष्य को समझा रहे हैं कि उसे अपने मन को गलतियों से दूषित नहीं करना चाहिए। अपने मन को शुद्ध और निर्मल रखना ही सही मार्ग है। वे कहते हैं कि इस संसार में लोग हमेशा किसी न किसी रूप में हानि पहुंचाते रहते हैं, इसलिए भगवान की शरण में जाना चाहिए।


करता करै बहुत गुंण, औगुंण कोई नांहि।
जे दिल खोजौं आपणीं, तौ सब औगुण मुझ मांहि।।१८५८।।

अर्थ: सृष्टिकर्ता के पास असीम गुण हैं, और उसमें कोई दोष नहीं है। अगर मैं अपने दिल को खोजता हूँ, तो मुझे अपने भीतर सभी दोष मिलते हैं।

Meaning: The Creator possesses countless virtues, and no flaws exist. If I search my heart, I find all flaws within me.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर के पास असीम गुण हैं और उसमें कोई दोष नहीं है। यदि हम अपने दिल में झांकें, तो हमें अपने अंदर ही सभी प्रकार के दोष दिखाई देंगे। इसका अर्थ है कि हमें अपने दोषों को पहचानकर उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए, बजाय इसके कि हम दूसरों में दोष ढूंढें।


औसर बीता अलपतन, पीस रह्मा परदेस।
कलंक उतारी केसवां, भांनौ भरंम अंदेश।।१८५९।।

अर्थ: पश्चाताप का समय बहुत कम है, और तुम इसे अज्ञान में बर्बाद कर रहे हो। पाप के धब्बों को हटा दो, क्योंकि भ्रम और संदेह ने तुम्हें घेर लिया है।

Meaning: The time for repentance is short, and you are wasting it in ignorance. Remove the stains of sin, for illusion and doubt have taken over.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने मनुष्य को चेताया है कि समय बहुत कम है और हमें अपने पापों का पश्चाताप करने में देरी नहीं करनी चाहिए। भ्रम और संदेह हमें घेर लेते हैं, जिससे हम सच्चाई से दूर हो जाते हैं। अत: हमें अपने जीवन के पापों को धोकर पवित्रता के मार्ग पर चलना चाहिए।


कबीर करत है बीनती, भौसागर के तांई।
बंदे ऊपरि जोर होत है, जंम कूं बारिज गुसाई।।१८६०।।

अर्थ: कबीर भगवान से विनती करते हैं, क्योंकि जीवन का सागर विशाल है। आत्मा पर बोझ बहुत भारी है, और पुनर्जन्म अनगिनत हैं।

Meaning: Kabir pleads to the Lord, for the ocean of life is vast. The burden on the soul is great, and rebirths are countless.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे इस भौतिक संसार के विशाल सागर में उन्हें पार लगाएं। वे कहते हैं कि आत्मा पर पापों का बोझ बहुत भारी है, और इस संसार में पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पाना कठिन है। इसीलिए वे भगवान की शरण में जाकर उनसे मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।


हज बाकै ह्वै ह्वै गया, केती बार कबीर।
मीरां मुझ मैं क्‍या खता, मुखां न बोलै पीर।।१८६१।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, मैंने अनगिनत बार हज किया है। मुझ में कौन सी गलती है, जो मेरा पीर मुझसे बात नहीं करता?

Meaning: Kabir says, I have performed the Hajj countless times. What fault lies in me, that my spiritual guide doesn't speak to me?

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी धार्मिक आडंबरों पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने कई बार हज किया, लेकिन फिर भी उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। यह इसलिए है क्योंकि जब तक मनुष्य अपने अंदर की गलतियों को नहीं समझता और उन्हें सुधारने का प्रयास नहीं करता, तब तक सच्चे ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। सिर्फ बाहरी धार्मिक कर्मकांडों से आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती।


ज्‍यूं मन मेरा तुझ सौं, यौं जे तेरा होइ।
ताता लोहा यौं मिलै, संधि न लखई कोइ।।१८६२।।

अर्थ: यदि तुम्हारा मन मेरे साथ वैसे ही मिल जाए जैसे मेरा मन तुम्हारे साथ मिलता है, तो यह दो लोहे के टुकड़ों के जुड़ने जैसा होगा, जिसमें कोई जोड़ दिखाई नहीं देगा।

Meaning: If your mind merges with mine as mine does with yours, it will be like two pieces of iron welded together, with no visible seam.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह बता रहे हैं कि जब प्रेम सच्चा होता है, तो उसमें कोई अंतर नहीं रह जाता। जैसे दो लोहे के टुकड़े जब जोड़ दिए जाते हैं, तो उनमें कोई फर्क दिखाई नहीं देता, वैसे ही जब दो लोगों के मन आपस में मिल जाते हैं, तो उनमें कोई भेदभाव या दूरी नहीं रह जाती। सच्चे प्रेम और एकता की यही पहचान है।


राम नाम सब कोई कहै, कहिबे बहुत विचार।
सोई राम सती कहै, सोई कौतिग हार।।१८६३।।

अर्थ: हर कोई राम का नाम लेता है, लेकिन बहुत कम लोग उसके सच्चे अर्थ को समझते हैं। केवल सच्चा भक्त जो इसे समझता है, वही असली विजय प्राप्त करता है।

