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संत कबीर जी के दोहे — 1601 to 1650

प्राणी तो जिभ्‍या डिगो, क्षण क्षण बोले कुबोल।
मन घाले भरमत फिरे, कालहिं देत हिंडोल।।१६०१।।

अर्थ: जीव की जीभ असंतुलित है, हर क्षण बेतुकी बातें करती है। मन अनिश्चित रूप से भटकता है, और समय उसे धक्का देता है।

Meaning: The creature's tongue is restless, speaking nonsense every moment. The mind wanders aimlessly, and time gives it a push.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव की अस्थिरता और समय के प्रभाव की बात करते हैं। जीव की जीभ स्थिर नहीं होती और निरंतर बेतुकी बातें करती है, जबकि मन भी अनिश्चितता में भटकता रहता है और समय उसे आगे धकेलता है।


प्रेम पाट का चोलना, पहरि कबीरा नाच।
पानप दीन्‍हों ताहि को, जो तन मन बोले सांच।।१६०२।।

अर्थ: प्रेम की चोला पहनकर, कबीर नाचते हैं। वह सत्य का अमृत पीते हैं, जो शरीर और मन के माध्यम से बोलता है।

Meaning: Wearing the garment of love, Kabir dances. He drinks the nectar of truth, which speaks through body and mind.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रेम और सत्य की चर्चा करते हैं। उन्होंने प्रेम की चोला पहनकर नृत्य करने की बात की है और कहा कि वह सत्य का अमृत पीते हैं, जो उनके शरीर और मन से प्रकट होता है।


फहम आगे फहम पीछे, फहम बायें डेरे।
फहम पर जो फहम करे, सोइ फहम है मेरे।।१६०३।।

अर्थ: समझ आगे और पीछे है, समझ बाईं और दाईं ओर है। जो समझ को समझे, वही मेरी समझ है।

Meaning: Understanding is in front and behind, understanding is on the left and right. The one who understands understanding, that is my understanding.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में समझ और ज्ञान के चारों ओर के विस्तार की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि समझ हर ओर है, और जो व्यक्ति इस समझ को समझता है, वही सच्ची समझ है।


बनते भागा बिहुड़े परा, करहा अपने बाने।
करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जाने।।१६०४।।

अर्थ: भाग्य और दुर्भाग्य बनते हैं, लेकिन उनके कर्म अलग होते हैं। कोई दर्द की बात कर सकता है, लेकिन कौन जानता है कि कौन सा कर्म किसका है?

Meaning: Fortune and misfortune are created, but their actions are different. One might speak of pain, but who knows whose actions are whose?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भाग्य और कर्म की चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि भाग्य और दुर्भाग्य बनते हैं, लेकिन उनके कर्म भिन्न होते हैं। यह बताता है कि जो दर्द की बात करते हैं, वे नहीं जानते कि कौन से कर्म किसके हैं।


बना बनाया मानवा, बिना बुद्धि वेतूल।
कहा लाल ले कीजिए, बिना बास का फूल।।१६०५।।

अर्थ: मनुष्य बनाया गया है, लेकिन बिना बुद्धि के, वह निष्फल है। बिना सुगंध के लाल फूल कहां है?

Meaning: Man is created, but without intelligence, it is fruitless. Where is the red flower without fragrance?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मानव की बुद्धि और उसके महत्व की बात की है। उन्होंने कहा कि मनुष्य तो बनाया गया है, लेकिन यदि बुद्धि नहीं है, तो वह निरर्थक है। जैसे सुगंध के बिना लाल फूल नहीं हो सकता, वैसे ही बुद्धि के बिना मानव का जीवन निष्फल हो जाता है।


बलिहारी तेहि दूध की, जामे निकला घीव।
आधी साखी कबीर की, चारि वेद का जीव।।१६०६।।

अर्थ: मैं उस दूध को समर्पित हूँ जिससे घी निकाला जाता है। कबीर की आधी साखी चार वेदों का सार है।

Meaning: I am devoted to that milk from which ghee is extracted. Half of Kabir’s wisdom is the essence of the four Vedas.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने दूध और घी के प्रतीक के माध्यम से गहरी आध्यात्मिक शिक्षा दी है। उन्होंने कहा कि वह दूध को प्रणाम करते हैं जिससे घी निकाला जाता है, और कबीर की आधी साखी चार वेदों के सार का प्रतीक है, जो सच्चे ज्ञान को दर्शाता है।


