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संत कबीर जी के दोहे — 1551 to 1600

भूला सो भूला, बहुरि के चेतना।
विस्‍मय को छुरी से, संशय को रेतना।।१५५१।।

अर्थ: जो भूल जाता है, वही भुलाया जाता है, और फिर चेतना में आता है। आश्चर्य की छुरी से, संदेह की रेत काटी जाती है।

Meaning: The one who forgets is forgotten, and again comes to consciousness. With the knife of wonder, the sand of doubt is cut away.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने यह व्यक्त किया है कि जो व्यक्ति भूल जाता है, वह फिर से चेतना में आता है। जब व्यक्ति को आश्चर्य और अविश्वास का सामना करना पड़ता है, तो इन संदेहों को दूर करने के लिए उसे गहरे आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, वास्तविकता की समझ पाने के लिए हमें अपने संदेह और भ्रम को पार करना होता है।


ढाढस देखह मरजीवा को, धर जोरि पैढा पाताल।
जीव के अटक माने नहीं, ले गहि निकसा लाल।।१५५२।।

अर्थ: मृत्यु को देखो, वह भी यदि पाताल तक पहुंच जाए। जीव इसका अर्थ नहीं समझते, लाल धागे को पकड़ कर रखते हैं।

Meaning: See the assurance given to the dying, even if it reaches the depths of the underworld. The living does not understand the meaning, holding onto the red thread.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मृत्यु के बाद भी आश्वासन का संकेत देते हैं, जो बहुत गहराई तक जाता है। जीव अपनी सांसारिक चीजों से चिपके रहते हैं, और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने में असमर्थ होते हैं। यह जीवन की भौतिकता से परे जाकर आत्मा की गहराई में देखने का आग्रह है।


ढिग बूडे उछले नहीं, इहै अंदेसा मोहिं।
सलिल मोह की धार में, का निंदिआई तोहिं।।१५५३।।

अर्थ: पुराना लकड़ी का टुकड़ा भी तैरता नहीं है; यह मेरे भीतर की भावना है। मोह की धारा में, आप कैसे अनदेखा कर सकते हैं?

Meaning: The wooden log does not float even when it is old; this is the feeling in me. In the current of the stream of illusion, how can you be indifferent?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने यह समझाया है कि जैसे पुराना लकड़ी का टुकड़ा पानी में तैर नहीं सकता, वैसे ही मोह की धारा में व्यक्ति खुद को अप्रभावित नहीं रख सकता। मोह और भ्रम की धारा हमें अपने आप को समझने और आत्मा की सच्चाई को पहचानने में बाधित करती है। इसलिए, हमें इसे पार करने की कोशिश करनी चाहिए।


तन संशय मन सुनहा, काल अहेरी नीत।
उतपति परले नहिं होता, तब की कही कबीर।।१५५४।।

अर्थ: शरीर अस्थिर है, मन कमजोर है, और समय एक निरंतर शिकारी है। सृजन इसके पार नहीं है, यही कबीर कहते हैं।

Meaning: Body is uncertain, mind is weak, and time is a constant hunter. The creation does not exist beyond, this is what Kabir says.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बताने का प्रयास कर रहे हैं कि शरीर की स्थिति अनिश्चित होती है, मन कमजोर रहता है, और समय हमेशा पीछा करता है। इसलिए, सृजन और जीवन का वास्तविक अर्थ इस भौतिक अस्तित्व से परे है। कबीर का यह सन्देश है कि सच्चाई को समझने के लिए हमें इस भौतिकता से बाहर निकलना होगा।


ताकी पूरी क्‍यों परे, गुरु न लखाई बाट।
ताके बेरा बूड़ही, फिरि औघट घाट।।१५५५।।

अर्थ: काम क्यों अधूरा रहता है? गुरु रास्ता नहीं दिखाते। जब समय समाप्त होता है, तो यह वही पुराना मार्ग पर लौट आता है।

Meaning: Why does the task remain incomplete? The guru does not show the way. When the time is over, it returns to the same old path.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दर्शाते हैं कि जब गुरु सही मार्ग नहीं दिखाते, तब कार्य अधूरा रह जाता है। समय के अंत में, व्यक्ति वही पुराने मार्ग पर लौट आता है, जो उसने पहले चुना था। यह दोहा यह समझाता है कि सच्ची मार्गदर्शिता की आवश्यकता है ताकि व्यक्ति अपने जीवन की यात्रा को सही दिशा में ले जा सके।


तामस केरे तीन गुण, भंवर लेहि तहं बास।
एकहि डारी तीन फल, भाटा ऊख कपास।।१५५६।।

अर्थ: तामस के तीन गुण: एक चक्र में निवास, एक शाखा के तीन फल, और भाटी, गन्ना और कपास।

