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संत कबीर जी के दोहे — 151 to 200

सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्मा कर संग।
बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया अब अंग।।१५१।।

अर्थ: सतगुरु ने मुझे अपने साथ रखकर मुझसे प्रेम किया। प्रेम का बादल बरस गया है, और अब मेरा शरीर पूरी तरह भीग गया है।

Meaning: The True Guru has pleased me by keeping me with him. The cloud of love has poured down, and now my body is soaked.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में गुरु की कृपा और प्रेम का वर्णन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सतगुरु की संगति से उनके जीवन में प्रेम का अनुभव हुआ है, जैसे बादल से पानी बरसने पर शरीर पूरी तरह भीग जाता है। गुरु की कृपा से उनके जीवन में प्रेम की बारिश हो गई है, जिससे वे पूरी तरह संतुष्ट और समर्पित महसूस कर रहे हैं।


कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष।
स्वाँग जती का पहरि करि, धरि-धरि माँगे भीष।।१५२।।

अर्थ: सतगुरु को न पाकर सिर अधूरा रह जाता है। संन्यासियों का भेष धारण करके, वे बार-बार आशीर्वाद मांगते रहते हैं।

Meaning: Without finding the True Guru, the head remains incomplete. Wearing the disguise of a hermit, one keeps begging for blessings.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर गुरु की महत्ता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि बिना सतगुरु के जीवन अधूरा रहता है और जो लोग संन्यास का दिखावा करते हैं, वे केवल आशीर्वाद के लिए मांगते रहते हैं। सही गुरु के बिना, व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से पूर्ण नहीं हो सकता और जीवन की असली प्राप्ति नहीं कर सकता।


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान।।१५३।।

अर्थ: यह शरीर विष की पात्र है, जबकि गुरु अमृत का खान है। यदि कोई अपने सिर को गुरु के लिए अर्पित करे, तो भी यह सस्ता माना जाता है।

Meaning: This body is a vessel of poison, while the Guru is a mine of nectar. Even if one offers their head for the Guru, it is still considered cheap.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में गुरु की महत्वता को बताते हैं। वे कहते हैं कि हमारे शरीर में विष है, जबकि गुरु अमृत के समान हैं। गुरु की प्राप्ति से जीवन को अमृत मिल सकता है। गुरु को अर्पित करना, चाहे अपने सिर को ही क्यों न हो, वह भी बहुत सस्ता है, क्योंकि गुरु का महत्व अनमोल है।


तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तू।।१५४।।

अर्थ: तू ही तू करता रहा, और तू बन गया। मैं अंदर नहीं था। गोल-गोल घूमते हुए, अब हर जगह तुझे देखकर खो गया हूँ।

Meaning: You, you kept doing, and you became. I was not there within. Going around in circles, I am now lost in seeing you everywhere.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर आत्म-साक्षात्कार की बात कर रहे हैं। वे यह समझते हैं कि भगवान या ईश्वर सब कुछ कर रहे हैं, और इस प्रक्रिया में वे खुद को भूल गए हैं। अपने आप में खोने के बाद, कबीर हर जगह ईश्वर को ही देख रहे हैं और इस अंतर्दृष्टि से प्रभावित हैं।


राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप।
बेस्या केरा पूतं ज्यूं, कहै कौन सू बाप।।१५५।।

अर्थ: राम के प्रिय नाम को छोड़कर कोई दूसरा नाम जपता है। जैसे वेश्या के बेटे का कोई सच्चा पिता नहीं होता, वैसे ही ऐसा भक्त सच्चे देवता को नहीं जानता।

Meaning: Leaving aside the beloved name of Ram, one chants the name of another. Like a courtesan's son, who is his true father?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह व्यक्त कर रहे हैं कि जो व्यक्ति राम के प्रिय नाम को छोड़कर किसी और नाम का जाप करता है, वह सच्चे भक्ति और ईश्वर की पहचान से दूर रहता है। जैसे वेश्या के बेटे का कोई वास्तविक पिता नहीं होता, वैसे ही ऐसा व्यक्ति सच्चे देवता से अज्ञानी रहता है। कबीर यह संदेश दे रहे हैं कि सच्ची भक्ति और प्रेम में स्थिरता और समर्पण होना चाहिए।


कबीरा प्रेम न चषिया, चषि न लिया साव।
सूने घर का पांहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव।।१५६।।

अर्थ: कबीर ने प्रेम का स्वाद नहीं चखा, न ही उसे पिया। सुनसान घर में आने वाला अतिथि उसी तरह आता और जाता है जैसे आया था।

Meaning: Kabir did not taste love, nor did he drink it. A guest in a deserted home comes and goes just as they arrived.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह कह रहे हैं कि उन्होंने प्रेम का अनुभव नहीं किया और न ही उसे पिया। जैसे सुनसान घर में आने वाला अतिथि तुरंत चला जाता है, वैसे ही प्रेम का अनुभव उनके जीवन में स्थायी नहीं रहा। कबीर इस तरह से प्रेम की अस्थिरता और उसके तात्कालिक स्वभाव को व्यक्त कर रहे हैं।