बलिहारी तेहि पुरुष की, जो परचित परखनहार।
साई दीन्‍हों खांड तो, खारी बूझे गंवार।।१६०७।।

अर्थ: मैं उस व्यक्ति को समर्पित हूँ जो सत्य को परख सकता है। समझदार व्यक्ति मिठास और कड़वाहट को समझ सकते हैं, जबकि अज्ञानी नहीं कर सकते।

Meaning: I am devoted to that person who can discern and test the truth. The wise can understand the sweet from the bitter, while the ignorant cannot.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में उस व्यक्ति की सराहना करते हैं जो सत्य को परखने की क्षमता रखता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है, वह मीठा और कड़वा समझ सकता है, जबकि अज्ञानी इस क्षमता से रहित होते हैं।


बड़ा तो गए बड़पने, रोम रोम हंकार।
सद्गुरु के परचे बिना, चारों वर्ण चमार।।१६०८।।

अर्थ: कोई भी अपनी महानता की बात कर सकता है, लेकिन सच्चे गुरु की पहचान के बिना, वह चार वर्णों में एक नीच व्यक्ति ही रहता है।

Meaning: One may boast of greatness, but without the recognition of the true Guru, they remain a lowly person among the four varnas.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में महानता और विनम्रता के बीच अंतर को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चाहे कितनी भी महानता का दावा करे, यदि उसने सच्चे गुरु को नहीं पहचाना, तो वह चार वर्णों में से एक निम्न व्यक्ति ही रहेगा।


बहुत दिवस तें हींडिया, शून्‍य समाधि लगाय।
करहा पड़ा गाड़ में, दूरि परे पछिताय।।१६०९।।

अर्थ: कई दिनों तक शून्‍य समाधि में बैठा जा सकता है, लेकिन अंत में वह भ्रम में खोने पर पछताएगा।

Meaning: For many days, one may sit in a state of zero meditation, but in the end, they regret being lost in delusion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ध्यान और समाधि के महत्व की बात की है। उन्होंने कहा कि भले ही कोई लंबे समय तक शून्‍य ध्यान में बैठे, लेकिन अंत में उसे भ्रम में खोने पर पछतावा होगा।


बहुबंधन के बंधिया, एक विचारा जीव।
के छूटे बल आपने, के छुड़ावे पीव।।१६१०।।

अर्थ: कई बंधनों में बंधा हुआ जीव विचार करता है। कुछ खुद को मुक्त कर लेते हैं, जबकि दूसरों को प्रिय की मदद की आवश्यकता होती है।

Meaning: Bound by many ties, the soul ponders. Some may free themselves, while others need help from the beloved to be liberated.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बंधनों और मुक्ति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जीव अनेक बंधनों में बंधा होता है, कुछ अपने बल पर मुक्त हो जाते हैं, जबकि अन्य को मुक्ति के लिए प्रिय की सहायता की आवश्यकता होती है।


बांह मरोरे जात है, सोबत लिया जगाय।
कहहिं कबीर एकारि कै, पिण्‍ड रहौ कै जाय।।१६११।।

अर्थ: कोई अपने हाथ मोड़ता है, लेकिन यह व्यर्थ होता है। कबीर कहते हैं कि जीवन इसी प्रकार चलता रहता है; शरीर वैसा ही रहता है।

Meaning: One twists their arms, but it remains in vain. Kabir says that life continues in this manner; the body remains as it is.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की वास्तविकता और शरीर की स्थिरता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चाहे जितनी भी कोशिशें करें, शरीर वैसा ही रहता है और जीवन अपनी धारा में चलता रहता है।


वाजन दे बाजन्‍तरी, कलि कुकुरी मति छेर।
तुझे बिरानी क्‍या परी, अपनी आप निबेर।।१६१२।।

अर्थ: वजन यंत्र को दिया जाता है, लेकिन मन अस्थिर रहता है। दूसरों की चिंता क्यों करें? खुद पर निर्भर रहो।

Meaning: The weight is given to the instrument, but the mind remains fickle. Why worry about others? Rely on yourself.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्म-निर्भरता की बात की है। उन्होंने कहा कि यंत्र या बाहरी चीजों का वजन तो होता है, लेकिन मन अस्थिर रहता है। इसलिए दूसरों की चिंता छोड़कर खुद पर निर्भर रहना चाहिए।


बिन डांडै जग डांडिया, सोरठि परिया डांड।
बाटनिहारा लोभिया, गुड़े ते मीठी खांड।।१६१३।।