Meaning: Three qualities of tamas: dwelling in a whirlpool, the fruits of a single branch, and the gourd, sugarcane, and cotton.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर तामस गुणों की चर्चा कर रहे हैं। तामस गुण से अभिप्राय अज्ञानता और निष्क्रियता से है। पहले पद में कहा गया है कि तामस गुण वाला व्यक्ति अपने जीवन को चक्रवात की तरह देखता है। दूसरे पद में, उन्होंने कहा है कि ऐसे व्यक्ति की जिंदगी के फल जैसे भाटा (छोटा पौधा), गन्ना और कपास की तरह होते हैं, जो स्थिर और परिणामहीन होते हैं।


ताहि न कहिए परखू, पाहन लखे जो कोय।
नर नग या दिल जो लखे, रतन पारखू सोय।।१५५७।।

अर्थ: आकृतियों से नहीं आंकना चाहिए; पत्थर केवल वही दिखाता है जो अंदर है। ज्ञानी व्यक्ति एक व्यक्ति, नगर या दिल की मूल्य पहचानते हैं।

Meaning: Do not judge by appearances; the stone reveals only what is within. The wise recognize the value of a person, a city, or a heart.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि हमें किसी की बाहरी दिखावट से उसकी वास्तविकता का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। पत्थर की तरह, जो केवल अपने अंदर की सामग्री को प्रकट करता है, हमें लोगों, स्थानों और दिलों की वास्तविकता को समझना चाहिए। केवल सही समझ और ज्ञान से ही हम किसी की असली मूल्य पहचान सकते हैं।


तीनि लोक टीड़ी भया, उड़े जो मन के साथ।
हरि जाने बिनु भटके, पर काल के हाथ।।१५५८।।

अर्थ: तीन लोक एक जाल के समान हैं, और ये मन के साथ चलते हैं। केवल हरि जानता है बिना भटके, लेकिन काल सभी को पकड़ लेता है।

Meaning: All three worlds are like a net, and they move with the mind. Only Hari (God) knows without wandering, but time captures everyone.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कहा है कि तीनों लोक (भूत, वर्तमान और भविष्य) एक जाल की तरह हैं जो मन के साथ चलते हैं। केवल भगवान (हरि) ही बिना भटके इस जाल को समझ सकते हैं। समय (काल) सबको अपने जाल में फँसा लेता है, जो सभी को अंततः प्रभावित करता है।


तीनि लोक चोरी भया, सर्वस सब का लीन्‍ह।
बिना मूड़ का चोरवा, परा न काहू चीन्‍ह।।१५५९।।

अर्थ: तीन लोक चोरी के समान हैं, सब कुछ समाहित है। बिना चोर के मुखौटे के, कोई भी चोर नहीं है।

Meaning: The three worlds are a theft, everything is absorbed. Without a thief's mask, no one is a thief.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में कहते हैं कि तीनों लोक जैसे एक चोरी की तरह हैं, जहाँ सब कुछ एकत्रित और समाहित हो जाता है। किसी को चोर की तरह समझने के लिए उसकी पहचान जरूरी है, लेकिन वास्तविकता में सब कुछ इस बड़े जाल का हिस्सा है।


तीनि लोक भो पींजरा, पाप पुण्‍य भो जाल।
सकल जियरा सावज भया, एक अहेरी काल।।१५६०।।

अर्थ: तीन लोक एक पिंजरे के समान हैं, पाप और पुण्य जाल हैं। सभी आत्माएँ फंसी हुई हैं, और काल (समय) शिकारी है।

Meaning: The three worlds are a cage, sin and virtue are traps. All souls are trapped, and time is the hunter.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने जीवन और समय की गंभीरता को उजागर किया है। उन्होंने कहा कि तीनों लोक एक पिंजरे की तरह हैं, जहाँ पाप और पुण्य एक जाल के रूप में कार्य करते हैं। सभी आत्माएँ इस पिंजरे में फंसी हुई हैं, और काल (समय) एक शिकार के रूप में सबको पकड़ लेता है।


तीरथ गए ते बहि मुए, जूड़े पाणि नहाय।
कहहिं कबीर पुकारि के, राक्षस होय पछताय।।१५६१।।

अर्थ: जो तीर्थ यात्रा पर जाते हैं, वे बाहर मर जाते हैं और पवित्र जल में स्नान नहीं करते हैं। कबीर कहते हैं कि जो पछताते हैं, वे राक्षस हैं।

Meaning: Those who go to pilgrimage die outside, they do not bathe in the holy water. Kabir says, those who lament are demons.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में तीर्थ यात्रा की सच्चाई को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि तीर्थ यात्रा पर जाने वाले लोग केवल बाहरी रूप से यात्रा करते हैं और पवित्र जल में स्नान नहीं करते। जो लोग पछताते हैं और केवल बाहरी क्रियाएँ करते हैं, वे राक्षसों की तरह होते हैं।


तीरथ गए तीन तीन जना, चित चंचल मन चोर।
एको पाप न काटिया, लादिन मन दस और।।१५६२।।

अर्थ: तीर्थ यात्रा पर तीन लोग गए, जिनके मन चंचल और चोर थे। उन्होंने एक भी पाप नहीं काटा, बल्कि अपने मन में दस और पाप लेकर आए।