Meaning: Everyone utters the name of Ram, but few understand its true meaning. Only the true devotee who understands, wins the real victory.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि राम का नाम लेना आसान है, लेकिन उसके सही मायने को समझना और अपने जीवन में उतारना बहुत मुश्किल है। जो व्यक्ति राम के नाम का सही अर्थ समझता है और उसे अपने जीवन में उतारता है, वही सच्चा भक्त है और वही जीवन के संघर्षों में विजय प्राप्त करता है।


आगि कह्यां दाझै नहीं, जे नहीं चंपै पाइ।
जब लग भेद न जांणिये, राम कह्या तौ काइ।।१८६४।।

अर्थ: अगर आग को सिर्फ कहने से जलता नहीं है, जब तक उसे छुआ न जाए। वैसे ही 'राम' का नाम लेना बेकार है, जब तक उसके सार को समझा न जाए।

Meaning: Fire won't burn just by saying 'fire' if it's not touched. Similarly, just saying 'Ram' is useless until you understand its essence.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में एक महत्वपूर्ण सत्य बताते हैं। वे कहते हैं कि जैसे आग को सिर्फ 'आग' कहने से वह जलती नहीं है, वैसे ही 'राम' का नाम लेना बेकार है अगर हम उसके वास्तविक अर्थ को नहीं समझते। भगवान का नाम सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि उसकी गहराई को समझकर ही लिया जाना चाहिए, तभी वह प्रभावी होता है।


कबीर सोचि विचरिया, दूजा कोई नांहि।
आपा पर जब चीन्हिया, तब उलटि समाना मांहि।।१८६५।।

अर्थ: कबीर सोच-विचार करते हैं और पाते हैं कि कोई दूसरा नहीं है। जब वे आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वे अपने स्रोत में विलीन हो जाते हैं।

Meaning: Kabir reflects and finds there is no one else. When he realizes the self, he merges back into the source.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी आत्मज्ञान के महत्व को बताते हैं। वे कहते हैं कि जब उन्होंने गहराई से विचार किया, तो पाया कि उनके अलावा कोई दूसरा नहीं है। यह आत्मा और परमात्मा के एकत्व की ओर इशारा करता है। जब मनुष्य अपने आप को पहचान लेता है, तो वह परमात्मा में विलीन हो जाता है, क्योंकि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।


पाणी केरा पूतला, राख्‍या पवन संवारि।
नानां बांणी बोलिया, जोति धरी करतारि।।१८६६।।

अर्थ: मनुष्य जल के पुतले हैं, जिन्हें जीवन की हवा ने संवार रखा है। सृष्टिकर्ता ने उनमें दिव्य प्रकाश डाला है, जिससे वे बोलते और कर्म करते हैं।

Meaning: Humans are mere dolls of water, sustained by the breath of life. The Creator has infused them with divine light, allowing them to speak and act.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने मनुष्य की अस्थिरता और उसके जीवन के मूल स्रोत की ओर ध्यान आकर्षित किया है। वे कहते हैं कि मनुष्य मात्र जल का पुतला है, जिसमें प्राण वायु ने जीवन संचार किया है। सृष्टिकर्ता ने उसे बोलने की शक्ति और दिव्यता प्रदान की है, जिससे वह इस संसार में विभिन्न कार्य करता है। यह दोहा हमें हमारी वास्तविकता और भगवान की शक्ति का एहसास कराता है।


नौ मण सूत अलूझिया, कबीर घर घर बारि।
तिनि सुलझाया बापुड़े, जिनि जाणीं भगति मुरारि।।१८६७।।

अर्थ: नौ मण सूत उलझा हुआ है, और पूरा घर-घराना उथल-पुथल में है। केवल वे लोग इसे सुलझा सकते हैं जो भगवान की भक्ति को समझते हैं।

Meaning: Nine tons of thread are tangled, and the whole household is in turmoil. Only those who understand the devotion to the Lord can untangle it.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में जीवन के जटिलताओं और समस्याओं की तुलना उलझे हुए धागे से करते हैं। वे कहते हैं कि जीवन की कठिनाइयों को हल करना तब तक मुश्किल है जब तक कि मनुष्य भगवान की भक्ति के मार्ग को नहीं अपनाता। भक्त की श्रद्धा और विश्वास ही जीवन के सभी उलझनों को सुलझाने में सक्षम होते हैं। यह दोहा भक्ति की शक्ति और उसके महत्व को दर्शाता है।


आधी साधी सिरि कटैं, जोर विचारा जाइ।
मनि परतीति न ऊपजे, तौ राति दिवस मिलि गाइ।।१८६८।।

अर्थ: अधूरी कोशिशें और कमजोर प्रयास सफलता की ओर नहीं ले जाते। जब तक गहरी आस्था नहीं होती, तब तक निरंतर प्रयास भी बेकार हैं।

Meaning: Half-hearted attempts and weak efforts won't lead to success. Without deep conviction, even constant efforts are in vain.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि आधे-अधूरे मन से किया गया प्रयास और कमजोर संकल्प कभी भी सफलता की ओर नहीं ले जाते। जब तक मन में दृढ़ विश्वास और समर्पण नहीं होता, तब तक रात-दिन की गई मेहनत भी व्यर्थ होती है। यह दोहा हमें सच्चे समर्पण और आस्था के महत्व को बताता है।