अर्थ: बिना डंडे के, दुनिया अनुशासित रहती है। जो लालच के मार्ग पर चलता है, वह पत्थरों में भी मिठास पाता है।

Meaning: Without a stick, the world is disciplined. The one who travels the path of greed finds sweetness in the stones.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भौतिकता और लालच की आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा कि बिना डंडे के दुनिया व्यवस्थित रहती है, लेकिन जो व्यक्ति लालच के मार्ग पर चलता है, वह पत्थरों में भी मिठास खोजता है।


बिनु रसरी गृह खल बंधा, तासू बंधा अलेख।
दीन्‍ह दर्पण हस्‍त मधे, चसम बिना का देख।।१६१४।।

अर्थ: रसरी के बिना, घर बंधा हुआ है, यह अदृश्य रूप से बंधा है। गरीब के हाथ में दर्पण, वह दिखाता है जो बिना कांच के दिखाई नहीं देता।

Meaning: Without a rope, the house is bound, it is bound in an unseen manner. The mirror in the hand of the poor, shows what is not visible without a glass.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भ्रम और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बिना रसरी के घर बंधा होता है, और गरीब के हाथ में दर्पण भी ऐसा दिखाता है जो बिना कांच के नजर नहीं आता। यह वास्तविकता की गहराई को उजागर करता है।


विष के बिखहिं घर किये, रहा सर्प लपटाय।
तातें जियरहिं डर भया, जागत रैन विहाय।।१६१५।।

अर्थ: जहर से भरे घर में, सर्प लपेटा रहता है। इसलिए, आत्मा डरती रहती है और रातों में भटकती रहती है।

Meaning: In the house filled with poison, the serpent remains coiled. Hence, the soul remains fearful, wandering the nights.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भय और वास्तविकता की बात की है। उन्होंने कहा कि जहर से भरे घर में सर्प रहता है, जिससे आत्मा भयभीत रहती है और रातों में भटकती रहती है। यह जीवन के वास्तविक डर और भ्रम को दर्शाता है।


बूंद जो परा समुद्र में, यह जाने सब कोय।
समुद्र समाना बूंद में, बुझे बिरला कोय।।१६१६।।

अर्थ: जो बूंद समुद्र में है, उसे सभी जानते हैं। लेकिन बूंद में समुद्र को समझना केवल कुछ ही लोगों को आता है।

Meaning: The drop that is in the ocean is known by everyone. To understand the ocean in the drop, is known only to a few.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सूक्ष्मता और व्यापकता को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि समुद्र में मौजूद बूंद को तो सभी पहचानते हैं, लेकिन बूंद में समुद्र की विशालता को समझना केवल कुछ ही लोगों के लिए संभव है।


बेढा दीह्नहो खेता का, बेढा खेतहि खाय।
तीनि लोक संशय परी, काहि कहा बिलगाय।।१६१७।।

अर्थ: नाव खेत में है, लेकिन नाव खेत को खा जाती है। तीनों लोक संशय से भरे हुए हैं; फिर यह क्यों कहता है कि वह अलग है?

Meaning: The boat is in the field, but the boat eats the field. The three worlds are filled with doubt; why then does it say that it is separate?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन और स्थिति की विसंगतियों पर टिप्पणी करते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन की जटिलताएँ और भ्रम इतनी गहरी हैं कि लोग अपने भ्रमित विचारों से अलगाव का अनुभव करते हैं।


बेरा बांधिनि सर्प का, भव सागर अतिमाह।
छोड़े तो बूड नहीं, गहे तो डसे बांह।।१६१८।।

अर्थ: रस्सी सर्प द्वारा बंधी हुई है; अस्तित्व का सागर विशाल है। यदि आप इसे छोड़ देंगे, तो आप डूब जाएंगे; यदि आप इसे पकड़ेंगे, तो यह आपके हाथ को काटेगा।

Meaning: The rope is tied by the serpent; the ocean of existence is immense. If you leave it, you will drown; if you hold it, it will bite your arm.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के कठिन और जटिल स्थितियों का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि अस्तित्व का सागर इतना विशाल है कि उसे संभालना मुश्किल है। अगर हम उसे छोड़ दें, तो हम डूब सकते हैं और अगर हम उसे पकड़ें, तो भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।


बेलि कुढंगी फल निफरो, फुलवा कुबुधि गंधाय।
ओर विनष्‍टी तुंबिका, सरो पात करुवाय।।१६१९।।

