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संत कबीर जी के दोहे — 1651 to 1700

मानुष ह्वे के नहिं मुवा, मुवा सो डांगर ढोर।
एकां जीवहिं ठौर नहिं लागा, भये सो हाथी घोर।।१६५१।।

अर्थ: मनुष्य मरे नहीं जैसे जानवर मरते हैं; मरा हुआ व्यक्ति पशु की तरह होता है। बिना ठिकाने के, यह एक भयंकर हाथी बन जाता है।

Meaning: The human does not die like an animal; the dead one is like cattle. Without a place to live, it becomes a fierce elephant.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मृत्यु और मानव की स्थिति को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य की मृत्यु पशुओं की तरह नहीं होती और अगर ठिकाना नहीं मिलता तो मृत्यु के बाद भी वह एक भयंकर अस्तित्व बन जाता है।


मन सायर मनसा लहरि, बूड़े बहुत अचेत।
कहहिं कबीर ते बांचिहै, जाके हृदय विवेक।।१६५२।।

अर्थ: मन नदी की लहरों की तरह होता है, अक्सर अज्ञान में डूबा रहता है। कबीर कहते हैं कि जो इसे पढ़ेगा, उसके दिल में विवेक होगा।

Meaning: The mind is like the waves of a river, often drowning in ignorance. Kabir says those who read this will have a heart full of wisdom.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मन की प्रवृत्तियों और अज्ञानता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि केवल वे लोग जो हृदय में विवेक रखते हैं, इस ज्ञान को समझ सकते हैं।


मन माया एक है, माया मनहिं समाय।
तीनि लोक संशय परे, काहि कहौं बिलगाय।।१६५३।।

अर्थ: मन और माया एक हैं; माया मन में समाई हुई है। तीनों लोकों से परे संशय है; मैं विभाजन की बात क्यों करूं?

Meaning: Mind and illusion are the same; illusion resides in the mind. Beyond the three worlds, there is doubt; why should I speak of separation?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि मन और माया एक ही हैं और माया मन में ही निवास करती है। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के संदेह तीन लोकों से परे हैं और विभाजन की चर्चा व्यर्थ है।


मन माया की कोठरी, तन संशय का कोट।
विषहर मंत्र न माने, काल सर्प का चोट।।१६५४।।

अर्थ: मन माया की कोठरी है, और शरीर संशय का किला है। विषहर मंत्र प्रभावी नहीं होते; यह समय के सांप का काटा होता है।

Meaning: The mind is a chamber of illusion, and the body is a fortress of doubt. The poison of spells does not affect; it is the bite of the serpent of time.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि मन और शरीर किस प्रकार माया और संशय का स्थान होते हैं। उन्होंने कहा कि समय का प्रभाव असली विष है, न कि किसी मंत्र का प्रभाव।


बाजीगर के वानरा, जियरा मन के साथ।
मन सायर समुद्र है, वहि कतहूं जानि जाय।।१६५५।।

अर्थ: जादूगर के बंदर, दिल और मन के साथ। मन समुद्र की तरह होता है; वह कहाँ जाता है, कोई नहीं जानता।

Meaning: The monkeys of the magician, along with the heart and mind. The mind is like the ocean; where it goes, no one knows.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मन की अनिश्चितता और उसकी व्यापकता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि मन समुद्र के समान गहरा और अनजान होता है, जहाँ वह जाएगा, कोई नहीं जानता।


मलयागिरि के वास में, वृक्ष रहे सबभोय।
कहिबे को चंदन भए, मलयागिरि नहिं होय।।१६५६।।

अर्थ: मलयागिरि के निवास में, सभी पेड़ हरे-भरे रहते हैं। यह कहना कि चंदन केवल मलयागिरि है, सही नहीं है।

Meaning: In the abode of Malaya Mountain, all trees thrive. To say that the sandalwood is the Malaya Mountain, is not correct.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रकृति और सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि मलयागिरि का निवास वृक्षों का ही है, और केवल चंदन को ही मलयागिरि नहीं मान सकते।