Meaning: Three people went on pilgrimage, with restless and thieving minds. They did not cut a single sin, but carried ten more in their minds.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में तीर्थ यात्रा पर जाने वालों की असलियत को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग तीर्थ यात्रा पर जाते हैं लेकिन उनका मन चंचल और पापपूर्ण होता है, वे कोई भी पाप नहीं काटते, बल्कि अपने मन में और अधिक पाप लेकर आते हैं।


तीर्थ भई विष वेलरी, रही जुगन जुग छाह।
कबिरन मूल निकंदिया, कौन हलाहल खाय।।१५६३।।

अर्थ: तीर्थ यात्रा विष बन गई, छाया युगों तक रही। कबीर कहते हैं, कौन मूल का विष खाता है?

Meaning: Pilgrimage became poison, the shadow remained for ages. Kabir says, who eats the poison of the root?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने तीर्थ यात्रा की वास्तविकता को उजागर किया है। उन्होंने कहा कि तीर्थ यात्रा अब विष के समान हो गई है, और इसके प्रभाव लंबे समय तक बने रहते हैं। कबीर ने सवाल किया है कि कौन उस विष को खाता है, जो मूल से आता है।


दर्पण केरी गुफा महं, सोनहा पैठे धाय।
देखे प्रतिमा आपनी, भंकि भूंकि मरि जाय।।१५६४।।

अर्थ: दर्पण की गुफा में सोना परावर्तित होता है। व्यक्ति अपनी छवि देखता है, लेकिन देखने में मर जाता है।

Meaning: In the cave of the mirror, gold is reflected. One sees their own image, but dies while watching.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्म-प्रतिबिंब की बात कर रहे हैं। दर्पण की गुफा में सोने की छवि होती है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी ही छवि को देखता है। लेकिन इस देखने में व्यक्ति पूरी तरह खो जाता है और अंततः मर जाता है।


सकलो दुर्मति दूर करि, अच्‍छा जनम बनाव।
काग गमन बुधि छोड़ दे, हंस गमन चलि आव।।१५६५।।

अर्थ: सभी बुरे इरादों को दूर करें, अच्छा जीवन बनाएं। कौवे की बुद्धि को छोड़ दें, और हंस के मार्ग पर चलें।

Meaning: Remove all bad intentions, make a good life. Abandon the intellect of the crow, and follow the path of the swan.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बुरे इरादों और विवेक की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सभी बुरी सोचों और इरादों को दूर कर देना चाहिए और एक अच्छा जीवन बनाना चाहिए। कौवे की तरह की छोटी सोच को छोड़कर, हंस की तरह उच्च विचार और मार्ग पर चलना चाहिए।


दहरा तो नूतन भया, तदपि न चीन्‍हे कोय।
जिहि यह शब्‍द विवेकिया, छत्र धनी है सोय।।१५६६।।

अर्थ: स्थान नया रहता है, फिर भी कोई नहीं पहचानता। जो इस शब्द को समझता है, वही सच्चा मालिक है।

Meaning: The place remains new, yet no one recognizes it. One who understands this word of wisdom is the true master.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कहा है कि स्थान या स्थिति नई हो सकती है, लेकिन उसकी पहचान हर कोई नहीं कर पाता। सच्चा समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति ही इस सच्चाई को समझ सकता है और वास्तव में वही सच्चा स्वामी होता है।


देश विदेश हम फिरे, ई मन भरा सुकाल।
जाके ढूंढ़त मैं फिरौं, ताके परा दुकाल।।१५६७।।

अर्थ: हम देश-विदेश घूमते हैं, लेकिन मन सुकून से भरा रहता है। मैं उस चीज़ की खोज करता हूँ जो वास्तविक दुख लाए।

Meaning: We roam through lands both near and far, yet this mind remains filled with ease. I search for that which brings real distress.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बाहरी दुनिया की खोज की बात कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि मन में हमेशा सुकून होता है। वे वास्तव में उस चीज़ की खोज में हैं जो सच्चा दुख लाए, जिससे उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का पता चले।


दोहरा कथि कहहिं कबीर, प्रतिदिन समय जु देखि।
मुई गये न बहुरे, बहुरि न ऐहैं फेरि।।१५६८।।

अर्थ: कबीर दोहरा कर कहते हैं: समय के हर दिन को देखो। जब जीवन चला जाता है, तो वह फिर वापस नहीं आता; वह दोबारा नहीं आता।

Meaning: Kabir says this twice: observe the passage of time daily. Once life is gone, it does not return; it does not come again.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने समय की अनंतता और मृत्यु की अटूटता की बात की है। उन्होंने कहा कि समय को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए क्योंकि जब जीवन समाप्त हो जाता है, तो वह लौटकर नहीं आता है। इसलिए हमें अपने समय और जीवन की कीमत समझनी चाहिए।


द्वारे तेरे रामजी, मिलहुँ कबीरा मोहिं।
तैं तो सब में मिलि रहा, मैं न मिलुंगा तोहि।।१५६९।।

अर्थ: तेरे द्वार पर, ओ राम, कबीर मिलना चाहता है। जबकि तुम सब जगह मौजूद हो, अगर मैं तुमसे नहीं मिल पाऊं, तो मैं तुम्हें कहाँ पाऊँगा?