सोई आशिष सोई बैयन, जन जू जू बांचवंत।
कोई एक मेलै लवणि, अमी रसाइण हुंत।।१८६९।।

अर्थ: आशीर्वाद और श्राप समान होते हैं, जो समझदार होते हैं वे इनके सार को समझते हैं। जब ज्ञान से जोड़ा जाए, तो विष भी अमृत में बदल जाता है।

Meaning: Blessings and curses are the same, those who understand realize their essence. When combined with wisdom, even poison turns into nectar.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि आशीर्वाद और श्राप दोनों का महत्व समझदारी पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति इन दोनों के सार को समझता है, वह जानता है कि किस तरह से विष को भी अमृत में बदला जा सकता है। यह ज्ञान और समझ की शक्ति को दर्शाता है, जो व्यक्ति को हर परिस्थिति में लाभान्वित कर सकती है।


हरि मोती की माल है, पोई कांच तागि।
जतन करि झंटा घंणा, टूटेगी कहूं लागि।।१८७०।।

अर्थ: भगवान के मोतियों की माला एक नाजुक कांच के धागे पर पिरोई हुई है। चाहे आप इसे कितनी भी सावधानी से संभालें, यह कभी भी टूट सकती है।

Meaning: The necklace of the Lord's pearls is strung on a fragile thread of glass. No matter how carefully you handle it, it may break at any time.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में यह बताते हैं कि भगवान का प्रेम और भक्ति एक अनमोल मोती है, जो नाजुक धागे के समान जीवन की डोर पर टिका है। यह डोर बहुत ही कमजोर है और इसे बेहद संभालकर रखना पड़ता है। यदि हम इसे ढंग से नहीं संभालते, तो यह कभी भी टूट सकती है। यह दोहा भक्ति और जीवन की नाजुकता की ओर इशारा करता है।


रचनहार कूं चीन्हि लै, खौवे कूं कहा रोइ।
दिल मंदिर मैं पैसि करि, तांणि पछेवड़ा सोइ।।१८७१।।

अर्थ: रचनहार को पहचान ले; संसार के खोने पर क्यों रोना? दिल के मंदिर में प्रवेश कर सच्चाई को जान ले।

Meaning: Recognize the Creator; why cry over worldly losses? Enter the temple of the heart and realize the truth within.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी संसारिक दुखों और क्षति पर शोक करने के बजाय, सृजनहार यानी ईश्वर को पहचानने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि जब हम ईश्वर को अपने दिल में पहचान लेते हैं, तो बाहर के दुख या हानि हमें प्रभावित नहीं कर सकते। ईश्वर का साक्षात्कार दिल के मंदिर में ही होता है, और वहां प्रवेश करने पर सभी संसारिक चिंताएं पीछे छूट जाती हैं।


राम नाम करि बोहड़ा, बोहो बीज अघाई।
अंति कालि सूका पड़, तौ निरफल कदे न जाई।।१८७२।।

अर्थ: राम के नाम को अपनी नाव बना और अच्छे कर्मों के बीज भरपूर बो। अंतिम समय में चाहे कितनी ही कठिनाई क्यों न हो, वे कभी व्यर्थ नहीं जाएंगे।

Meaning: Make the name of Ram your raft and sow the seeds of good deeds abundantly. Even in the end times of drought, they will never go to waste.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी भक्ति और अच्छे कर्मों की निरंतरता का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि राम का नाम हमारी सुरक्षा की नाव है और अच्छे कर्म हमारे जीवन के बीज हैं। यदि हम इन दोनों को सही से अपनाते हैं, तो चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, ये कभी व्यर्थ नहीं जाएंगे। जीवन के अंतिम समय में भी इनका फल अवश्य मिलता है।


चिंतामणि मन में बसै, सोई चित मैं आणि।
बिन चिंता चिंता करै, इहैं प्रभु की बाणि।।१८७३।।

अर्थ: चिंतामणि मन में बसता है, जो भी चाहो वही प्राप्त होता है। चिंता मत करो, क्योंकि प्रभु की मर्जी से सब कुछ होता है।

Meaning: The philosopher's stone resides in the mind, bringing forth whatever is desired. Worry not, for the Lord’s will takes care of everything.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी बताते हैं कि मन में चिंतामणि यानी इच्छाशक्ति का वास है, जो भी हम मन में ठानते हैं, वही फलित होता है। लेकिन हमें अनावश्यक चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सभी घटनाएं प्रभु की इच्छा से ही होती हैं। ईश्वर की मर्जी से ही संसार में सब कुछ घटित होता है, इसलिए हमें चिंता से मुक्त रहना चाहिए।


कबीर का तूं चितवै, का तेरा चिंता होइ।
अणध्‍यंत्‍या हरिजी करै, जो तोहि चिंत न होइ।।१८७४।।

अर्थ: कबीर पूछते हैं, तुम क्यों चिंता करते हो? चिंता करने का क्या कारण है? ईश्वर सब कुछ संभाल लेते हैं, भले ही तुम न करो।