मलयागिरि के बास महं, बेधो ढ़ाक पलास।
वेणा कबहन बेधिया, जुगजुग रहते पास।।१६५७।।

अर्थ: मलयागिरि के निवास में, ढाक और पलास जैसे पेड़ हैं। वीणा वहां हमेशा से है, युगों से वहाँ विद्यमान है।

Meaning: In the residence of Malaya Mountain, there are trees like Dhak and Palash. The Veena (a musical instrument) has always resided there, enduring through ages.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रकृति और शाश्वत सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि मलयागिरि में ढाक और पलास जैसे पेड़ हैं, और वीणा वहाँ हमेशा से रही है।


हौं तो सब ही की कही, मेरी कहे न कोय।
मेरी कहे सो जना, जो मुझ ही सा होय।।१६५८।।

अर्थ: मैं सबके लिए बोलता हूँ, लेकिन कोई मेरे लिए नहीं बोलता। केवल वही लोग, जो मेरे जैसे हैं, मेरी बात समझ सकते हैं।

Meaning: I speak for everyone, but no one speaks for me. Only those who are like me, can understand what I say.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में व्यक्तिगत और सार्वभौम स्थिति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि केवल वही लोग जो उनके समान हैं, उनकी बातें समझ सकते हैं।


ये कबीर ते उतरिह रहु, तेरो संमल परोहन साथ।
शंबल घटे न पगु थका, जीव विराने हाथ।।१६५९।।

अर्थ: कबीर तुमसे अलग रहेंगे, तुम्हारे सहारे और समर्थन के साथ। तीर्थयात्रा पांवों को थका नहीं सकती, लेकिन आत्मा की प्यास बुझ जाएगी।

Meaning: Kabir will remain detached from you, with your companion and support. The pilgrimage will not tire the feet, but the soul's thirst will be quenched.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के ज्ञान और आत्मा की प्यास को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविक आत्मा की प्यास तीर्थयात्रा से नहीं बुझती, बल्कि ज्ञान से बुझती है।


रंगहि ते रंग उपजे, सब रंग देखी एक।
कवन रंग है जीव को, ताकर करहु विवेक।।१६६०।।

अर्थ: रंगों से रंग उत्पन्न होते हैं, सभी रंग एक जैसे देखे जाते हैं। आत्मा में कौन सा रंग है? इसे समझने के लिए अपनी विवेक का उपयोग करो।

Meaning: Colors arise from colors, all colors are seen as one. What color is there in the soul? Use your wisdom to understand.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में रंगों और आत्मा की सच्चाई को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा के रंग का कोई निश्चित स्वरूप नहीं है, इसे समझने के लिए विवेक की आवश्यकता है।


रतन का जतन करि, माटी का सिंगार।
आया कबीरा फिरि गया, झूठा है संसार।।१६६१।।

अर्थ: रत्नों की देखभाल करो और मिट्टी से सजाओ। कबीर आया और चला गया, यह संसार झूठा है।

Meaning: Care for jewels and decorate with earth. Kabir came and went, this world is false.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में संसार की झूठी सुंदरता और वास्तविकता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि संसार की सजावट और आभूषण केवल एक भ्रम हैं।


रतन लराइन रेत में, कंकर चुनि चुनि खाय।
कहहिं कबीर पुकारिके, बहुरि चले पछिताय।।१६६२।।

अर्थ: रत्न रेत में बिखरे हुए हैं, पत्थर चुन-चुनकर खा रहे हैं। कबीर कहते हैं, पुकारने के बाद भी एक बार फिर पछताना पड़ेगा।

Meaning: Jewels are scattered in the sand, picking stones to eat. Kabir says, after calling, one would regret again.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के भ्रम और पछतावे को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि जिन चीजों की खोज हम करते हैं, वे हमें केवल पछतावा देती हैं।


रही एक की भइ अनेक की, विश्‍वा बहु भर्तारी।
कहहिं कबिर काम संग जरिहै, बहुत पुरुष की नारी।।१६६३।।