Meaning: At your door, O Ram, Kabir wishes to meet you. Though you are present everywhere, if I do not meet you, where will I find you?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में ईश्वर से एक विशेष मुलाकात की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भगवान हर जगह मौजूद हैं, लेकिन अगर वे उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं मिलते, तो उन्हें कहाँ मिलेगा? यह दोहा ईश्वर के प्रति उनकी खोज और प्रेम को दर्शाता है।


धरती जानति आप गुण, कधी न होती डोल।
तिल तिल गुरुवी होती, रहित ठीकहु के मोल।।१५७०।।

अर्थ: धरती अपनी गुणवत्ता को जानती है और कभी नहीं हिलती। तिल-तिल की भी कीमत होती है, भले ही उसकी कीमत न हो।

Meaning: The earth knows its own quality and never shakes. Each grain of sesame is valuable, even without its worth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने धरती की स्थिरता और मूल्य की बात की है। उन्होंने कहा कि धरती अपनी स्वाभाविक गुणवत्ता को जानती है और कभी नहीं हिलती। इसी तरह, प्रत्येक छोटी चीज़ (जैसे तिल) की अपनी मूल्य होती है, भले ही उसकी मोलभाव न हो।


धौं की डाही लाकरी, ओभी करे पुकार।
अब जो जाय लोहार घर, डाढे दूजी बार।।१५७१।।

अर्थ: टूटे हुए लकड़ी के टुकड़े भी पुकारते हैं। अब अगर कोई लोहार के घर जाता है, तो उसे बार-बार पीटा जाता है।

Meaning: The broken piece of wood also cries out. Now if one goes to a blacksmith's house, it is beaten again and again.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सामाजिक स्थिति और शोषण की बात की है। टूटे हुए लकड़ी के टुकड़े की तरह, जिनका उपयोग किया जाता है, वे भी पुकारते हैं। लोहार के घर जाने पर, इन टुकड़ों को फिर से पीटा जाता है, जो शोषण और अमानवीयता को दर्शाता है।


नग पषाण जग सकल है, लखवैया सब कोय।
नग ते उत्तम पारखी, जग में बिरलै होय।।१५७२।।

अर्थ: दुनिया में सभी पत्थर ज्ञात हैं और हर कोई उन्हें देखता है। लेकिन एक सच्चे पारखी की खोज इस दुनिया में दुर्लभ है।

Meaning: All stones in the world are known, and everyone sees them. A true connoisseur of stones is rare in this world.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पारखी की कमी को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी पत्थर ज्ञात हैं और हर कोई उन्हें देखता है, लेकिन एक सच्चे पारखी की पहचान करना मुश्किल होता है। यह समाज में गहराई और ज्ञान की कमी को उजागर करता है।


नित खरसान, लोह घुन छुटे।
नित की गोष्टि, माया मोह टूटे।।१५७३।।

अर्थ: हर दिन, लोहे का जंग हटता है। रोज़ की बैठकें मोह और माया को तोड़ती हैं।

Meaning: Daily, the iron rusts away. Daily gatherings break the attachment and illusion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ध्यान और सत्संग की महत्ता को बताया है। हर दिन जैसे लोहे का जंग हटता है, वैसे ही रोज़ की बैठकें और सत्संग हमारे मोह और माया को समाप्त करते हैं। यह आत्मिक विकास और मानसिक शुद्धता की दिशा में एक संकेत है।


नयन न आगे मन बसे, पलक पलक करे दौर।
तीनि लोक मन भूप है, मन पूजा सब ठौर।।१५७४।।

अर्थ: आँखें आगे नहीं देखतीं, लेकिन मन व्यस्त रहता है। तीनों लोक मन के भीतर हैं, और पूजा हर जगह मौजूद है।

Meaning: The eyes do not see ahead, but the mind remains restless. The three worlds are within the mind, and worship resides in every place.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की गतिविधियों और उसके अनुभव को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि आंखें भले ही आगे न देखें, लेकिन मन लगातार सक्रिय रहता है। तीनों लोक मन के भीतर हैं, और पूजा हर स्थान पर है, जो दर्शाता है कि सब कुछ हमारे भीतर होता है।


नव मन दुग्‍ध बटोरिके, टिपके भया विनास।
दूध फाटि कांजी भया, हुआ घृतहु को नास।।१५७५।।

अर्थ: नया दूध इकट्ठा किया, लेकिन वह खराब हो गया। दूध खट्टा हो गया और दही बन गया, जिससे घी का भी नाश हो गया।