अर्थ: लता कोई फल नहीं देती; फूल की गंध भी बुरी होती है। इसी प्रकार, नाजुक पौधा मुरझा जाता है; तालाब सूख जाता है।

Meaning: The creeper produces no fruit; the flower has a bad smell. In this manner, the tender plant withers; the pond dries up.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में अनावश्यकता और बर्बादी की स्थिति का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि जो चीजें किसी काम की नहीं हैं और बेकार हो जाती हैं, जैसे फलहीन लता या बदबूदार फूल, वही अंत में बर्बाद हो जाती हैं।


बैठा रहे सो बानिया, खड़ा रहे सा ग्‍वाल।
जागत रहे सो पाहरु, तिहि धरि आयो काल।।१६२०।।

अर्थ: व्यापारी बैठा रहता है, ग्वाला खड़ा रहता है। जो जागता रहता है, उसके लिए मृत्यु लंबे समय बाद आती है।

Meaning: The merchant sits, the cowherd stands. The one who remains awake, death comes to them only after a long time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन और मृत्यु के चक्र पर टिप्पणी करते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग सावधान और जागरूक रहते हैं, उनके लिए मृत्यु देर से आती है, जबकि अन्य समय पर आते हैं।


बोलना है बह भांति का, नैनन नहिं कछु सूझ।
कहहिं कबीर पुकारि के, घट बानी बूझ।।१६२१।।

अर्थ: शब्द कई प्रकार के होते हैं, लेकिन आँखें कुछ नहीं देखतीं। कबीर कहते हैं, आत्मा की बातों को समझो।

Meaning: The words are of many kinds, but the eyes do not see anything. Kabir says, understand the words of the self.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में संचार और आत्म-ज्ञान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शब्दों की विविधता के बावजूद, असली समझ आत्मा की बातों से आती है, जो बाहरी आंखों से नहीं देखी जा सकती।


बोलि हमारी पूर्व की, हमें लखे नहिं कोय।
हमें लखे सो जना, जो धुर पूरब का होय।।१६२२।।

अर्थ: हमारी भाषा पुरानी है, लेकिन कोई नहीं समझता। केवल वे लोग जो गहराई से पूर्व की ओर जुड़े हैं, इसे समझते हैं।

Meaning: Our speech is of the old kind, but no one understands it. Only those who are deeply rooted in the East understand it.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्मज्ञान और समझ की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी बोली प्राचीन है और इसे समझने के लिए केवल वे लोग सक्षम हैं, जो गहरी समझ और पूर्व से जुड़े हैं।


भंवर जाल बगु जाल है, बूड़े बहुत अचेत।
कहहिं कबीर ते बांचिहैं, जाके हृदय विवेक।।१६२३।।

अर्थ: भंवर और जाल एक प्रकार के फंदे हैं; कई लोग बेहोशी में डूब जाते हैं। कबीर कहते हैं, जो लोग अपने हृदय में विवेक रखते हैं, वे बच जाते हैं।

Meaning: The whirlpool and the net are traps; many drown unconsciously. Kabir says, those who have wisdom in their hearts will be saved.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में चेतना और विवेक के महत्व की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि भंवर और जाल जैसे जाल में कई लोग अनजाने में फंस जाते हैं, लेकिन जो लोग हृदय में विवेक रखते हैं, वे सुरक्षित रहते हैं।


भंवर विलंबे बाग में, बहु फूलन की बास।
ऐसे जिव बिलमे विषय में, अन्‍तहु चले निरास।।१६२४।।

अर्थ: भंवर बाग में विलंबित है, जिसमें कई फूलों की खुशबू है। इसी प्रकार, जो जीव इच्छाओं में खोया रहता है, वह अंततः निराश हो जाता है।

Meaning: The whirlpool is delayed in the garden, filled with the scent of many flowers. Similarly, the soul lost in desire eventually becomes disillusioned.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में इच्छाओं और निराशा के चक्र का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे भंवर बाग में देर से आता है और उसमें कई फूलों की खुशबू होती है, वैसे ही इच्छाओं में खोया हुआ जीव अंत में निराश हो जाता है।


भक्ति पियारी राम की, जैसी प्‍यारी आगि।
सारा पट्टन जरि गया, फिर फिर ल्‍यावे मागि।।१६२५।।

अर्थ: राम की भक्ति एक अमूल्य आग की तरह है। पूरा नगर जल जाता है, और लोग बार-बार इसे मांगते हैं।