कबीरा राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ।
फूटा नग ज्यूं जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ।।१५७।।

अर्थ: कबीर ने राम को अपने गुणों को अमृत की तरह गा कर प्रसन्न किया। जैसे घड़ा पानी से जुड़ने पर भर जाता है, वैसे ही मन भी ईश्वर से मिल जाता है।

Meaning: Kabir has won over Ram by singing the nectar-like qualities of His name. Just as a pot fills up with water when it is joined to a source, the mind meets with the divine essence.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह कह रहे हैं कि उन्होंने राम के गुणों की सराहना करके और उन्हें अमृत की तरह गाकर उन्हें प्रसन्न किया। जब मन और ईश्वर का मिलन होता है, तो यह उस घड़े की तरह होता है जो पानी से जुड़कर भर जाता है। यह मिलन एक आध्यात्मिक अनुभव को दर्शाता है जो आत्मा को पूर्णता की ओर ले जाता है।


बिरह-भुवगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम-बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।१५८।।

अर्थ: शरीर प्रेम और विरह से पीड़ित है; कोई मंत्र या विधि प्रभावी नहीं होती। जो व्यक्ति राम से बिछड़ जाता है, वह शांति से नहीं जी सकता और प्रेम के अभाव में पागल हो जाता है।

Meaning: The body suffers from separation and intense longing; no mantra or ritual seems effective. A person separated from Ram cannot live peacefully; they become mad with longing.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बता रहे हैं कि राम से बिछड़ना एक गहरी पीड़ा और लंबे समय तक चलने वाला दुख होता है। कोई भी मंत्र या साधना इस पीड़ा को कम नहीं कर सकती। जो व्यक्ति राम के प्रेम से वंचित होता है, वह शांति से जीने में असमर्थ होता है और इस प्रेम के बिना वह मानसिक रूप से परेशान हो जाता है।


इस तन का दीवा करौ, बाती मेल्यूं जीवउं।
लोही सींचो तेल ज्यूं, कब मुख देख पठिउं।।१५९।।

अर्थ: इस शरीर को दीपक बना दो, और बाती जीवन है। भक्ति का तेल लोहे की तरह डाले, तब आप भगवान का मुख देख सकोगे।

Meaning: Make this body a lamp, and the wick is the life. Pour the oil of devotion like molten iron, and then you will see the divine face.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में कहते हैं कि अपने शरीर को एक दीपक की तरह बनाएं और जीवन को उसकी बाती मानें। भक्ति के तेल को जैसे लोहे की तरह डालें, इससे शरीर और मन को ईश्वर की ओर केंद्रित करें। इस प्रकार, सच्ची भक्ति और ध्यान से ईश्वर का दर्शन संभव हो सकता है।


जो रोऊँ तो बल घटै, हँसो तो राम रिसाइ।
मन ही माहिं बिसूरणा, ज्यूँ घुँण काठहिं खाइ।।१६०।।

अर्थ: अगर मैं रोऊँ तो मेरी शक्ति कम हो जाती है; अगर हँसूं तो राम नाराज हो जाते हैं। मन में दुखी होना ऐसा है जैसे लकड़ी में दीमक लग गई हो।

Meaning: If I cry, my strength diminishes; if I laugh, Ram becomes angry. Grieving within my mind is like wood being eaten by termites.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में अपने भावनात्मक संघर्ष का वर्णन कर रहे हैं। वे बताते हैं कि जब वे रोते हैं तो उनकी शक्ति घट जाती है, और जब वे हँसते हैं तो राम नाराज हो जाते हैं। मन में आंतरिक दुख की स्थिति को लकड़ी में लगे दीमक के समान बताते हैं, जो धीरे-धीरे उस वस्तु को नष्ट कर देती है।


पहुँचेंगे तब कहैगें, उमड़ैंगे उस ठांई।
आजहूं बेरा समंद मैं, बोलि बिगू पैं काई।।१६१।।

अर्थ: जब हम पहुँचेंगे, तब हम कहेंगे, 'हम वहां उमड़ेंगे।' अभी भी समुद्र के किनारे, मैं व्यर्थ में बोल रहा हूँ।

Meaning: When we arrive, then we will say, 'We will overflow there.' Even now, at the shore, I am speaking in vain.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दिखा रहे हैं कि एक आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही लोग अपनी सफलता का दावा करते हैं। वर्तमान में, जब तक हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुँचते, तब तक हमारी बातें व्यर्थ होती हैं। यह दोहा भक्ति और आध्यात्मिक यात्रा की वास्तविकता को उजागर करता है।


दीठा है तो कस कहूं, कह्मा न को पतियाइ।
हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरिष-हरिष गुण गाइ।।१६२।।

अर्थ: यदि आप उसे देखते हैं, तो मैं क्या कह सकता हूँ? कोई भी उसे पकड़ नहीं सकता। जैसे वह है, वैसे ही रहो; उसकी गुणों को खुशी से गाओ।