Meaning: New milk gathered, but it turns to ruin. The milk turned sour and curdled, leading to the destruction of even ghee.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में नए प्रयासों की अस्थिरता की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नया दूध इकट्ठा करने से जब वह खराब हो जाता है, तो उसका परिणाम केवल दही नहीं होता, बल्कि घी का भी नाश होता है। यह दोहा इस बात की ओर इशारा करता है कि नए प्रयासों में सतर्कता और सही दिशा की आवश्यकता होती है।


नष्‍टा का राज है, नफरत का वरते तेज।
सार शब्‍द टकसार है, हृदये मांहि विवेक।।१५७६।।

अर्थ: नष्ट का नियम लागू है और नफरत की ताकत बढ़ रही है। शब्द का सार हृदय में विवेक को समझने में है।

Meaning: The rule of loss is in place, and the force of hatred prevails. The essence of the word is in discerning the wisdom in the heart.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने नष्ट होने की प्रक्रिया और नफरत की शक्ति को बताया है। उन्होंने कहा है कि शब्द का असली सार तब समझ में आता है जब हृदय में विवेक होता है। यह ध्यान देने की बात है कि प्रेम और ज्ञान ही इस नष्ट और नफरत की ताकत को पार कर सकते हैं।


नहिं हीरा की बोरियां, नहिं हंसन की पांति।
सिंघहु के लहड़ा नहीं, साधु न चले जमाति।।१५७७।।

अर्थ: हीरों की बोरियां नहीं हैं, न ही हंसों की बारात है। सिंह के गर्जन की तुलना नहीं हो सकती, और साधु को किसी जमात से नहीं जोड़ा जा सकता।

Meaning: There are no bags of diamonds, nor a procession of swans. The lion’s roar cannot be compared, nor can a saint be bound by rituals.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में भौतिक संपत्ति और बाहरी आडंबरों की निरर्थकता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि हीरे और हंस की बारात जैसे बाहरी चीज़ें महत्व नहीं रखतीं। सिंह की गर्जना और साधु की पहचान किसी धार्मिक रिवाज से नहीं होती।


नाना रंग तरंग है, मन मकरंद असूझ।
कहहिं कबीर पुकारि के, अकलि कला ले बूझ।।१५७८।।

अर्थ: विभिन्न रंगों की लहरें हैं, और मन अमृत की तरह है जिसे समझा नहीं जा सकता। कबीर कहते हैं, अकल (बुद्धि) से सूक्ष्म कला को समझो।

Meaning: There are various waves of color, and the mind is like nectar that cannot be understood. Kabir says, understand the subtle art with wisdom.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की जटिलता और उसकी गहराई को समझाने की कोशिश की है। विभिन्न रंगों और तरंगों की तरह, मन भी अमृत की तरह है, जिसे समझना आसान नहीं है। सूक्ष्म कला और गहरी समझ के लिए अकल की आवश्यकता होती है।


नाम न जाने ग्राम को, भूलो मारग जाय।
काल्हि गड़गा कण्‍टक, अगुमन कस कराय।।१५७९।।

अर्थ: जो गांव का नाम नहीं जानता, वह रास्ता भटक जाता है। कल की गरज और कांटे भविष्य में मुश्किलें लाते हैं।

Meaning: One who does not know the name of the village loses the way. Yesterday's thunder and thorns lead to trouble in the future.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पथिक की दिशा और ज्ञान की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि किसी को गांव का नाम भी नहीं पता, तो वह रास्ता भटक जाएगा। कल की घटनाएं, जैसे गरज और कांटे, भविष्य में समस्याएँ पैदा कर सकती हैं।


पंच तत्त ले या तन कीन्‍हा, सो तन काही ले दीन्‍हा।
कर्महि के वश जीव कहत है, कर्महि को जिव दीन्‍ह।।१५८०।।

अर्थ: शरीर पंच तत्वों से बना है और इसका रूप दिया गया है। जीवन कर्मों के अधीन है और कर्म ही जीवन को परिभाषित करते हैं।

Meaning: The body is composed of the five elements, and it is given its form. The life of the being is subject to actions, and actions define the life.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने शरीर की रचना और जीवन की निर्भरता पर चर्चा की है। उन्होंने कहा कि शरीर पंच तत्वों से बना है और कर्म ही जीवन को आकार देते हैं। जीवन और कर्मों के बीच गहरा संबंध है।


पंच तत्‍व का पूतरा, मानुष धरिया नाम।
एक कला के बीछुरे, बिकल होत सब ठांव।।१५८१।।

अर्थ: शरीर पांच तत्वों से बना है और इसे मानव कहा जाता है। एक कला से अलग हो जाने पर, यह हर जगह परेशान हो जाता है।

Meaning: The body is made of the five elements and is called human. Detached from one art, it becomes disturbed everywhere.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव शरीर की अस्थिरता और उसकी स्थिति की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब शरीर (जो पंच तत्वों से बना है) किसी कला (ज्ञान) से अलग हो जाता है, तो यह हर जगह परेशान और अस्थिर हो जाता है।