Meaning: Devotion to Lord Rama is like a precious fire. The entire town burns down, and one keeps asking for it again and again.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर भक्ति के प्रभाव को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि राम की भक्ति इतनी शक्तिशाली है कि यह सब कुछ जला देती है और लोग बार-बार इसकी मांग करते हैं।


कबिरन भक्ति बिगारीयां, कंकर पत्‍थर धोय।
अंदर में विष राखि के, अमृत डारिन खोय।।१६२६।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि भक्ति बिगड़ी हुई है, कंकर और पत्थरों को धोकर। अंदर विष रखा जाता है और अमृत खो जाता है।

Meaning: Kabir says that devotion is tainted, washing pebbles and stones. Inside, poison is kept while nectar is lost.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि दिखावे की भक्ति व्यर्थ है जब उसके अंदर बुरे भावनाएँ और इच्छाएँ हों। उन्होंने कहा कि जो लोग बाहरी धार्मिकता का दिखावा करते हैं, लेकिन उनके अंदर विषपूर्ण विचार होते हैं, वे असली अमृत खो देते हैं।


भर्म भरा तिहुँ लोक में, भर्म बसे सब ठाम।
कहहिं कबीर कैसे बाचिहौ, जब बसे भर्म के ग्राम।।१६२७।।

अर्थ: तीनों लोक भ्रम से भरे हुए हैं; भ्रम हर जगह बसा हुआ है। कबीर पूछते हैं, जब भ्रम हर जगह है, तो कोई कैसे बच सकता है?

Meaning: The three worlds are filled with illusion; illusion resides everywhere. Kabir asks, how can one escape when illusion is everywhere?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भ्रम और वास्तविकता की समस्या को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि जब सभी जगह भ्रम ही भ्रम है, तब उस भ्रम से मुक्त होना मुश्किल है।


मच्‍छ बिकाने सब गये, धीमर के दरबार।
अंखियां तेरी रतनारी, तुम क्‍यों पैन्‍हीं जाल।।१६२८।।

अर्थ: सभी लोग मछली बाजार में गए, मछुआरे के दरबार में। तुम्हारी आंखें रत्न जैसी हैं; फिर तुम जाल क्यों पहनते हो?

Meaning: Everyone went to the fish market, to the fisherman’s court. Your eyes are like precious jewels; why then do you wear the net?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि विश्वसनीय चीज़ों को अनावश्यक चीज़ों से बदलना कितना मूर्खतापूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमारे पास मूल्यवान चीज़ें हैं, फिर भी हम उन चीज़ों को अपनाने की कोशिश करते हैं जो हमें नुकसान पहुंचा सकती हैं।


मन कहे कहौं जाइये, चित्त कहो कहां जाउं।
छव मास के हींडते, आध कोस पर गांउ।।१६२९।।

अर्थ: मन कहता है कि यहां जाओ, दिल कहता है कि कहां जाऊं। छह महीने घूमने के बाद भी, व्यक्ति वही जगह पाता है।

Meaning: The mind says go here, the heart says where should I go? After wandering for six months, one still finds oneself in the same place.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की दिशा और भ्रम की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि मन और दिल के बीच टकराव और भ्रम से व्यक्ति घूमते-घूमते एक ही जगह पर रह जाता है।


तन बोहित मन काग है, लक्ष जोजन उड़‍ि जाय।
कबहुंक भरमे आगम दरिया, कबहूं गगन समाय।।१६३०।।

अर्थ: शरीर एक नाव है और मन एक कौआ है; लक्ष्य उड़ सकता है। कभी भ्रम की नदी भरी होती है, कभी आकाश तक पहुंचा जाता है।

Meaning: The body is a boat and the mind is a crow; the goal may fly away. Sometimes the river of delusion is filled, sometimes the sky is reached.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शरीर और मन के भ्रामक प्रवृत्तियों की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर और मन के माध्यम से लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन हो सकता है, क्योंकि भ्रम कभी भी बदल सकता है और दिशा अस्थिर होती है।


मन गयन्‍द माने नहीं, चले सरति के साथ।
महावत बिचारा क्‍या करे, जो अंकुश नहिं हाथ।।१६३१।।

अर्थ: मन अनुशासन को नहीं मानता, यह बहाव के साथ चलता है। अगर हाथ में लगाम न हो, तो गरीब महावत क्या कर सकता है?