Meaning: If you see Him, what can I say? No one can hold Him. Stay as He is; sing His virtues with joy.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में ईश्वर की अनंतता और उसकी सर्वव्यापकता को दर्शाते हैं। यदि किसी को ईश्वर का दर्शन हो जाए, तो उसे समझना कठिन होता है क्योंकि कोई भी ईश्वर को पूरी तरह से पकड़ नहीं सकता। इसलिए, जैसे वह हैं, वैसे ही रहने और उनके गुणों की स्तुति करने की सलाह दी जाती है।


भारी कहौं तो बहुडरौं, हलका कहूं तौ झूठ।
मैं का जाणी राम कूं, नैनूं कबहूं न दीठ।।१६३।।

अर्थ: यदि मैं इसे भारी कहूं, तो यह बोझिल लगने लगता है; यदि हल्का कहूं, तो यह झूठा प्रतीत होता है। मैं राम की वास्तविकता को नहीं जानता; मैंने कभी उन्हें नहीं देखा।

Meaning: If I say it is heavy, then it becomes burdensome; if I say it is light, it seems false. I do not know the essence of Ram; I have never seen Him.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सत्य और वास्तविकता की जटिलता को व्यक्त कर रहे हैं। वे बताते हैं कि सत्य को व्यक्त करना कठिन है क्योंकि यह या तो भारी या हल्का लग सकता है, और किसी को उसकी सच्चाई का पूरा ज्ञान नहीं होता। राम की वास्तविकता को जानने और समझने में उन्हें कठिनाई होती है।


कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुत जो भीत।
जिन दिल बांध्या एक सूं, ते सुख सोवै निचींत।।१६४।।

अर्थ: इस कलियुग में बहुत डर उत्पन्न हो गया है। जो लोग एक ही दिल से बंधे हैं, वे शांति नहीं पा सकते।

Meaning: In this Kali Yuga, much fear has arisen. Those who are bound by one heart cannot find peace.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में कलियुग की कठिनाइयों और भय का वर्णन कर रहे हैं। इस युग में डर और अशांति व्याप्त है, और जो लोग एक ही दिल या उद्देश्य से बंधे रहते हैं, वे भी शांति प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं। यह दोहा कलियुग की वास्तविकताओं को दर्शाता है और शांति की खोज की चुनौती को बताता है।


पतिबरता मैली भली, गले कांच को पोत।
सब सखियन में यों दिपै, ज्यों रवि ससि को जोत।।१६५।।

अर्थ: एक पतिव्रता महिला भले ही मैले कपड़े पहने, लेकिन यदि वह अपने गले में कांच का आभूषण लगाती है, तो वह सभी सहेलियों में ऐसे चमकती है जैसे सूर्य और चंद्रमा की चमक।

Meaning: A devoted wife may be unclean, but if she applies glass (to adorn herself) around her neck, she shines among all friends, like the sun and moon's light.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह समझाते हैं कि व्यक्ति की आंतरिक भक्ति और समर्पण ही उसकी वास्तविक सुंदरता और मूल्य को दर्शाते हैं। भले ही बाहरी रूप से व्यक्ति साधारण या मैले हों, लेकिन जब उनके भीतर सच्ची भक्ति और समर्पण होता है, तो वे दूसरों के बीच चमक उठते हैं। यह दोहा आंतरिक गुणों की महत्ता को दर्शाता है।


परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि।
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि।।१६६।।

अर्थ: महिला के आचरण की तुलना लहसुन के बर्तन से की जाती है। जो बिना दूसरों की परवाह किए भोजन करता है, वह अपनी सच्ची प्रकृति को प्रकट करता है।

Meaning: The conduct of a woman is compared to a container of garlic. One who eats without consideration of others, reveals their true nature.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने सामाजिक व्यवहार और उसके प्रभाव पर ध्यान दिलाया है। उन्होंने बताया है कि कुछ लोगों का आचरण दूसरों की भावनाओं की अनदेखी करते हुए केवल अपने स्वार्थ को ही ध्यान में रखता है। यह व्यवहार उनकी सच्ची प्रकृति को उजागर करता है।


इहि उदर के कारणे, जग पाच्यो निस जाम।
स्वामी-पणौ जो सिरि चढ़यो, सिर यो न एको काम।।१६७।।

अर्थ: इस पेट के कारण, संसार रात में विनाश की ओर जा रहा है। स्वामीपन का गर्व व्यर्थ है, क्योंकि यह किसी काम का नहीं है।

Meaning: Because of this belly, the world is perishing in the night. The pride of being a master is futile, as it does not serve any purpose.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भौतिकता और आत्म-संतोष के मुद्दे को उठाया है। उन्होंने बताया है कि भौतिक आवश्यकताओं और गर्व के कारण दुनिया की वास्तविक स्थिति खराब हो रही है। जो भी स्वामीपन और गर्व का दिखावा करता है, वह वास्तव में व्यर्थ है। यह दोहा आत्मसंतोष और आंतरिक शांति के महत्व को दर्शाता है।


कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ।
लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ।।१६८।।

अर्थ: कलियुग भ्रष्ट हो गया है, और कोई साधू नहीं मिलता। लालची और धोखेबाज लोगों को सम्मान दिया जाता है।