पंचतत्त के भीतरे, गुप्‍त वस्‍तु अस्‍थान।
बिरले मर्म कोई पाइहै, गुरु के शब्‍द प्रमाण।।१५८२।।

अर्थ: पंच तत्वों के भीतर एक गुप्त स्थान है। बहुत कम लोग इस सार को समझ पाते हैं; गुरु के शब्द प्रमाण होते हैं।

Meaning: Within the five elements, there is a hidden place. Rarely does anyone understand the essence; the words of the guru are the proof.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने शरीर के भीतर एक गुप्त और महत्वपूर्ण स्थान की बात की है। उन्होंने कहा कि बहुत कम लोग इस गहरे सार को समझ पाते हैं, और गुरु के शब्द इस समझ के प्रमाण होते हैं।


पंच तत्त्‍व को पूतरा, जुक्ति रची मैं कीव।
मैं तोहिं पूछौ पंडिता, शब्‍द बड़ा की जीव।।१५८३।।

अर्थ: पंच तत्वों से बना शरीर, मैंने तर्क को सहेजा है। मैं आपसे पूछता हूँ, विद्वानों, शब्द बड़ा है या जीवन?

Meaning: The body made of five elements, I have composed the logic. I ask you, scholars, which is greater, the word or the life?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन और शब्द के बीच अंतर और उनके महत्व की चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पंच तत्वों से बने शरीर के तर्क को उन्होंने समझा है। वे विद्वानों से पूछते हैं कि क्या शब्द बड़ा है या जीवन। यह सवाल जीवन के वास्तविक मूल्य को दर्शाता है।


पक्षापक्षी के कारण, सब जग गया भुलान।
निरपक्ष होय के हरि भजे, सोई सन्‍त सुजान।।१५८४।।

अर्थ: पक्षपात के कारण, सारा जगत भ्रमित हो गया है। जो हरि की पूजा निष्पक्षता से करते हैं, वही सच्चे संत हैं।

Meaning: Due to the conflicts between factions, the whole world is confused. The wise are those who worship Hari with impartiality.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने पक्षपात और विवादों से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि जो लोग निष्पक्षता के साथ हरि की पूजा करते हैं, वही सच्चे और समझदार संत होते हैं। यह निष्पक्षता और समझ की ओर इशारा करता है।


परदे पाणी दाधिया, संतो करह विचार।
सरमा सरमी पचि मुवा, काल घसीट निहार।।१५८५।।

अर्थ: परदे के पीछे, पानी और दही, संतों पर विचार करें। सांसारिक कपड़ा जलकर, समय के पहनावे को सहन नहीं करता।

Meaning: Behind the veil, water and curd, reflect on the saints. The cloth of the worldly, having been burnt, does not withstand the wear of time.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में सांसारिक वस्तुओं और संतों के विचार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो सांसारिक वस्त्र (पारंपरिक सोच) जलकर समाप्त हो जाते हैं, वे समय के साथ टिक नहीं सकते। परदे के पीछे पानी और दही की बात करते हुए, उन्होंने संतों की सत्यता और स्थिरता को दर्शाया है।


पर्वत ऊपर हर बहे, घोरा चढ़ बसि ग्राम।
बिना फूल भंवरा रस चहै, कहु बिरवा को नाम।।१५८६।।

अर्थ: पहाड़ पर नदी बहती है, जबकि घोड़ा गांव में बैठा है। फूलों के बिना, भंवरा रस की खोज करता है; बताओ, उस पेड़ का नाम क्या है?

Meaning: On the mountain, the river flows, while the horse sits in the village. Without flowers, the bee seeks nectar; tell me, what is the name of the tree?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने प्राकृतिक और सामाजिक असंगतियों की बात की है। उन्होंने बताया है कि जैसे पहाड़ पर नदी बहती है और घोड़ा गांव में बैठा है, वैसे ही भंवरा फूलों के बिना रस की खोज करता है। यह पेड़ के महत्व और नाम की खोज का प्रतीक है।


फल में परले बीतिया, लोगहि लागु तिवारि।
आगिल सोच निवारि के, पाछिल करहु गुहारि।।१५८७।।

अर्थ: फल अधिक पका हुआ है, और लोग इसके गिरने का इंतजार कर रहे हैं। भविष्य की चिंता करने के बजाय, अतीत की समस्याओं को हल करो।

Meaning: The fruit has become overripe, and people are waiting for it to fall. Instead of worrying about the future, address the concerns of the past.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में समय के महत्व और अतीत की समस्याओं को दूर करने की आवश्यकता को बताते हैं। जब फल अधिक पक जाता है, तो लोग उसे गिरने का इंतजार करते हैं। इसी प्रकार, भविष्य की चिंता करने के बजाय, हमें अतीत की समस्याओं का समाधान करना चाहिए।


पांवहिं पहुमी नापते, दरिया करते फाल।
हाथन्हि पर्वत तोलते, तेहि धरि खायो काल।।१५८८।।