अर्थ: जो एक था वह कई हो गया, दुनिया के पास कई रखवाले हैं। कबीर कहते हैं, जो इच्छाओं से जलते हैं, वे कई पुरुषों की पत्नियाँ होंगी।

Meaning: What was one became many, the world has many caretakers. Kabir says, those consumed by desire will burn, many men’s wives.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में विश्व की एकता और इच्छाओं के प्रभाव को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि इच्छाओं से जले हुए लोग अक्सर कई रिश्तों में उलझे रहते हैं।


रामनाम जिन चीन्हिया, झीने पिंजर तासु।
रैनि न आवे नींदरी, अंग न चढ़‍िया मांसु।।१६६४।।

अर्थ: जो राम के नाम को पहचानते हैं, वे शरीर के पिंजरे को समझते हैं। रात नींद नहीं लाती, और मांस से संतोष नहीं मिलता।

Meaning: Those who recognize the name of Ram, find the cage of the body. Night does not bring sleep, and flesh does not satisfy.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक जागृति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि राम के नाम को पहचानने से शरीर की सीमाओं को समझा जाता है और सांसारिक सुख असंतोषजनक होते हैं।


राउर के पिछवारे, गावें चारों सन।
जीव परा बहु लूट में, नहिं कछु लेन न देन।।१६६५।।

अर्थ: तुम्हारे पीछे, चारों दिशाएँ गा रही हैं। जीव लूट में बहुत है, कुछ भी पाने या खोने को नहीं है।

Meaning: At your back, the four directions are singing. The living being is in much loot, with nothing to gain or lose.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में समाज की स्थिति और व्यक्ति के अस्तित्व की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन व्यक्ति के पास कुछ भी स्थायी नहीं है।


राम वियोगी विकल तन, इन दुखवै मति कोय।
छूबत ही मरि जाहिंगे, तालाबेली होय।।१६६६।।

अर्थ: जो राम से दूर होता है, उसका शरीर बेचैन रहता है, कोई इस दुख को नहीं समझता। जब छुआ जाता है, वे मर जाते हैं, जैसे तालाब में सूखा पत्ता।

Meaning: The body of one separated from Ram is restless, no one understands this sorrow. When touched, they die, like a dry leaf in a pond.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में राम से वियोग के दुख और उसकी गहराई को दर्शाते हैं। उन्होंने इसे तालाब में सूखे पत्ते की तरह बताया, जो छूने से मर जाता है।


राह विचारी क्‍या करै, जो पन्थि नचले बिचारि।
अपना मारग छोड़‍ि के, फिरे उजारि उजारि।।१६६७।।

अर्थ: राह पर विचार करने से क्या होगा, अगर यात्री खुद न चले? अपने मार्ग को छोड़कर, वह निराधार घूमता रहता है।

Meaning: What can one do by pondering the path, if the traveler does not move forward? Leaving one's own path, one wanders aimlessly.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्म-ज्ञान और मार्ग की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि खुद के मार्ग को छोड़कर और केवल विचार करने से कुछ भी हासिल नहीं होता।


लाई लावनहार की, जाकी लाई पर जरे।
बलिहारी लावनहार की, छप्‍पर वाचे घर जरे।।१६६८।।

अर्थ: जो मसाला लाता है, वही घर को जलाता है जहां मसाला इस्तेमाल होता है। मसाला लाने वाला कितना बड़ा है, भले ही घर की छत जल जाए।

Meaning: One who brings spices burns the house where the spice is used. How great is the one who brings the spice, even if the roof of the house is burned.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में इच्छाओं और ज्ञान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जो इच्छाएं लाते हैं, वे अक्सर नुकसान भी करती हैं, फिर भी ऐसे लोगों की महानता का गुणगान किया।


लोग भरोसे कवन के, बैठ रहे अरगाय।
ताते जियरहिं जमे लूट, जस मटिया लुटै कसाय।।१६६९।।