Meaning: The Kali Yuga has become corrupt, and no sage is found. The greedy and deceitful are honored instead.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने कलियुग की स्थिति को दर्शाया है, जहां सत्य और साधू लोग दुर्लभ हो गए हैं। इस समय में, लालची और धोखेबाज लोगों को सम्मान प्राप्त होता है, जबकि सच्चे साधू और ज्ञानी लोग अनुपस्थित हैं। यह दोहा सामाजिक और आध्यात्मिक पतन की स्थिति को स्पष्ट करता है।


चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि।
फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं।।१६९।।

अर्थ: चतुराई को पढ़कर और वह पिंजरे में बंद हो जाती है। फिर यह दूसरों को आनंदित करती है, लेकिन खुद को नहीं समझ पाती।

Meaning: Cleverness is learned and is contained in the cage. Then it delights in others, but fails to understand itself.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में यह बता रहे हैं कि चतुराई और बुद्धिमत्ता केवल बाहरी ज्ञान तक सीमित रहती है। यह दूसरों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन खुद की वास्तविक स्थिति को समझने में असमर्थ रहती है। यह चेतावनी है कि अपनी चतुराई के जाल में न फंसें, क्योंकि यह आत्मज्ञान की ओर नहीं ले जाती।


कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम।
कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रम।।१७०।।

अर्थ: कबीर का मन भटकता रहता है, यह सोचते हुए कि मैं शांत हूँ। लाखों प्रयास करने के बावजूद, चेतना भ्रम को नहीं पहचानती।

Meaning: Kabir's mind wanders, thinking that I am calm. Even after following millions of steps, awareness does not recognize the illusion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह समझाते हैं कि भले ही व्यक्ति अपनी शांतिपूर्ण स्थिति का दावा करे, उसका मन लगातार भ्रम और असावधानी में रहता है। बाहरी प्रयासों से आत्मा की वास्तविक स्थिति को पहचानने में कोई लाभ नहीं होता। यह आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता को दर्शाता है।


हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार।
मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार।।१७१।।

अर्थ: जो हरि के अमृत को पीता है, उसे कभी भी नशा नहीं होता। अहंकार घूमता रहता है, जबकि शरीर का कोई मूल्य नहीं रहता।

Meaning: One who drinks the nectar of Hari never experiences intoxication. The ego continues to roam, while the body remains worthless.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर बताते हैं कि जो व्यक्ति भगवान के दिव्य प्रेम का अनुभव करता है, वह कभी भी भौतिक नशे की अनुभूति नहीं करता। अहंकार और शरीर की यथार्थ स्थिति को स्वीकार कर लेने के बाद ही व्यक्ति का वास्तविक आध्यात्मिक अनुभव होता है।


कबीर हरि-रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि।
पाका कलस कुंभार का, बहुरि न चढ़ई चाकि।।१७२।।

अर्थ: कबीर ने हरि के अमृत को पिया, इसके बाद कुछ भी बाकी नहीं रहा। एक बार पक चुका कुंभार का बर्तन वापस चाक पर नहीं चढ़ सकता।

Meaning: Kabir drank the nectar of Hari; nothing else remained. The pot of the potter once baked cannot be put back on the wheel.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने यह बताया है कि जब कोई व्यक्ति भगवान की दिव्यता को पूरी तरह से अनुभव करता है, तो उसके जीवन में कुछ भी बाकी नहीं रहता। जैसे एक बार बर्तन पक जाने के बाद उसे चाक पर नहीं चढ़ाया जा सकता, वैसे ही पूर्ण आध्यात्मिक अनुभव के बाद कुछ और की चाह नहीं रहती।


त्रिक्षणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ।
जवासा के रुष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ।।१७३।।

अर्थ: प्यास को सींचकर बुझाया नहीं जा सकता; यह हर दिन बढ़ती जाती है। जैसे बर्तन में पका भोजन समय के साथ सिकुड़ता जाता है।

Meaning: Thirst is not quenched by watering; it grows daily. Like a dish in the pot, it shrinks even with time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने इच्छा और प्यास की अनंतता को व्यक्त किया है। उन्होंने बताया है कि इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होतीं और ये हर दिन बढ़ती जाती हैं, भले ही आप उन्हें पूरा करने की कोशिश करें। समय के साथ, जैसे भोजन सिकुड़ जाता है, इच्छाएं भी बढ़ती जाती हैं।


कबीर सो घन संचिये, जो आगे कू होइ।
सीस चढ़ाये गाठ की, जात न देख्या कोइ।।१७४।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि भविष्य के लिए संपत्ति एकत्र करनी चाहिए। किसी ने भी सिर पर गाँठ बांधने से अपने यात्रा का अंत नहीं देखा।

Meaning: Kabir says that one should accumulate wealth for the future. No one has seen the end of one's journey by placing a knot on the head.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भविष्य के लिए आध्यात्मिक और नैतिक समृद्धि को संचित करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया है कि सिर पर गाँठ बांधने से कोई भी अपने जीवन की अंतिम यात्रा को नहीं देख सकता, इसलिए आध्यात्मिक समृद्धि और ज्ञान को संचित करना महत्वपूर्ण है।