अर्थ: पैरों से पृथ्वी को नापते हैं, और नदी में तरंगें बनाते हैं। हाथों से पहाड़ों को तौलते हैं, लेकिन मृत्यु सबको निगल जाती है।

Meaning: Measuring the earth with feet, and making waves in the river. Balancing mountains with hands, and yet death consumes it all.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने जीवन के व्यर्थ प्रयासों और मृत्यु की अटूट वास्तविकता की बात की है। चाहे हम पृथ्वी को मापें या पहाड़ों को तौलें, मृत्यु सभी प्रयासों को समाप्त कर देती है। यह जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के अनिवार्य वास्तविकता की ओर इशारा करता है।


पाणि पियावत का फिरो, घर घर सायर बारि।
तुषावंत जो होंहिगे, पीवहिंगे झख मारि।।१५८९।।

अर्थ: पानी पीते हुए घूमते हैं, हर घर का दौरा करते हैं। जो लोग ज्ञानी हैं, वे बिना हिचकिचाहट के आनंद लेते हैं; मूर्ख एक चक्र में फंस जाते हैं।

Meaning: Drinking water and wandering, visiting each house. Those who are wise, enjoy without hesitation; the foolish are caught in a cycle.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पानी पीकर घूमने और घर-घर जाने की प्रक्रिया का उपयोग करके ज्ञानी और मूर्खों के बीच अंतर को दर्शाते हैं। ज्ञानी लोग जीवन के आनंद को सहजता से स्वीकार करते हैं, जबकि मूर्ख एक निरंतर चक्र में फंस जाते हैं।


पाणी भीतर घर किया, सेज्‍या किया पताल।
पासा परा करीम का, तामंह मेले जाल।।१५९०।।

अर्थ: पानी के भीतर एक घर बनाया गया, और पाताल में बिस्तर बनाया गया। करीम का जाल हर जगह फैल गया है, सभी को उलझा रहा है।

Meaning: Inside the water, a house was built, and a bed was made in the underworld. The net of Karim is spread everywhere, entangling all.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आध्यात्मिक जाल और इसके प्रभाव को बताया है। पानी और पाताल की बात करके उन्होंने यह संकेत किया है कि करीम (ईश्वर) का जाल हर जगह फैला हुआ है और सभी को अपने प्रभाव में लाता है।


पानी ते अति पातला, धुआं ते अति छीनि।
पवनुहु ते उतावला, दोस्‍त कबीरनि कीनि।।१५९१।।

अर्थ: पानी बहुत पतला है, धुआं बहुत साफ है। हवा असंतुलित है, कबीर कहते हैं, मेरे मित्र।

Meaning: The water is very thin, the smoke is very clear. The wind is restless, says Kabir, my friend.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्राकृतिक तत्वों की स्थिति को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि पानी बहुत पतला है, धुआं बहुत स्पष्ट है, और हवा असंतुलित है। यह प्रकृति के विभिन्न तत्वों की अस्थिरता और प्रभाव को दर्शाता है।


पारस परसि ताम्र भो, कंचन बहुरि न तांबा होय।
परिमल बास परासहि, बेधे काठ कहै नहिं कोय।।१५९२।।

अर्थ: पारस की छूअन से तांबा सोना बन जाता है, लेकिन सोना फिर से तांबा नहीं बन सकता। छूअन की वास्तविकता लकड़ी में दिखाई नहीं देती।

Meaning: The touch of the philosopher's stone turns copper into gold, but it doesn’t turn gold back into copper. The essence of the touch is not visible in wood.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पारस के गुण और उसकी प्रभावशीलता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि पारस की छूअन से तांबा सोना बन जाता है, लेकिन सोना फिर से तांबा नहीं बन सकता। यह छूअन की स्थिरता और लकड़ी में उसकी अनुपस्थिति की ओर इशारा करता है।


पारस रूपी जीव है, लोह रूप संसार।
पारस ते पारस भया, परख भया टकसार।।१५९३।।

अर्थ: जीव पारस की तरह है और संसार लोहा की तरह है। पारस लोहा को सोना बनाता है; सार उसके परख में है।

Meaning: The living being is like the philosopher's stone, and the world is like iron. The philosopher’s stone turns iron into gold; the essence is in its discernment.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन और संसार की तुलना पारस के साथ करते हैं। उन्होंने कहा कि पारस की तरह जीव भी संसार को बदलने की क्षमता रखता है। पारस लोहा को सोना बना देता है, और जीवन की वास्तविकता उस परख में छुपी है।


पाव पलक की गमि नहीं, करे काल के साज।
बीच अचानक मारिहैं, ज्‍यों तीतर कों बाज।।१५९४।।

अर्थ: पांव पलकों की गति को नहीं माप सकते, लेकिन मृत्यु अपने जाल तैयार करती है। बीच में, यह अचानक हमला करती है, जैसे बाज तीतर पर।