Meaning: Kabir asks, why do you worry? What is there to be concerned about? The Lord takes care of everything, even if you don’t.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में भगवान पर भरोसा रखने की बात कहते हैं। वे पूछते हैं कि मनुष्य क्यों चिंता करता है, जबकि सभी चीजें ईश्वर की इच्छा और कृपा से ही होती हैं। जब ईश्वर स्वयं हमारे जीवन की देखभाल कर रहे हैं, तो हमें किसी भी चीज़ की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। यह दोहा हमें निस्वार्थ भाव से भगवान पर भरोसा रखने का संदेश देता है।


करम करीमां लिखि रह्या, अब कछू लिख्‍या न जाइ।
मासा घटै न तिल बढ़ैं, जो कोटिक करै उपाइ।।१८७५।।

अर्थ: भाग्य पहले से ही लिखा हुआ है, और इसे बदला नहीं जा सकता। चाहे जितने भी प्रयास किए जाएं, न तो एक रत्ती घटाई जा सकती है, न बढ़ाई जा सकती है।

Meaning: Fate is already written, and nothing can change it. Not even a grain can be reduced or added, no matter how many efforts are made.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी भाग्य की अपरिवर्तनीयता के बारे में बताते हैं। उनका कहना है कि हमारे कर्म और उनका फल पहले से ही निर्धारित होते हैं और इसे कोई भी प्रयास बदल नहीं सकता। चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, हम अपने भाग्य में कोई भी बदलाव नहीं कर सकते। यह दोहा हमें अपने कर्मों को स्वीकार करने और उन्हें सही तरीके से निभाने की शिक्षा देता है।


चिंता न करि अचिंत रहु, साई है सम्रथ।
पसु पंषेरू जीव जंत, तिनको गांडिं किसा ग्रंथ।।१८७६।।

अर्थ: चिंता मत करो, निश्चिंत रहो, क्योंकि ईश्वर सर्वशक्तिमान है। वह हर जीव, पशु-पक्षी की भी आवश्यकताओं को पूरा करता है।

Meaning: Do not worry, remain carefree, for the Lord is all-powerful. He provides for every creature, be it animals or birds.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में चिंता से मुक्त रहने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं और वे हर जीव, चाहे वह पशु हो, पक्षी हो या कोई अन्य, सभी की आवश्यकताओं का ख्याल रखते हैं। इसलिए, हमें भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखना चाहिए। यह दोहा निश्चिंत और भगवान पर विश्वास रखने की प्रेरणा देता है।


संत न बांधै गांठड़ी, पेट समाता लेइ।
सांई सूं सनमुख रहै, जहां मांगै तहां देइ।।१८७७।।

अर्थ: संत संग्रह नहीं करता, वह केवल उतना ही लेता है जितना उसके पेट में समा सके। वह सदैव ईश्वर की ओर मुख किए रहता है, और जहाँ भी आवश्यक हो, वहीं से प्राप्त करता है।

Meaning: The saint does not hoard, he takes only what fits in his belly. He remains facing the Lord, who provides wherever needed.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी संत के जीवन के आदर्श को बताते हैं। वे कहते हैं कि एक सच्चा संत कभी भी संग्रह नहीं करता, वह केवल उतना ही ग्रहण करता है जितनी उसकी आवश्यकता है। संत सदैव ईश्वर पर निर्भर रहता है, जो हर परिस्थिति में उसे प्रदान करता है। यह दोहा सादगी और ईश्वर पर विश्वास का महत्व दर्शाता है।


राम राम सुं दिल मिली, जम सो पड़ी बिराई।
मोहि भरोसा इष्‍ट का, बंदा नरकि न जाई।।१८७८।।

अर्थ: जब दिल राम के नाम से मिल जाता है, तो यमराज भी अपरिचित हो जाते हैं। मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि भक्त नरक में नहीं जाएगा।

Meaning: When the heart is united with the name of Ram, even Yama (death) becomes a stranger. With faith in the Lord, the soul will not go to hell.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी राम नाम की महिमा बताते हैं। जब कोई व्यक्ति राम के नाम के साथ दिल से जुड़ जाता है, तो मृत्यु भी उससे भयभीत नहीं कर सकती। ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने से व्यक्ति को नरक की यातनाओं का सामना नहीं करना पड़ता। यह दोहा भगवान के प्रति समर्पण और विश्वास की शक्ति को दर्शाता है।


कबीर तूं काहे डरै, सिर परि हरि का हाथ।
हस्‍ती चढ़‍ि नहीं डोलिये, कूकर भूसैं जु लाष।।१८७९।।

अर्थ: कबीर, तुम क्यों डरते हो जब ईश्वर का हाथ तुम्हारे सिर पर है? हाथी की तरह स्थिर रहो, जो रास्ते में भौंकते कुत्तों से विचलित नहीं होता।

Meaning: Kabir, why do you fear when the Lord’s hand is over you? Do not be shaken like an elephant mounted on its path by barking dogs.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में भयमुक्त जीवन जीने की शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि जब ईश्वर का हाथ हमारे सिर पर हो, तो हमें किसी भी प्रकार का डर नहीं होना चाहिए। जैसे एक हाथी रास्ते में भौंकते हुए कुत्तों से विचलित नहीं होता, वैसे ही हमें भी जीवन की बाधाओं से प्रभावित हुए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह दोहा आत्मविश्वास और ईश्वर पर अडिग विश्वास की प्रेरणा देता है।