अर्थ: लोग किसके भरोसे बैठते हैं और आराम करते हैं? इसी बीच, उनकी आत्मा लूट ली जाती है, जैसे मटिया का लूट होना।

Meaning: On whose trust do people sit and relax? Meanwhile, their souls are looted, like clay being looted by the potter.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भरोसे और शोषण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की आत्मा शोषण का शिकार होती है, जबकि वे आराम से बैठे रहते हैं।


लोभे जन्‍म गमाइया, पापे खाया पुण्‍य।
साधी सो आधीकहै, ता पर मेरा खून।।१६७०।।

अर्थ: लोभ जन्म की समस्याओं का कारण बनता है, पाप खा लिए जाते हैं और पुण्य प्राप्त किया जाता है। जो इस संतुलन को बनाए रखता है, वही मेरा खून है।

Meaning: Greed gives birth to troubles, sins are consumed and virtues are earned. The one who maintains this balance is my own blood.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में लोभ और पुण्य की चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि संतुलित जीवन जीने वाला व्यक्ति ही असली समझदार है।


लाहा केरी नावरी, पाहन गरुवा भार।
सिर पर विष की पोटरी, उतरन चाहे पार।।१६७१।।

अर्थ: लोहा का भार भारी होता है, और पत्थर भी बोझिल होता है। सिर पर विष का बर्तन है, पार करने की इच्छा करता है।

Meaning: The burden of iron is heavy, and the stone weighs down. The pot of poison on the head desires to cross over.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के बोझ और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि विष का बर्तन सिर पर होने के बावजूद पार करने की इच्छा रहती है।


विरह की ओदी लाकरी, सपचे औ धुंधवाय।
दुख ते तब ही बांचिहो, जब सकलो जरि जाय।।१६७२।।

अर्थ: विरह की लकड़ी जल रही है, सच्चा दर्द और भ्रम पैदा कर रही है। दुख से तभी मुक्ति मिलेगी जब सब कुछ जल जाए।

Meaning: The wood of separation is burning, causing true pain and confusion. One will only be freed from suffering when everything is burned away.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में विरह और सहनशीलता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि पूर्ण मुक्ति तब ही मिलेगी जब सभी दुख समाप्त हो जाएंगे।


विरहिनि साजी आरती, दर्शन दीजे राम।
मूये दर्शन देहुगे, आवत कवने काम।।१६७३।।

अर्थ: विरहिणी आरती कर रही है, राम के दर्शन की प्रार्थना कर रही है। जब वह मर जाएगी, तो दर्शन का क्या उपयोग होगा?

Meaning: The woman in separation performs the ritual, asking for the sight of Ram. Once she is dead, what is the use of the sight?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भक्ति और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जब एक व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है, तो भक्ति के दर्शन का कोई महत्व नहीं रह जाता।


शब्‍द हमारा आदि का, शब्‍दे पैठा जीव।
फूल रहन की टोकरी, धोरे खाया घीव।।१६७४।।

अर्थ: शब्द प्राचीन है, आत्मा शब्द में निवास करती है। फूलों की टोकरी बनी रहती है, लेकिन घी का सेवन होता है।

Meaning: The word is from the beginning, the soul resides in the word. The basket of flowers remains, but the ghee is consumed.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भाषा और ज्ञान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शब्द अनादि हैं और आत्मा शब्द में निवास करती है, जबकि फूलों की टोकरी स्थायी रहती है।


शब्‍द हमारा आदि का, पल-पल करहू याद।
अंत फलेगी माहली, ऊपर की सब वाद।।१६७५।।

अर्थ: शब्द शाश्वत है, इसे हर पल याद करो। अंत में इसका सार प्रकट होगा, और बाकी की सभी बहसें महत्वहीन हो जाएंगी।

Meaning: The word is eternal, remember it every moment. In the end, the essence will be revealed, and all other debates will be inconsequential.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक समझ की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शब्द शाश्वत है और अंत में इसका सच्चा अर्थ प्रकट होगा।