Meaning: The feet cannot measure the blink of an eye, but death prepares its traps. In the midst, it strikes suddenly, like a hawk on a partridge.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की अस्थिरता और मृत्यु की अनिश्चितता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि पांव पलकों की गति को नहीं माप सकते, लेकिन मृत्यु अपने जाल तैयार करती है और अचानक हमला करती है, जैसे बाज तीतर पर हमला करता है।


पीपर एक महा गभानी, वाकी मर्म कोई नहिं जा‍न।
डार लंबाये फल कोइ नहीं पाय, खसम अक्षत बहु पीपरे जाय।।१५९५।।

अर्थ: पीपल का पेड़ बहुत गहरा है, और कोई भी इसके सार को नहीं समझता। हालांकि इसके शाखाएं लंबी होती हैं, यह फल नहीं देता। भगवान की आशीर्वाद पीपल में बहुत हैं।

Meaning: The peepal tree is very profound, and no one understands its essence. Though it extends its branches, it bears no fruit. The Lord's blessings are numerous in the peepal.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में पीपल के पेड़ की गहराई और उसके फल न देने की बात करते हैं। उन्होंने बताया है कि पीपल का पेड़ जितना गहरा और रहस्यमय होता है, कोई भी उसकी वास्तविकता को समझ नहीं पाता। हालांकि इसके शाखाएं लंबी होती हैं और भगवान की आशीर्वाद बहुत होते हैं।


पूर्व उगे पश्चिम अथवे, भखे पवन को फूल।
ताका राहु काल गरासे, मानुष काहे को भूल।।१५९६।।

अर्थ: पूर्व उगता है, पश्चिम भी, जैसे पवन में फूल। समय सभी रास्तों को निगल जाता है, फिर मनुष्य क्यों भूल जाता है?

Meaning: East rises, west also, like the flower in the wind. Time consumes all paths, why does man forget?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने समय और प्रकृति के संबंध को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि जैसे सूरज पूर्व से पश्चिम तक यात्रा करता है और पवन में फूल खिलता है, वैसे ही समय सब कुछ निगल जाता है। इस प्रक्रिया में, मनुष्य क्यों भूल जाता है, यह सोचने योग्य है।


पैठा है घर भीतरे, बैठा है सचेत।
जब जैसी गति चाहिए, तब तैसी मति देत।।१५९७।।

अर्थ: घर के भीतर, सत्य निवास करता है, सतर्क बैठा है। जिस गति की आपको आवश्यकता है, वही ज्ञान वह देता है।

Meaning: Inside the house, the truth resides, sitting alert. Whatever pace you need, it grants you that wisdom.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में आंतरिक सत्य और ज्ञान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सत्य घर के भीतर, यानी आत्मा के अंदर निवास करता है और जो भी गति या दिशा आप चाहते हैं, वह आपको वही प्रदान करता है।


हौं तो सब ही की कही, मो कहं कोइ न जान।
तब भी अच्‍छा अब भी अच्‍छा, युग-युग होऊं न आन।।१५९८।।

अर्थ: मैं सभी से बात करता हूं, लेकिन कोई भी मुझे नहीं जानता। फिर भी, यह अच्छा है; यह हमेशा अच्छा रहेगा, युगों-युगों तक।

Meaning: I speak to everyone, but no one knows me. Even so, it is good; it will always be good, timelessly.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अपने आप को और अपनी पहचान को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि भले ही वह सभी से बातें करते हैं, कोई भी उनकी सच्चाई को नहीं जानता। फिर भी, यह स्थिति हमेशा अच्छी है और कालातीत रूप से बनी रहती है।


प्रगट कहौं तो मारिया, परदा लखे न कोय।
सहना छुपा पुवार तर, को कह बैरी होय।।१५९९।।

अर्थ: यदि प्रकट किया जाए, तो वह मारा जाता है; परदा कोई नहीं देखता। सहनशीलता इसे छुपा देती है, कौन कह सकता है कि शत्रु कौन है?

Meaning: If revealed, it is killed; no one sees the veil. Endurance hides it, who can say who is the enemy?

व्याख्या: कबीर इस दोहे में छुपे हुए सत्य और उसके प्रकट होने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि सत्य को प्रकट किया जाए, तो वह नष्ट हो जाता है और परदा किसी को दिखाई नहीं देता। सहनशीलता के माध्यम से इसे छुपाया जा सकता है, लेकिन यह पता लगाना मुश्किल है कि शत्रु कौन है।


प्रथम एक जो हीं किया, भया सो बारह बान।
कसत कसौटी ना टिका, पीतर भया निदान।।१६००।।

अर्थ: जो पहले एक किया गया था, वह बारह बाण हो गया। वह कसौटी पर खरा नहीं उतर सका; पीतल समाधान बन गया।

Meaning: What was done first as one became twelve arrows. It could not withstand the test; the yellow metal became the solution.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने परीक्षण और सत्य के संबंध को दर्शाया है। उन्होंने कहा कि जो पहले एक था, वह बारह बाण बन गया, और परीक्षण में असफल हो गया। पीतल एक समाधान बन गया, यह उन परीक्षणों के लिए एक आदर्श धातु है।