मीठा खांण मधुकरीं, भांति भांति को नाज।
दावा किसही का नहीं, बिन बिलाइति बड़ राज।।१८८०।।

अर्थ: भीख से प्राप्त मिठाई और विभिन्न प्रकार के भोजन का स्वाद मीठा होता है। लेकिन किसी का भी दावा नहीं होता; बिना मेहनत के, यहां तक कि एक बड़ा राज्य भी अर्थहीन होता है।

Meaning: Sweet is the taste of alms, with a variety of foods. But nothing belongs to anyone; without earning, even a kingdom is meaningless.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी बताते हैं कि भिक्षा में प्राप्त अन्न का स्वाद अनोखा होता है, लेकिन कोई भी चीज स्थायी नहीं होती। अगर किसी ने इसे कमाया नहीं है, तो वह बड़ा राज्य भी अर्थहीन है। यह दोहा सादगी, संतोष और ईमानदारी से अर्जित चीजों की महत्ता को दर्शाता है।


मांनि महातम प्रेम रस, गरवातण गुण नेह।
ए सबही अह लागया, जबहिं कह्या कुछ देह।।१८८१।।

अर्थ: सम्मान, महानता, प्रेम रस और गुणों का स्नेह—all खत्म हो जाते हैं, जब कोई कुछ पाने की बात करता है।

Meaning: Honor, greatness, love, and virtue—all are lost when one speaks of receiving something.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति कुछ पाने या मांगने की इच्छा प्रकट करता है, तो उसके अंदर की महानता, प्रेम, और गुणों का स्नेह समाप्त हो जाता है। सच्चा प्रेम और स्नेह निस्वार्थ होता है, और जहां पाने की भावना होती है, वहां ये गुण खत्म हो जाते हैं। यह दोहा हमें सच्चे प्रेम और निस्वार्थता का महत्व समझाता है।


मांगण मरण समान है, बिरला बंचै कोइ।
कहै कबीर रघुनाथ सूं, मतिर मंगावै मोहि।।१८८२।।

अर्थ: मांगना मृत्यु के समान है; कुछ ही इससे बच पाते हैं। कबीर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें कभी मांगने की नौबत न आए।

Meaning: Asking is akin to death; few survive this. Kabir asks the Lord to never let him beg.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में मांगने की तुलना मृत्यु से करते हैं। उनका मानना है कि किसी से कुछ मांगना आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है, और केवल कुछ ही लोग इस स्थिति से बच पाते हैं। वे भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें ऐसी स्थिति में कभी न डालें जहां उन्हें मांगने की आवश्यकता हो। यह दोहा आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का महत्व बताता है।


पांडल पंजर मन भंवर, अरथ अनूपम बास।
राम नाम सींच्‍या अंमी, फल लागा बेसास।।१८८३।।

अर्थ: खोखला मन एक भंवरे की तरह है, जो अद्वितीय सुगंध की खोज में है। राम के नाम से सींचे जाने पर यह एक भरपूर फल उत्पन्न करता है।

Meaning: The hollow cage of the mind is like a bee, seeking the unparalleled fragrance. Watered by Ram’s name, it bears a bountiful harvest.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी मन को एक खोखले पिंजरे की तरह बताते हैं, जो भंवरे की तरह अद्वितीय सुगंध की खोज करता है। जब यह मन राम के नाम से सींचा जाता है, तो यह अपने अंदर अद्भुत फल उत्पन्न करता है। यह दोहा भगवान के नाम के महत्व और उसके द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक फल की व्याख्या करता है।


मेर मिटी मुकता भया, पाया ब्रह्म बिसास।
अब मेरे दूजा को नहीं, एक तुम्‍हारी आस।।१८८४।।

अर्थ: अहंकार मिट गया, मुक्ति प्राप्त हो गई; ब्रह्म में विश्वास स्थापित हो गया। अब मेरे पास कोई अन्य इच्छा नहीं है, केवल आपकी आशा है।

Meaning: Ego has vanished, and liberation is attained; faith in the Brahman is realized. Now, I have no other desire, only hope in You.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब उनका अहंकार समाप्त हो गया, तो उन्होंने मुक्ति प्राप्त कर ली और ब्रह्म में विश्वास स्थापित हो गया। अब उनके मन में कोई और इच्छा नहीं है, केवल ईश्वर की आशा है। यह दोहा अहंकार के नाश और ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास के महत्व को दर्शाता है।


जाकी दिल में हरि बसै, सो नर कलपै कांइ।
एक लहरि समंद की, दुख दलिद्र सब जांइ।।१८८५।।

अर्थ: जिसके दिल में हरि बसते हैं, वह क्यों दुखी हो? जैसे समुद्र की एक लहर से, सभी दुख और गरीबी समाप्त हो जाते हैं।

Meaning: He in whose heart the Lord resides, why should he suffer? Like a single wave in the ocean, all sorrow and poverty disappear.