शब्‍द बिना सुरति आंधरी, कहो कहां को जाय।
द्वार न पावै शब्‍द का, फिर‍ि फिर‍ि भटका खाय।।१६७६।।

अर्थ: शब्द के बिना, मन अंधा है; कहां जा सकते हैं? शब्द के दरवाजे के बिना, व्यक्ति बेवजह घूमता रहता है।

Meaning: Without the word, the mind is blind; where can one go? Without the door of the word, one wanders aimlessly.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शब्द और समझ की भूमिका को बताते हैं। बिना शब्द के, समझ अंधी रहती है और व्यक्ति बिना दिशा के भटकता है।


शब्‍दै मारा गिर पड़ा, शब्‍दै छोड़ा राज।
जिन्‍ह जिन्‍ह शब्‍द विचारिया, ताको सर गयो काज।।१६७७।।

अर्थ: जो शब्दों से मारा गया, वह गिर पड़ा, और जो शब्द को छोड़ते हैं, वे अपना राज्य खो देते हैं। जो शब्द पर विचार करते हैं, उनका काम पूरा हो जाता है।

Meaning: One who is struck by words falls down, and those who forsake the word lose their kingdom. Those who contemplate the word, their work is accomplished.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शब्द और ज्ञान की महत्वता को दर्शाते हैं। शब्दों का सही उपयोग करने वाला व्यक्ति अपने कार्य को पूरा करता है।


शब्‍द शब्‍द बहु उंतरे, सार शब्‍द मथि लीजे।
कहहिं कबिर जेहि सार शब्‍द, नहिं धृग जीवन सो जीजे।।१६७८।।

अर्थ: शब्द तो बहुत हैं, लेकिन सार तो मूल शब्द में है। कबीर कहते हैं, जो व्यक्ति शब्द के सार को समझता है, वही जीवन को सही मायने में जीता है।

Meaning: The words are many, but the essence is in the core word. Kabir says, the one who understands the essence of the word, truly lives a meaningful life.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शब्दों के सार की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शब्दों का सही समझना और उनका सार जानना महत्वपूर्ण है।


शब्‍द हमारा तूं शब्‍द का, सुनि मति जाह सरक।
जो चाहहु निज तत्त्‍व को, शब्‍दह लेह परख।।१६७९।।

अर्थ: शब्द हमारा भी है और दूसरों का भी; सुनो और मन को जांचने दो। यदि आप सच्चाई समझना चाहते हैं, तो शब्द के माध्यम से परखें।

Meaning: The word is ours and also the word of others; listen and let the mind discern. If you wish to understand the truth, examine it through the word.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शब्द और सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सत्य को समझने के लिए शब्दों का सही परख आवश्यक है।


हौं जाना कुलहंस हौ, ताते कीन्‍हा संग।
जो जानत बगु बावरा, ठये न देतेऊं अंग।।१६८०।।

अर्थ: मैं अपनी सच्चाई जानता हूँ, फिर दूसरों के साथ क्यों जुड़ूं? जो सच्चाई को समझते हैं, वे झूठ में उलझते नहीं हैं।

Meaning: I know the true self, why should I join with others? Those who understand the true essence do not get entangled in falsehood.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्म-ज्ञान और मूर्खता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई को जानने वाला व्यक्ति झूठ में नहीं फंसता।


श्रोता तो घर में नहीं, वक्‍ता बके सो वादि।
श्रोता वक्‍ता एक घर, कथा कहावे आदि।।१६८१।।

अर्थ: श्रोता घर में नहीं है, जबकि वक्ता बहस कर रहा है। श्रोता और वक्ता एक ही घर में होते हैं, फिर भी कथा नहीं सुनाई जाती।

Meaning: The listener is not at home, while the speaker debates. The listener and speaker are within one house, yet the story remains untold.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में श्रोता और वक्ता की स्थिति को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों एक ही स्थान पर होते हैं, फिर भी संवाद पूरा नहीं होता।


संगति के सुख ऊपजे, कुसंगति के दुख होय।
संसय खंडे जो जना, जो शब्‍द विवेकी होय।।१६८२।।