Meaning: The mind does not heed to discipline, it flows along with the current. What can the poor mahavat do, if there is no rein in hand?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मन की अनियंत्रित प्रवृत्तियों की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर मन अनुशासन और नियंत्रण के बिना बहता है, तो वह दिशा और नियंत्रण से बाहर हो जाता है, जैसे एक हाथ में लगाम के बिना महावत को अपने हाथी को नियंत्रित करना मुश्किल होता है।


मन भर के बोय घुंघची, भर नहिं होय।
कहा हमारे माने नहीं, अन्‍तहु चला विगोय।।१६३२।।

अर्थ: मन घुंघची से भर जाता है, फिर भी पूरा नहीं होता। हमारी इच्छाएँ असंतोषजनक होती हैं, और वे अंततः नुकसान की ओर ले जाती हैं।

Meaning: The mind fills with bellows, yet it does not get full. Our desires are insatiable, they eventually lead to loss.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव इच्छाओं और उनकी तृप्ति के असंभवता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि चाहे मन कितनी भी कोशिश कर ले, उसकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं और अंततः नुकसान हो सकता है।


मन मसलन्‍द गयन्‍द है, मनसा भो संचार।
सांच मन्‍त्र माने नहीं, उड़‍ि उड़‍ि लागि खान।।१६३३।।

अर्थ: मन एक भटकते हुए बर्तन की तरह है, और विचार संचार की तरह हैं। सच्चा मंत्र समझ में नहीं आता, यह उड़ता रहता है।

Meaning: The mind is like a wandering vessel, and the thoughts are like transmissions. The true mantra is not understood, it keeps flying away.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानसिक स्थिति की जटिलताओं की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि मन भटकते हुए बर्तन की तरह होता है और विचारों का संचार अस्थिर होता है, जिससे सच्चा मंत्र या ज्ञान समझ में नहीं आता।


मन स्‍वारथी आपु रस, विषय लहरि फहराय।
मन चलाये तन चले, ताते सरबस जाय।।१६३४।।

अर्थ: स्वार्थी मन खुद का आनंद लेता है, जबकि इच्छाओं की लहरें फैलती हैं। जब मन चलता है, तो शरीर भी उसका अनुसरण करता है, और इस प्रकार सब कुछ नष्ट हो जाता है।

Meaning: The selfish mind enjoys itself, while the waves of desire spread. When the mind moves, the body follows, and thus everything perishes.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में स्वार्थ और इच्छाओं के प्रभाव की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जब मन अपने स्वार्थ और इच्छाओं में लिप्त होता है, तो शरीर भी उसी दिशा में चलता है, और अंततः सब कुछ समाप्त हो जाता है।


मनुष्‍य जन्‍म दुर्लभ है, होय न दूजी बार।
पक्‍का फल जो गिर परै, बहुरि न लागै डार।।१६३५।।

अर्थ: मनुष्‍य जन्म दुर्लभ है और इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक बार पकने वाला फल गिर जाता है, वह फिर से डाल पर नहीं लौटता।

Meaning: Human birth is rare and cannot be attained again. Once a ripe fruit falls, it does not return to the branch.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव जीवन की दुर्लभता और उसकी अनमोलता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार जीवन बीत जाने के बाद, जैसे पकने वाला फल गिर जाता है और वापस नहीं आता, वैसे ही मनुष्‍य जन्म भी एक बार ही प्राप्त होता है।


मानष तेरा गुण ही बड़ा, मांस न आवे काज।
हाड़ न होते आभरण, त्‍वचा न बाजन बाज।।१६३६।।

अर्थ: मनुष्य का गुण बड़ा होता है; मांस का कोई काम नहीं। हड्डियाँ आभूषण नहीं होतीं, त्वचा बजने वाली नहीं होती।

Meaning: The quality of a human is great; flesh does not serve the purpose. Without bones as ornaments, the skin does not make music.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव गुण और उसकी महत्ता को दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि भौतिक चीजें और शरीर के बाहरी पहलू महत्वपूर्ण नहीं होते; वास्तविक गुण और आत्मा की महत्वता ही सर्वोपरि है।


मानुष केही अथाइया, मति कोइ पठे धाय।
एकहि खेत चरत है, बाघ गदहरा गाय।।१६३७।।

अर्थ: मनुष्य धोखेबाज होता है, बुद्धि उसे भटकाती है। वह एक ही खेत में घूमता है, जैसे बाघ गायों के बीच।

Meaning: The human is deceitful, the intellect sends him astray. He roams in the same field, like a tiger among cows.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों और बुद्धि के भ्रम का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य अक्सर भ्रमित रहता है और अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पाता।