व्याख्या: कबीरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि जिस व्यक्ति के दिल में ईश्वर का वास है, उसे किसी भी प्रकार का दुख या कष्ट नहीं होता। जैसे समुद्र की एक लहर सभी दुखों और गरीबी को मिटा देती है, वैसे ही ईश्वर की उपस्थिति सभी कष्टों को समाप्त कर देती है। यह दोहा ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और विश्वास की महिमा को बताता है।


पद गाये लैलीन ह्व, कटी न संसै पास।
सबै पिछीड़े ग्रिह मैं, इक गृही मैं बैराग।।१८८६।।

अर्थ: केवल सतही भक्ति से पद गाने पर संदेह दूर नहीं होते। जबकि अधिकांश लोग गृहस्थ जीवन में बंधे रहते हैं, एक गृहस्थ के भीतर भी सच्चा वैराग्य हो सकता है।

Meaning: Merely singing hymns with superficial devotion does not eliminate doubts. While most remain attached to household life, true renunciation can exist even within a householder.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी सच्ची भक्ति और वैराग्य का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ बाहरी रूप से भजन गाने या पूजा करने से मन के संदेह समाप्त नहीं होते। वास्तविक भक्ति और आंतरिक समर्पण से ही आत्मज्ञान प्राप्त होता है। साथ ही, वे बताते हैं कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी व्यक्ति सच्चा वैराग्य धारण कर सकता है यदि उसका मन संसारिक मोह से मुक्त और भगवान में लीन हो। यह दोहा दिखाता है कि भक्ति का सार हृदय की शुद्धता और आंतरिक समर्पण में निहित है, न कि केवल बाहरी आडंबर में।


गाया तिनि पाया नहीं, अणगांयां ते दूरि।
जिनि गाया बिसवास सूं, तिन राम रह्या भरिपूरि।।१८८७।।

अर्थ: जिन्होंने बिना सच्ची भक्ति के गाया, उन्हें कुछ नहीं मिला, और जिन्होंने नहीं गाया वे और भी दूर हैं। लेकिन जिन्होंने गहरे विश्वास के साथ गाया, उनमें भगवान राम पूर्ण रूप से विराजमान हो गए।

Meaning: Those who sang without true devotion did not attain anything, and those who did not sing are even further away. But those who sang with deep faith found Lord Ram residing fully within them.

व्याख्या: यह दोहा सच्ची श्रद्धा और भक्ति की महत्ता को उजागर करता है। कबीरदास जी कहते हैं कि केवल औपचारिक रूप से भजन या कीर्तन करने से आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलता, और जो लोग भक्ति में लीन नहीं होते, वे और भी दूर हो जाते हैं। लेकिन जो लोग गहरे विश्वास और समर्पण के साथ भगवान का नाम जपते हैं, उन्हें ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव होता है। यह दोहा बताता है कि भक्ति में गुणवत्ता और निष्ठा का होना अत्यंत आवश्यक है, मात्र कर्मकांड पर्याप्त नहीं हैं।


मन फाटा वाइक बुरै, मिटी सगाई साक।
जौ परि दूध तिवास का, ऊकटि हूवा आक।।१८८८।।

अर्थ: बुराई से फटा हुआ मन सभी संबंधों और नातों को नष्ट कर देता है। जैसे जरा सा विष दूध के पूरे घड़े को खराब कर देता है।

Meaning: An evil-torn mind destroys all relationships and connections. Just as a drop of poison spoils an entire pot of milk.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी मन की शुद्धता और उसके प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि यदि मन बुरे विचारों और नकारात्मकता से भर जाता है, तो यह हमारे सभी रिश्तों और सामाजिक बंधनों को प्रभावित करता है और उन्हें नष्ट कर देता है। यह उसी तरह है जैसे थोड़ी सी ज़हर की बूंद पूरे दूध को विषैला बना देती है। इसलिए, मन को शुद्ध और सकारात्मक विचारों से भरना चाहिए ताकि हमारे संबंध और जीवन स्वस्थ और सुखमय बने रहें।


चंदन भांगा गुण करै, जैसे चोली पंन।
बोइ जनां भागां न मिलै, मुकताहल अरु मंन।।१८८९।।

अर्थ: टूटने पर भी चंदन अपनी सुगंध बनाए रखता है, जैसे फटा हुआ कपड़ा भी कुछ ढांकता है। जो बुरे कर्म बोते हैं, उन्हें अच्छा भाग्य, मुक्ति या मन की शांति नहीं मिलती।

Meaning: Even when broken, sandalwood retains its fragrance, like a torn garment still providing some cover. Those who sow bad deeds will not reap good fortune, liberation, or peace of mind.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी कर्मों के प्रभाव और गुणों के महत्व को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि चंदन टूट जाने पर भी अपनी सुगंध नहीं छोड़ता, उसी प्रकार अच्छे गुण व्यक्ति के भीतर हमेशा बने रहते हैं चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। दूसरी ओर, जो लोग बुरे कर्म करते हैं, वे अच्छे भाग्य, मुक्ति और मन की शांति से वंचित रह जाते हैं। यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें सदैव अच्छे कर्म और सद्गुणों को अपनाना चाहिए ताकि हमारा जीवन सुखद और शांतिपूर्ण बन सके।


पासि विनंठा कपड़ा, कदे सुरांग न होइ।
कबीर त्‍याग्‍या ग्‍यान करि, कनक कामनी दोई।।१८९०।।

अर्थ: जो कपड़ा अच्छे से तह किया जाता है, उसमें कभी सिलवटें नहीं पड़तीं। कबीर कहते हैं, सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के बाद मैंने सोना और स्त्रियों दोनों का त्याग कर दिया।