कबीर जग की जो कहै, भौ जलि बूड़ै दास।
पारब्रह्म पति छांड़ि करि, करै मानि की आस।।१७५।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि जो व्यक्ति दुनिया की बात करता है, वह पानी में डूब जाता है। परब्रह्म (अधिकतम भगवान) को छोड़कर, वह सांसारिक मामलों में आशा करता है।

Meaning: Kabir says that one who talks about the world drowns in water. Leaving the Supreme Lord behind, they seek hope in worldly matters.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसारिक चीजों और परब्रह्म (अधिकतम भगवान) के बीच भेद को स्पष्ट किया है। उन्होंने दिखाया है कि जो लोग केवल भौतिक और संसारिक विषयों में उलझे रहते हैं, वे अपने आत्मिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों को खो देते हैं। यह आध्यात्मिक मार्ग पर ध्यान देने की आवश्यकता को दर्शाता है।


बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ़या कलंक।
और पखेरू पी गये, हंस न बौवे चंच।।१७६।।

अर्थ: मेंढ़क का पानी सूख गया है, और सारस पर दाग लग गए हैं। अन्य पक्षी पी गए हैं, लेकिन हंस शांत और अप्रभावित है।

Meaning: The frog's water has evaporated, the lark is covered with stains. The other birds have drunk, but the swan remains unruffled.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्मिक शांति और स्थिरता को दर्शाया है। मेंढ़क का पानी सूख गया और सारस पर दाग लग गए, जो उसकी स्थिति की कमजोरियों को दर्शाता है। जबकि हंस, जो आध्यात्मिक और शांति का प्रतीक है, सभी बाहरी प्रभावों से अछूता रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि सच्ची आत्मिक शांति केवल बाहरी प्रभावों से अप्रभावित रहने में ही है।


कबीर इस संसार का, झूठा माया मोह।
जिहि धारि जिता बाधावणा, तिहीं तिता अंदोह।।१७७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि यह संसार झूठा है, एक माया का मोह है। जो इस माया को पकड़ता है, वह अंधकार में ढंका रहता है।

Meaning: Kabir says that this world is false, an illusion of attachment. The one who holds on to this illusion is enveloped in darkness.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार की भ्रामकता और माया के मोह को उजागर किया है। उन्होंने बताया है कि यह संसार केवल एक माया है और जो लोग इस माया को पकड़ते हैं, वे वास्तविकता की समझ से दूर रहते हैं। यह आत्मज्ञान की ओर ध्यान देने की आवश्यकता को दर्शाता है, ताकि अंधकार और भ्रम से मुक्त हो सकें।


माया तजी तौ क्या भया, मानि तजि नही जाइ।
मानि बड़े मुनियर मिले, मानि सबनि को खाइ।।१७८।।

अर्थ: माया को छोड़ देने पर भी क्या होता है? अहंकार नहीं जाता। भले ही कोई महान ऋषियों से मिले, अहंकार सभी को प्रभावित करता है।

Meaning: What happens if one renounces illusion? The ego does not leave. Even if one meets great sages, the ego still consumes everyone.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अहंकार और माया की सच्चाई को उजागर किया है। वे कहते हैं कि माया को छोड़ने से अहंकार नहीं जाता और यह अहंकार व्यक्ति को महान व्यक्तियों के साथ भी प्रभावित करता है। इस प्रकार, अहंकार और माया को समझना और उनसे मुक्त होना आवश्यक है।


करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि करि तुंड।
जाने-बूझै कुछ नहीं, यौं ही अंधा रुंड।।१७९।।

अर्थ: कोई ऊँचा करके कीर्तन कर सकता है, लेकिन यदि वह कुछ नहीं समझता या जानता, तो वह अंधा मूर्ख ही है।

Meaning: One may perform hymns loudly with raised hands, but if one does not understand or know, they are like a blind fool.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्ति की सतही प्रकृति को उजागर किया है। उन्होंने बताया है कि बाहरी आडंबर, जैसे ऊँचा करके कीर्तन करना, तब तक महत्वपूर्ण नहीं है जब तक कि व्यक्ति की आंतरिक समझ और ज्ञान न हो। बिना ज्ञान और समझ के बाहरी क्रियाएं अर्थहीन हैं।


कबीर पढ़ियो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ।
बावन आषिर सोधि करि, ररै मर्मे चित्त लाइ।।१८०।।

अर्थ: कबीर ने दूर से पढ़ा और पुस्तक दे दी। जिसने बावन आशिरवद (52 श्लोक) का अध्ययन किया, वह वास्तविक सार को दिल में पाता है।

Meaning: Kabir read from afar, giving the book away. One who has studied the fifty-two verses finds true essence in the heart.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ज्ञान और अध्ययन की प्रक्रिया को सरलता से समझाया है। उन्होंने बताया है कि केवल पुस्तकें पढ़ने से कुछ नहीं होता; वास्तविक समझ तब आती है जब हम उसके सार को अपने दिल में उतार लें। साधना और मनन से ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है।


मैं जाण्यूँ पाढ़िबो भलो, पाढ़िबा थे भलो जोग।
राम-नाम सूं प्रीती करि, भल भल नींयो लोग।।१८१।।