मानुष केरी बड़ पापिया, अक्षर गुरुहिं न मान।
बार-बार बने कूकही, गर्भ धरे औधान।।१६३८।।

अर्थ: मनुष्य बड़े पापी होते हैं, गुरु की बातों को नहीं मानते। बार-बार वे मूर्ख बन जाते हैं, और अज्ञान का बोझ उठाते हैं।

Meaning: Humans are great sinners, they do not respect the words of the Guru. Repeatedly they become fool, bearing the burden of ignorance.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मनुष्य के दोष और गुरु की शिक्षाओं की अनदेखी को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य बार-बार अज्ञान की ओर बढ़ता है और इसका बोझ उठाता है।


माया के बस परे, ब्रह्मा विष्‍णु महेश।
नारद सारद सनक सनन्‍दन, गौरी और गनेश।।१६३९।।

अर्थ: माया के नियंत्रण से परे ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। नारद, सरस्वती, सनक, सनन्दन, गौरी और गणेश भी हैं।

Meaning: Beyond the control of illusion are Brahma, Vishnu, and Mahesh. Narad, Saraswati, Sanak, Sanandan, Gauri, and Ganesh.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि माया या भ्रम के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे प्रमुख देवता भी अछूते नहीं हैं। यह दर्शाता है कि माया की शक्ति सभी को प्रभावित कर सकती है।


माया जग सापिनि भई, विष ले बैठी आथि।
सब जग फंदे फन्दिया, चले कबीरू काछि।।१६४०।।

अर्थ: माया दुनिया में एक सांप बन गई है, विष के साथ बैठी हुई है। पूरी दुनिया इसके जाल में फंसी हुई है, कबीर कहते हैं।

Meaning: Illusion has become a snake in the world, sitting with poison. The whole world is caught in its trap, says Kabir.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में माया या भ्रम की शक्तियों को सांप की तरह दिखाते हैं, जो विष से भरा हुआ है और पूरी दुनिया को अपने जाल में फंसा रहा है।


माग तो अति कठिन है, तहं कोई मति जाय।
गया तो बहुरा नहीं, कुशल कहै को आय।।१६४१।।

अर्थ: खोज बहुत कठिन है, और कुछ ही लोग समझ पाते हैं। एक बार चला गया तो वापस नहीं आ सकता; कौन कह सकता है कि सफल हुआ है या नहीं?

Meaning: The quest is very difficult, and few have the understanding to succeed. Once gone, one cannot return; who can say if one has succeeded?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक खोज की कठिनाई को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि यह यात्रा इतनी कठिन है कि केवल कुछ ही लोग इसे समझ सकते हैं और एक बार निकलने के बाद, वापस लौटना संभव नहीं होता।


मुख की मीठी जो कहै, हृदये है मति आन।
कहहिं कबीर तेहि लोकनि से, ऐसो राम सयान।।१६४२।।

अर्थ: जो मुँह से मीठा बोलता है, लेकिन दिल में बुरे इरादे रखता है। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग धोखेबाज होते हैं, जो बुद्धिमान बनने का नाटक करते हैं।

Meaning: One who speaks sweetly with the mouth, yet has evil intentions in the heart. Kabir says that such people are deceivers, pretending to be wise.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि जो लोग केवल मीठी बातें करते हैं लेकिन दिल में बुराई रखते हैं, वे धोखेबाज होते हैं। ऐसे लोग खुद को बुद्धिमान दिखाने की कोशिश करते हैं।


मूढ कर्मिया मानवा नख, शिख पाखर आहि।
वाहनहारा का करे, जो बाण न लागे ताहि।।१६४३।।

अर्थ: मूर्ख कर्म मानव की नाखून और पंख की तरह होते हैं। यदि बाण नहीं लगता तो वाहक क्या कर सकता है?

Meaning: Foolish human actions are like the claws and feathers of a bird. What can the rider do if the arrow does not hit?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्ख कर्मों की तुलना बेजान हिस्सों से करते हैं और यह दिखाते हैं कि ऐसे कर्मों का कोई मूल्य नहीं होता। उन्होंने कहा कि जैसे बाण न लगने पर वाहक कुछ नहीं कर सकता, वैसे ही मूर्ख कर्म भी बेकार होते हैं।


मूरख को समुझावते, ज्ञान गांठ का जाइ।
कोयला होइ न ऊजरो, नव मन साबुन लाइ।।१६४४।।

अर्थ: मूर्ख को समझाने की कोशिश करने पर, ज्ञान गाँठ में फंस जाता है। कोयला साफ नहीं होता; नए साबुन की जरूरत होती है मन को।