Meaning: A cloth that is well-folded will not develop any wrinkles. Kabir says, after gaining true knowledge, I have renounced both wealth and women.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी आत्मसंयम और त्याग की महत्ता को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह अच्छे से तह किया हुआ कपड़ा कभी सिलवटों से प्रभावित नहीं होता, उसी प्रकार जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान को आत्मसात कर लेता है, वह संसारिक मोह माया जैसे धन और स्त्री के आकर्षण से अछूता रहता है। यह त्याग और ज्ञान का प्रतीक है, जो एक संत का आदर्श है।


चित चेतनि मैं गरक ह्व, चेत्‍य न देखैं मंत।
कत कत की सालि पाड़ि‍ये, गल बल सहर अनंत।।१८९१।।

अर्थ: जब मन विचारों में डूबा होता है, तो यह सलाह नहीं सुनता। चाहे आप अज्ञानता के धागों को एक-एक कर के तोड़ भी दें, भ्रम की गांठें अनंत होती हैं।

Meaning: When the mind is deeply engrossed in thought, it does not heed advice. Even if you tear the threads of ignorance one by one, the knots of delusion are endless.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी मन की जटिलता और भ्रम की प्रकृति के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि जब मन किसी विचार में पूरी तरह लीन हो जाता है, तो उसे सलाह या चेतावनी का कोई असर नहीं होता। भले ही आप अज्ञानता के धागों को एक-एक कर के खोलें, लेकिन भ्रम की गांठें इतनी जटिल और अनंत होती हैं कि उन्हें पूरी तरह सुलझाना बहुत मुश्किल होता है। यह दोहा हमें मन की स्वच्छता और जागरूकता बनाए रखने की आवश्यकता पर ध्यान दिलाता है।


जाता है सो जांण दे, तेरी दसा जाई।
खेवटिया की नाव ज्‍यूं, घणों मिलेंगे आई।।१८९२।।

अर्थ: जो जा रहा है उसे जाने दो; तुम्हारी स्थिति बदल जाएगी। जैसे एक नाविक को कई नए यात्री मिलते हैं, वैसे ही तुम्हें भी कई नए अवसर मिलेंगे।

Meaning: Let go of what is leaving; your situation will change. Just like a boatman who finds many new passengers, you too will encounter many new opportunities.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी हमें सिखाते हैं कि हमें उन चीजों को जाने देना चाहिए जो हमारे जीवन से जा रही हैं, क्योंकि समय के साथ हमारी स्थिति भी बदल जाएगी। जिस प्रकार नाविक को हर बार नए यात्री मिलते हैं, वैसे ही जीवन में हमें भी नए अवसर मिलते हैं। यह दोहा जीवन के बदलावों को सहजता से स्वीकार करने और अतीत से चिपके न रहने की प्रेरणा देता है।


नीर पिलावत क्‍या फिरै, सायर घर घर वारि।
जो त्रिषावंत होइगा, तो पिवेगा झख मारि।।१८९३।।

अर्थ: तुम घर-घर पानी क्यों बांटते फिरते हो? जो वास्तव में प्यासा होगा, वह स्वयं ही इसे ढूंढेगा और पिएगा।

Meaning: Why do you go around offering water from house to house? The one who is truly thirsty will find and drink it on their own.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी सच्ची आवश्यकता और आत्मजागृति के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं कि किसी को जबरदस्ती कुछ देने की कोशिश मत करो, क्योंकि जो वास्तव में जरूरतमंद होगा, वह खुद ही उसे खोज लेगा। यह दोहा इस बात पर जोर देता है कि सच्ची प्यास या आवश्यकता भीतर से उत्पन्न होती है, और जब वह जागृत होती है, तो व्यक्ति स्वयं ही उसे पाने का प्रयास करता है।


सत गंठी कोपीन है, साध न मानै संक।
राम अमलि माता रहै, ते गिणं इंद्र कौ रंक।।१८९४।।

अर्थ: सच्चा साधु सिर्फ एक लंगोटी पहनता है और संदेह में नहीं पड़ता। भगवान राम के नाम में लीन व्यक्ति के सामने इंद्र भी गरीब लगते हैं।

Meaning: A true ascetic wears a simple loincloth and does not indulge in doubts. Even Indra, the king of gods, seems like a pauper in comparison to one who is intoxicated with the divine name of Ram.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी सच्चे साधु के गुणों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि सच्चा साधु वह है जो सांसारिक मोह-माया से दूर रहता है और केवल परमात्मा में लीन रहता है। उसका बाहरी आडंबर या वस्त्र साधारण होता है, लेकिन उसकी आंतरिक स्थिति इतनी उच्च होती है कि इंद्र जैसे देवता भी उसके सामने तुच्छ लगते हैं। यह दोहा सच्ची साधुता और आंतरिक समृद्धि का महत्व दर्शाता है।


दावै दाझण होत है, निरदावै निरसंक।
जे नर निरदावै रहैं, ते गिणैं इंद्र को रंक।।१८९५।।

अर्थ: जो व्यक्ति इच्छाओं से बंधा हुआ है, वह दुखी होता है, जबकि जो व्यक्ति निराश्रय है, वह निडर रहता है। जो व्यक्ति निराश्रय रहता है, वह इंद्र के मुकाबले भी धनी होता है।