अर्थ: मैं जानता हूँ कि शास्त्रों का अध्ययन अच्छा है और विधियाँ भी अच्छी हैं। लेकिन राम के नाम से प्रेम करना सबसे अच्छा है, वास्तव में सबसे उत्तम है।

Meaning: I know that reading scriptures is good, and so is performing rituals. But loving the name of Ram is the best, truly the highest good.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने भक्ति और साधना के विभिन्न रूपों की तुलना की है। उन्होंने बताया है कि शास्त्रों का अध्ययन और विधियाँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन राम के नाम से सच्ची भक्ति और प्रेम सर्वोच्च है। यही सबसे उत्तम मार्ग है आत्मा की शांति और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए।


पद गाएं मन हरषियां, साषी कह्मां अनंद।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद।।१८२।।

अर्थ: पांव खुशी से नाचते हैं, आत्मा ईश्वर में आनंदित होती है। लेकिन जो इसके सार को नहीं जानता, वह जाल में फंस जाता है।

Meaning: The feet dance in joy, the soul rejoices in the divine. But those who do not know the essence, fall into the trap.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्मिक आनंद और समझ की महत्ता को व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि सच्चा आनंद तब आता है जब व्यक्ति ईश्वर के साथ एकात्मता को महसूस करता है। लेकिन जो इस सच्चे आनंद और समझ को नहीं जानता, वह जीवन के जाल में फंस जाता है।


जैसी मुख तै नीकसै, तैसी चाले चाल।
पार ब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल।।१८३।।

अर्थ: जैसा मुख है, वैसी चाल है। परमात्मा नजदीक है और एक पल में ही सब कुछ पूरा हो जाता है।

Meaning: As is the outward appearance, so are the actions. The Supreme Being is near, and in a moment, one becomes fulfilled.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने परमात्मा की निकटता और आत्मिक पूर्णता की बात की है। उन्होंने बताया है कि व्यक्ति की बाहरी स्थिति और क्रियाएँ उसकी आत्मिक स्थिति को दर्शाती हैं। जब व्यक्ति परमात्मा के निकट होता है, तो एक पल में ही आत्मा को पूर्णता प्राप्त हो जाती है।


काजी-मुल्ला भ्रमियां, चल्या युनीं कै साथ।
दिल थे दीन बिसारियां, करद लई जब हाथ।।१८४।।

अर्थ: काजी और मुल्ला अपने अनुयायियों के साथ भ्रमित रहते हैं। वे धर्म का सार भूल जाते हैं और केवल अनुष्ठानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

Meaning: The clerics and scholars wander around with their followers. They forget the essence of faith and only focus on rituals.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने धार्मिक पाखंड और कर्तव्यहीनता को उजागर किया है। उन्होंने बताया है कि धार्मिक विद्वान और धर्मगुरु अपने अनुयायियों को भ्रमित करते हैं और धर्म की वास्तविकता को छोड़कर केवल बाहरी अनुष्ठानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सच्चे धर्म का सार समझना आवश्यक है।


प्रेम-प्रिति का चालना, पहिरि कबीरा नाच।
तन-मन तापर वारहुँ, जो कोइ बौलौ सांच।।१८५।।

अर्थ: प्रेम और स्नेह की नृत्य, कबीर खुशी से करता है। सच्चा आत्मा शरीर और मन से परे है, यह सच्चाई का सार है।

Meaning: The dance of love and affection, Kabir performs with delight. The true self is beyond body and mind, it is the essence of truth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने प्रेम और भक्ति की गहराई को व्यक्त किया है। उन्होंने बताया है कि प्रेम और स्नेह की वास्तविक अभिव्यक्ति केवल आत्मा के स्तर पर होती है, न कि शरीर और मन के स्तर पर। सच्ची भक्ति और प्रेम वही हैं जो शरीर और मन से परे जाकर आत्मा की सच्चाई को महसूस करें।


खूब खांड है खीचड़ी, माहि ष्डयाँ टुक कून।
देख पराई चूपड़ी, जी ललचावे कौन।।१८६।।

अर्थ: खूब सारी मिठाई है, लेकिन उसमें छह दाने ही हैं। दूसरों का भोजन देखकर ही लालच बढ़ जाता है।

Meaning: The sweet pudding is abundant, yet within it are six grains. Seeing another's meal makes one greedy.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने लालच और संतोष की मनोवृत्ति पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि हमारे पास जो भी समृद्धि है, वह पूरी तरह से संतोषजनक होनी चाहिए। दूसरों के संसाधनों या स्थिति को देखकर लालच का पैदा होना केवल हमारे मन की कमजोरी को दर्शाता है। संतोष और आत्मनिर्भरता ही जीवन में सच्ची खुशी लाती है।


साईं सेती चोरियाँ, चोरा सेती गुझ।
जाणैंगा रे जीवएगा, मार पड़ैगी तुझ।।१८७।।

अर्थ: चोर भगवान के साथ हैं और चोर के साथ चोर है। जान लो, आत्मा, तुम्हें अपने कर्मों के लिए दंड मिलेगा।