अर्थ: अच्छी संगति से सुख मिलता है, और बुरी संगति से दुख। जो इसको समझ सकता है, वह बुद्धिमान होता है और संदेहों से मुक्त होता है।

Meaning: Happiness arises from good association, and misery from bad association. One who can discern this is wise and free from doubts.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में संगति के प्रभाव की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि अच्छी संगति सुख देती है, और बुरी संगति दुख, और जो इसका विवेचन कर सकता है वह सच्चा ज्ञानी है।


संसारी समय विचारी, कोई गिरही कोई जोग।
अवसर मारे जात है, ते चेतु बिराने लोग।१६८३।।

अर्थ: संसार के समय पर विचार करते हुए, कुछ गृहस्थ हैं और कुछ योगी। अवसर खो जाते हैं, इसलिए सावधान रहो, हे अज्ञानी लोग।

Meaning: Contemplating worldly time, some are householders and some are yogis. Opportunities are lost, so be cautious, O ignorant ones.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में संसार के समय और अवसरों की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में अवसर खो जाते हैं, इसलिए ध्यान रखना चाहिए।


सज्‍जन ते दुर्ज्‍जन भयो, सुनि काहु के बोल।
कांसा तांबा होय रहा, हता ठिकों के मोल।।१६८४।।

अर्थ: व्यक्ति सज्जन या दुर्जन बनता है, जो कुछ वह सुनता है उसके आधार पर। जैसे कांसा और तांबा वैसे ही रहते हैं, उनकी कीमत मूल्य से मापी जाती है।

Meaning: One becomes virtuous or wicked based on what one hears. Just as brass and copper remain, their value is measured by worth.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सद्गुण और दुर्गुण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का चरित्र सुनने और समझने पर निर्भर करता है।


सद्गुरु वचन सुनहु सन्‍तो, मति लिन्‍हा शिर भार।
हौं हजूर ठाड़ कहते हौं, तैं क्‍यों संभार।।१६८५।।

अर्थ: सच्चे गुरु के वचनों को सुनो, उन्हें अपने दिल में उतारो। यदि आप दृढ़ता से पालन करते हैं, तो चिंता क्यों करें?

Meaning: Listen to the words of the true Guru, take them to heart. If you stand firm and follow them, why worry?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में गुरु की सलाह और अनुशासन की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु की बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर और उनका पालन करके चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है।


मसो कागद छुवो नहीं, कलम धरो नहिं हाथ।
चाहिहुं युग को महातम, कबीर मुखहिं जनाई बात।।१६८६।।

अर्थ: मैं कागज को नहीं छूता और कलम नहीं पकड़े हुए हूँ। यदि आप युग की महानता जानना चाहते हैं, तो कबीर इसे अपने मुख से बताते हैं।

Meaning: I do not touch paper or hold a pen in my hand. If you want to know the greatness of the ages, Kabir speaks it with his mouth.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में ज्ञान और अभिव्यक्ति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि युग की महानता को जानने के लिए शब्द और विचारों को सुनना जरूरी है।


सपने सोवा मानवा, खोलि जो देखे नैन।
जीव परा बहुलूट में, ना कुछ लेन न देन।।१६८७।।

अर्थ: सपने मन के लिए मात्र भ्रांतियाँ हैं, जो केवल आंखों से देखी जाती हैं। आत्मा अनेक भ्रांतियों में फंसी रहती है, जिसका ना कुछ लेना होता है ना देना।

Meaning: Dreams are mere illusions for the mind, only visible through the eyes. The soul is caught in many illusions, having nothing to give or take.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सपनों और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सपने केवल भ्रांतियाँ होती हैं और आत्मा भ्रम में रहती है।


सब‍की उत्‍पति धरती, सब जीवन प्रतिपाल।
धरती न जाने आप गुण, ऐसो गुरु विचार।।१६८८।।

अर्थ: धरती सभी की उत्पत्ति करती है और जीवन का पालन करती है। धरती अपने गुणों को नहीं जानती; यही गुरु की सोच है।