Meaning: One who tries to explain to a fool, knowledge gets tied up. Coal does not get cleaned; new soap is needed for the mind.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्ख को ज्ञान समझाने की व्यर्थता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे कोयला साफ नहीं होता, वैसे ही मूर्ख को समझाना भी बेकार है और नई सोच की आवश्यकता होती है।


मूरख सों का कहिए, सठ सों कहा बसाय।
पाहन में का मारिये, चोखे तीर नसाय।।१६४५।।

अर्थ: मूर्ख को क्या कहें, और सठ से क्या बसायें। पत्थर पर तीर मारने से निशान नहीं हटता।

Meaning: What can be said to a fool, and what can be done to a scoundrel? Hitting a stone does not remove the arrow's mark.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्ख और दुष्ट लोगों की तुलना पत्थर पर तीर मारने से करते हैं। उन्होंने कहा कि इन लोगों को समझाना और उन्हें सुधारना बहुत मुश्किल है, जैसे पत्थर पर तीर से निशान नहीं हटता।


मूवा हे मरिं जाहुगे, बिनु सर थोथे भाल।
परहु करायल वृक्ष तल, आज मरहु के काल।।१६४६।।

अर्थ: मृतक मरेगा, बिना सिर के सहारे। दुर्भाग्य के वृक्ष के नीचे, आज मौत का समय है।

Meaning: The dead will die, without the head's support. Under the tree of misfortune, today is the time of death.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मृत्यु के अपरिहार्यता और समय के महत्व को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि मृत्यु निश्चित है और यह किसी भी समय आ सकती है, जैसे कि आज मौत का दिन हो सकता है।


मैं रोवों ऐहि जगत को, मोको रोवे न कोय।
मोको रोवे सो जना, जो शब्‍द विवेकी होय।।१६४७।।

अर्थ: मैं इस दुनिया के लिए रोता हूँ, लेकिन कोई मेरे लिए नहीं रोता। केवल वे लोग जो शब्दों में विवेक रखते हैं, मेरी पीड़ा को समझ सकते हैं।

Meaning: I cry for this world, but no one cries for me. Only those who are wise in words can truly understand my sorrow.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में व्यक्तिगत दुःख और दुनिया की अनदेखी को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि केवल बुद्धिमान लोग ही सच्चे दर्द को समझ सकते हैं।


मानुष विचारा क्‍या करे, जाके कहे न खुले कपाट।
सोनहा चाक बैठाइए, फिर‍ि फिर‍ि एषन चाट।।१६४८।।

अर्थ: मूर्ख मानव क्या करे, जिसकी दरवाजे खुले नहीं हैं। एक सोने की प्लेट तैयार करो, लेकिन बार-बार उसे चाटते रहो।

Meaning: What can a foolish human do, whose doors are not open? Set up a golden plate, but still keep licking it repeatedly.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्खता की स्थिति का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि मूर्ख व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता और जो कुछ भी किया जाए, वह भी व्यर्थ हो जाता है।


मानुष बिचारा क्‍या करे, जाके हृदय शून।
सोनहा चाक बिठाइये, फिर‍ि फिर‍ि चाटे चून।।१६४९।।

अर्थ: मूर्ख मानव क्या करे, जिसका दिल खाली है। सोने की प्लेट तैयार करो, लेकिन फिर भी धूल चाटे रहो।

Meaning: What can a poor human do, whose heart is empty? Set up a golden plate, but still keep licking the dust.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में उन लोगों की स्थिति को दर्शाते हैं जिनका दिल खाली होता है। उन्होंने कहा कि चाहे कितनी भी समृद्धि क्यों न हो, यदि दिल में शून्यता हो, तो सब व्यर्थ हो जाता है।


मानुष बिचारा क्‍या करे, जाके शून्‍य शरीर।
जो जिव झाखि न ऊपजे, तो काहे पुकार कबीर।।१६५०।।

अर्थ: मूर्ख मानव क्या करे, जिसका शरीर खाली है। अगर आत्मा अंदर से प्रकट नहीं होती, तो कबीर को क्यों पुकारें?

Meaning: What can a poor human do, whose body is empty? If the soul does not arise from within, why then call Kabir?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखाते हैं कि अगर शरीर और आत्मा में कोई जीवन या उत्साह नहीं है, तो किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षण की खोज व्यर्थ है।