Meaning: Thieves are with the Lord, and the thief is with the thief. Know this, O soul, you will be punished for your actions.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने नैतिकता और कर्मों के परिणाम पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने बताया है कि जैसे चोर चोर के साथ होते हैं, वैसे ही भगवान के साथ भी अच्छाई का मेल होता है। जो व्यक्ति गलत कर्म करता है, उसे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यहाँ कबीर ने चेतावनी दी है कि कर्मों का परिणाम अपरिहार्य होता है।


तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाय।
कबीर मूल निकंदिया, कौण हलाहल खाय।।१८८।।

अर्थ: सभी तीर्थ केवल दिखावा हैं, पूरा जगत छाया में है। कबीर कहते हैं कि मूल सत्य अदृश्य है, कौन उस विष को पी सकता है?

Meaning: All pilgrimages are just a sham, the entire world is shadowed. Kabir says the essence is elusive, who can consume the poison?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने तीर्थ यात्रा और भौतिक धार्मिक कर्मों के सतहीपन को उजागर किया है। उन्होंने कहा है कि तीर्थ यात्रा और धार्मिक क्रियाएं केवल दिखावा हैं और असली सत्य अदृश्य है। कबीर ने यह भी बताया है कि केवल सत्य का अनुभव ही वास्तविकता को समझने में सहायक हो सकता है।


उज्जवल देखि न धीजिये, वग ज्यूं माडै ध्यान।
धीर बौठि चपेटसी, यूँ ले बूडै ग्यान।।१८९।।

अर्थ: चमक को देखकर भ्रमित न होइए, जैसे पतंगा उजाले की ओर आकर्षित होता है। जो धैर्यपूर्वक बैठते हैं और विवेक से देखते हैं, वे सच्चे ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

Meaning: Do not be misled by brightness, like a moth attracted to light. Those who sit patiently and discern, will attain true knowledge.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने चमक और आंतरिक ज्ञान के बीच अंतर को स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा है कि चमक-दमक पर ध्यान केंद्रित करना भ्रमित करने वाला हो सकता है, जबकि धैर्य और विवेक के साथ सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह दोहा सच्चे ज्ञान और आत्म-अन्वेषण की दिशा में इशारा करता है।


जेता मीठा बोलरगा, तेता साधन जारिग।
पहली था दिखाइ करि, उडै देसी आरिग।।१९०।।

अर्थ: जितना मीठा बोलता है, उतना ही अधिक धोखाधड़ी होती है। पहले यह आकर्षक लग सकता है, लेकिन अंततः यह भ्रम की ओर ले जाता है।

Meaning: The sweeter the speech, the more deceptive the practice. Initially, it may appear appealing, but ultimately, it leads to illusion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मीठी बातों और उनके पीछे की वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि मीठी बातें अक्सर भ्रमित करने वाली हो सकती हैं और सच्चाई को छुपा सकती हैं। कबीर ने बताया है कि बाहरी आकर्षण के बजाय आंतरिक सत्य और वास्तविकता को समझना अधिक महत्वपूर्ण है।


कबीरा बन-बन मे फिरा, कारणि आपणै राम।
राम सरीखे जन मिले, तिन सारे सवेरे काम।।१९१।।

अर्थ: कबीर जंगल-जंगल घूमे, अपने राम की खोज में। जो राम जैसे लोगों से मिले, उनके सारे काम सफल हो गए।

Meaning: Kabir wandered through the forests, seeking his own Ram. Those who met people like Ram, found all their work accomplished.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अपने आध्यात्मिक यात्रा की बात की है। उन्होंने कहा है कि राम की तरह की आत्मा से मिलने से व्यक्ति की सारी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं। कबीर ने इस दोहे के माध्यम से यह दर्शाया है कि सच्चे संत और साधु से मिलना जीवन के सभी कार्यों को सफल बना सकता है।


कबीर मन पंषो भया, जहाँ मन वहाँ उड़ि जाय।
जो जैसी संगति करै, सो तैसे फल खाइ।।१९२।।

अर्थ: मन वही बन जाता है, जिसके साथ वह जुड़ता है; वह जहाँ भी आकर्षित होता है, उधर उड़ जाता है। व्यक्ति अपनी संगत के अनुसार फल पाता है।

Meaning: The mind becomes what it associates with; it flies wherever it is drawn. One reaps the fruit of their associations.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की प्रवृत्ति और संगति के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया है। कबीर के अनुसार, मन हमेशा उसी दिशा में जाता है जहाँ उसकी संगति होती है, और व्यक्ति के कर्म उसी के अनुसार फलित होते हैं। यह दोहा यह समझाता है कि सही संगति और अच्छे विचारों का चयन करना जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।


कबीरा खाई कोट कि, पानी पिवै न कोई।
जाइ मिलै जब गंग से, तब गंगोदक होइ।।१९३।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, चाहे कोई कितनी भी बार कुएँ का पानी पिये, वह गंगाजल के बराबर नहीं हो सकता।