Meaning: The earth gives rise to all and sustains all life. The earth itself does not know its own virtues; thus is the wisdom of the Guru.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में धरती की महत्वता और गुरु के ज्ञान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे धरती अपनी गुणों को नहीं जानती, वैसे ही गुरु की सोच भी अलग होती है।


सब ते सांचा ही भला, जो दिल सांचा होय।
सांच बिना सुख है नहीं, कोटि करे जो कोय।।१६८९।।

अर्थ: सर्वश्रेष्ठ वही है जो सच्चा हो; सच्चाई दिल में होती है। सच्चाई के बिना सुख नहीं मिलता, चाहे कितने भी प्रयास किए जाएं।

Meaning: The best is that which is true; what is true is in the heart. Without truth, there is no happiness, no matter how many efforts one makes.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्चाई और सुख की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई के बिना कोई सुख नहीं मिल सकता, चाहे जितने भी प्रयास किए जाएं।


समुझे की गति एक है, जिहि समझे सब ठौर।
कहहिं कबिर ये बीच के, कहै और की और।।१६९०।।

अर्थ: समझने का सार एक ही है, चाहे जहां भी समझा जाए। कबीर कहते हैं कि मध्य मार्ग को अक्सर अलग माना जाता है।

Meaning: The essence of understanding is the same, no matter where it is perceived. Kabir says that the middle path is often considered different.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में समझ और भ्रांति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि समझ का सार समान है, लेकिन बीच के रास्ते को अलग माना जाता है।


सब ही तो लघुता भली, लघुता ते सब होय।
ज्‍यों द्वितीय के चन्‍द्रमा, नवावै सब कोय।।१६९१।।

अर्थ: सभी को विनम्रता में महानता मिलती है; विनम्रता से सब कुछ प्राप्त होता है। जैसे दूसरा चंद्रमा उगता नहीं है, वैसे ही सबको महानता प्राप्त करनी चाहिए।

Meaning: All find greatness in humility; through humility, everything is achieved. Just as the second moon does not rise, all must achieve greatness.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में विनम्रता और महानता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि विनम्रता से सब कुछ प्राप्त होता है, और यह अत्यंत आवश्यक है।


समुझाये समुझे नहीं, पर हाथ आप बिकाय।
मैं खींचत हौं आपु को, चला सो जमपुर जाय।।१६९२।।

अर्थ: कोई समझाने की कोशिश करता है लेकिन समझा नहीं जाता, जबकि स्वयं उस प्रक्रिया में बिक जाता है। मैं स्वयं को खींचता हूँ, फिर भी यह मृत्यु के नगर में जाता है।

Meaning: One tries to explain but is not understood, while oneself is sold in the process. I pull myself along, yet it leads to the city of death.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में समझ और आत्म-व्याख्या की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि समझाना कठिन है और इसमें खुद को खोना पड़ता है।


सांचा शब्‍द कबीर का, हृदया देखि विचारी।
चित दे समुझे नहिं मोहि, कहत भए जुग चारि।।१६९३।।

अर्थ: कबीर का सच्चा शब्द, जिसे दिल से देखा गया है, चार युगों से कहा गया है। मन इसे नहीं समझता, भले ही यह चार युगों से कहा गया है।

Meaning: The true word of Kabir, considered by the heart, has been said for ages. The mind does not understand it, though it has been spoken for four ages.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्चे शब्द और समझ की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे शब्द को समझना कठिन होता है, हालांकि इसे कई युगों से कहा गया है।


स्‍वर्ग पताल के बीच में, दुई तंबिरया विध्‍द।
षट दर्शन संशय परे, लक्ष चौरासी सिद्ध।।१६९४।।

अर्थ: स्वर्ग और पाताल के बीच दो पथ हैं। छह दर्शनों और संशयों से परे, 84 सिद्धियों का लक्ष्य है।

Meaning: Between heaven and earth, there are two paths. Beyond the six philosophies and doubts, there is a goal of 84 perfections.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक मार्ग और सिद्धियों की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि स्वर्ग और पाताल के बीच दो मार्ग होते हैं, और सिद्धियों की प्राप्ति का लक्ष्य है।


सांप बिछी का मंत्र है, महुरो झारा जाय।
सलिल मोह नदिया बहै, पांव कहां ठहराय।।१६९५।।

अर्थ: सांप और बिच्छू का मंत्र चला गया है; भ्रांति की बहती नदी चलती रहती है, पांव को विश्राम कहां मिलेगा?