Meaning: Those who are attached to desires suffer, while those without desires remain fearless. Even Indra, the king of gods, seems like a pauper compared to one who is detached.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी इच्छाओं और निर्लिप्तता के प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं से ग्रस्त रहता है, वह हमेशा दुःखी और असंतुष्ट रहता है। इसके विपरीत, जो व्यक्ति निर्लिप्त रहता है, वह निडर और शांति से भरा होता है। ऐसे व्यक्ति की तुलना में, इंद्र जैसा समृद्ध व्यक्ति भी निर्धन प्रतीत होता है। यह दोहा आत्मसंयम और निर्लिप्तता की महत्ता को उजागर करता है।


नां कुछ किया न करि सक्‍या, ना करणे जोग सरीर।
जे कछु किया सु हरि किया, भया कबीर कबीर।।१८९६।।

अर्थ: मैंने कुछ नहीं किया, और न ही मैं कुछ करने में सक्षम था; मेरा शरीर इसके योग्य नहीं था। जो कुछ भी हुआ, वह भगवान ने किया; इस प्रकार, मैं कबीर से कबीर बन गया।

Meaning: I have done nothing, nor was I capable of doing anything; my body was not fit for it. Whatever has been done, it was done by God; thus, I became Kabir, Kabir.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी अपनी असहायता और भगवान के सर्वशक्तिमान होने की बात करते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने स्वयं कुछ नहीं किया, और न ही वे कुछ करने में सक्षम थे। उनका शरीर भी कुछ करने के योग्य नहीं था। जो कुछ भी हुआ, वह भगवान की कृपा से हुआ। इस अहसास ने उन्हें 'कबीर' बना दिया। यह दोहा आत्मसमर्पण और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास की शिक्षा देता है।


कबीर किया कछू न होत है, अनकीया सब होइ।
दर‍िगह तेरी सांइयां, नांमहरूम न होइ।।१८९७।।

अर्थ: कबीर, हमारे किए से कुछ नहीं होता; सब कुछ पहले से तय है। हे प्रभु, आपकी दरबार में कोई भी बिना इनाम के नहीं रहता।

Meaning: Kabir, nothing happens as a result of our actions; everything happens as destined. In your court, O Lord, no one goes unrewarded.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी इस बात पर जोर देते हैं कि हमारे कर्मों का प्रभाव सीमित है, और जो कुछ भी होता है, वह पहले से निर्धारित होता है। वे कहते हैं कि भगवान की कृपा से ही सब कुछ होता है, और उनकी दरबार में कोई भी बिना कृपा के नहीं रहता। यह दोहा हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों से अधिक भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।


एक खड़े ही लहैं, और खड़ा बिललाइ।
साईं मेरा सुलषना, सूता देइ जगाइ।।१८९८।।

अर्थ: एक व्यक्ति बिना कुछ किए ही सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जबकि दूसरा व्यक्ति रोते हुए भी खाली हाथ रहता है। मेरा प्रभु न्यायप्रिय है; वह सोए हुए को भी जगा देता है।

Meaning: One person receives everything while standing still, another cries out in desperation. My Lord is just; He awakens even those who are asleep.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी भगवान की न्यायप्रियता और कृपा की महत्ता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि एक व्यक्ति बिना प्रयास के ही सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जबकि दूसरा व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कुछ नहीं पाता। लेकिन उनका प्रभु ऐसा नहीं है; वह सभी को जागरूक करता है और उचित समय पर कृपा करता है। यह दोहा भगवान की न्यायप्रियता और सबकी भलाई की सोच पर विश्वास दिलाता है।


सात समुंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ गरू गुण लिख्‍या न जाइ।।१८९९।।

अर्थ: यदि मैं सात समुद्रों को स्याही बना दूं और सभी लकड़ियों को कलम, और पूरी पृथ्वी को कागज बना दूं, तब भी मैं अपने गुरु के गुणों को नहीं लिख सकता।

Meaning: Even if I turn the seven seas into ink and all the wood into pens, even if I use the entire earth as paper, I still cannot write all the virtues of my Guru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी गुरु के महत्व और उनकी महानता को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि चाहे उनके पास कितनी भी सामग्री क्यों न हो, वह अपने गुरु के गुणों का वर्णन नहीं कर सकते। यह दोहा गुरु के प्रति कृतज्ञता और उनके अपार ज्ञान और गुणों के प्रति आदर का प्रतीक है।


अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्‍या न जाइ।
अपना बाना बाहिया, कहि-कहि थाके माइ।।१९००।।

अर्थ: अवर्णनीय को कैसे वर्णन करूँ? मैं इसे व्यक्त नहीं कर सकता। जिसने मुझे जन्म दिया, वह इसे समझाने की कोशिश करते-करते थक गई।

Meaning: How can I describe the indescribable? I cannot express it. The mother who gave me birth is exhausted from trying to explain.

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी उस अवस्था का वर्णन करते हैं जो शब्दों से परे है। वे कहते हैं कि इस अनुभव को व्यक्त करना असंभव है। यहां तक कि जो व्यक्ति उन्हें जन्म देने वाली माता भी है, वह इस अवस्था को समझाने में असमर्थ है। यह दोहा उस आध्यात्मिक अनुभूति की बात करता है जिसे शब्दों में बांध पाना कठिन है।