Meaning: The mantra of the snake and scorpion has gone away; the flowing river of delusion continues, where can the feet find rest?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भ्रांति और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि भ्रांति की नदी निरंतर बहती रहती है और इसमें विश्राम नहीं मिलता।


सायर बुद्धि बनाय के, बाए बिचक्षण चौर।
सारी दुनिया जहड़े गया, कोइ न लागा ठौर।।१६९६।।

अर्थ: तेज बुद्धि और समझ के साथ, चतुर चोर घूमता है। पूरी दुनिया खोई हुई है, और कोई भी जगह स्थिर नहीं लगती।

Meaning: With sharp intellect and wisdom, the clever thief roams around. The entire world is lost, and no place seems stable.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बुद्धि और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बुद्धि और समझ के बावजूद, दुनिया अस्थिर और भ्रमित है।


सावन केरा सेहरा, बूंद परे असमान।
सारी दुनिया वैष्‍णव भया, गुरु नहिं लागा कान।।१६९७।।

अर्थ: सावन के रेगिस्तान में, एक बूंद भी आकाश से परे है। पूरी दुनिया वैष्णव हो गई है, लेकिन कोई भी गुरु की बात नहीं सुनता।

Meaning: In the monsoon's desert, even a drop is beyond the sky. The entire world has become Vaishnav, but no one listens to the Guru.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में विश्वास और मार्गदर्शन की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सभी वैष्णव हो सकते हैं, लेकिन गुरु की सलाह को नजरअंदाज किया जाता है।


साहू चोर चीन्‍हे नहीं, अन्‍ध मति के हीन।
पारख बिना बिना सहै, करि विचार ही भिन्‍न।।१६९८।।

अर्थ: व्यापारी चोर को नहीं पहचानता, समझ में अंधा होता है। बिना गहराई के, विशेषज्ञ भी पीड़ित होते हैं; सभी विचार भिन्न होते हैं।

Meaning: The merchant does not recognize the thief, being blind in understanding. Without insight, even the expert suffers; all opinions are different.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सत्यता और परिप्रेक्ष्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सही समझ के बिना, यहां तक कि विशेषज्ञ भी समस्याओं का सामना करते हैं।


साहू से भी चोरबा, चोरहु से भौ होत।
तब जानिहुगे जीयरा, जबहिं परेगा तुज्‍झ।।१६९९।।

अर्थ: व्यापारी से भी बुरा चोर होता है, जो चोर से डर पैदा करता है। आप तब ही अपने आप को समझेंगे जब आप इसे सीधे तौर पर देखेंगे।

Meaning: Even worse than the merchant is the thief, who creates fear from the thief. You will understand your own self when you face it directly.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्म-जागरूकता और विश्वास की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची समझ तब आती है जब आप सीधे समस्या का सामना करते हैं।


साहेब साहेब सब कहें, मोहि अंदेशा ओर।
साहेब से परचा नहीं, बैठहुगे कहि ठौर।।१७००।।

अर्थ: हर कोई मालिक को 'मालिक' कहता है, लेकिन मुझे शक है। मालिक से पहचान नहीं होती; एक को अपना स्थान खुद ढूंढना होता है।

Meaning: Everyone calls the master 'master,' but I have doubts. There is no recognition from the master; one must find their own place.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में अधिकार और सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि दूसरों की पहचान और सम्मान के बावजूद, आपको खुद अपना स्थान ढूंढना होता है।