Meaning: Kabir says, even if one has consumed many times the quantity of water from a well, it is not equivalent to drinking the sacred water of the Ganges.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने गंगा नदी के पवित्र जल की महिमा का उल्लेख किया है। उन्होंने यह बताया है कि संसारिक साधनों और प्रयासों की तुलना में, आध्यात्मिक और पवित्र अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। गंगा का जल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है, जबकि अन्य साधारण जल की कोई विशेषता नहीं होती।


माषी गुड़ मैं गड़ि रही, पंख रही लपटाई।
ताली पीटै सिरि घुनै, मीठै बोई माइ।।१९४।।

अर्थ: गुड़ चाशनी में घुल रहा है, जबकि पंखा उसे हिला रहा है। मिठास बनी रहती है और शोर जारी रहता है।

Meaning: The jaggery is melting in the syrup, while the fan continues to stir it. The sweetness remains, and the noise continues.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने जीवन की साधारण प्रक्रियाओं का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि जैसे गुड़ चाशनी में घुलकर मिठास बनाए रखता है, वैसे ही जीवन की सरलता और सच्चाई भी बनी रहती है, भले ही शोर और हलचल जारी रहती हो।


मूरख संग न कीजिये, लोहा जलि न तिराइ।
कदली-सीप-भुजगं मुख, एक बूंद तिहँ भाइ।।१९५।।

अर्थ: मूर्खों के साथ न रहें, जो आग से शुद्ध नहीं हो सकते। वे केले के फल, सीप, या नाग के मुँह जैसे होते हैं; एक बूंद भी उनके योग्य नहीं होती।

Meaning: Do not associate with fools, who cannot be purified by fire. They are like the fruit of a banana, a shell, or a snake's mouth; a single drop is their worth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मूर्खों के साथ संगति करने के खतरों को उजागर किया है। उन्होंने कहा है कि मूर्ख व्यक्ति किसी भी सुधार या शुद्धि के योग्य नहीं होते और उनकी संगति से केवल हानि होती है। इस प्रकार, उनके साथ समय बर्बाद करना उचित नहीं है।


हरिजन सेती रुसणा, संसारी सूँ हेत।
ते णर कदे न नीपजौ, ज्यूँ कालर का खेत।।१९६।।

अर्थ: भक्तों के प्रति क्रोध और संसारिक लोगों के प्रति स्नेह कभी भी संतोषजनक परिणाम नहीं देते, जैसे कि एक बंजर खेत।

Meaning: Anger towards the devotees and affection towards worldly people never leads to fulfillment, just like a barren field.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसारिक और आध्यात्मिक संबंधों के महत्व को दर्शाया है। उन्होंने बताया है कि यदि किसी के भीतर भक्तों के प्रति क्रोध और संसारिक लोगों के प्रति स्नेह हो, तो वह कभी भी पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता। यह स्थिति एक बंजर खेत की तरह होती है, जो कभी भी उपज नहीं देता।


काजल केरी कोठड़ी, तैसी यहु संसार।
बलिहारी ता दास की, पैसिर निकसण हार।।१९७।।

अर्थ: यह संसार काजल से भरी कोठरी की तरह है। मैं उस दास का सम्मान करता हूँ जो इस भ्रम को पार करके विजयी होता है।

Meaning: This world is like a room filled with kajal (black dye). I am devoted to the servant who sees beyond the illusion and emerges victorious.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार की झूठी छवि को काजल की कोठरी से जोड़ा है। उन्होंने बताया है कि यह दुनिया भ्रामक और अंधकारपूर्ण है, और केवल वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है जो इस भ्रामक स्थिति को पार कर लेता है। कबीर ने सच्ची समझ और दृष्टि के महत्व को दर्शाया है।


पाणी हीतै पातला, धुवाँ ही तै झीण।
पवनां बेगि उतावला, सो दोस्त कबीर कीन्ह।।१९८।।

अर्थ: पानी जब लाभकारी होता है तो पतला होता है, धुआँ गर्म होने पर पतला होता है। तेज चलने वाली हवा कबीर का मित्र है।

Meaning: Water is thin when it is beneficial, smoke is thin when it is hot. The fast-moving wind is a friend to Kabir.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने विभिन्न तत्वों की विशेषताओं को सरलता से समझाया है। उन्होंने बताया है कि जैसे पानी और धुआँ अपनी स्थिति के अनुसार बदलते हैं, वैसे ही जीवन की सच्चाई को समझना और स्वीकारना चाहिए। कबीर ने इसे मित्रता और सहयोग के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है।


आसा का ईंधण करूँ, मनसा करूँ बिभूति।
जोगी फेरी फिल करूँ, यौं बिनना वो सूति।।१९९।।

अर्थ: मैं आशा को ईंधन और इच्छा को संपत्ति के रूप में उपयोग करता हूँ। एक योगी भ्रमण करता है और खोज करता है, लेकिन बिना इस सब के वह सोया रहता है।

Meaning: I use hope as fuel and desire as wealth. A yogi wanders and seeks, yet without this, they remain asleep.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आध्यात्मिक साधना की गहराई को उजागर किया है। उन्होंने बताया है कि आशा और इच्छा साधना के लिए आवश्यक ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करती हैं। एक योगी, जो निरंतर भटकता है और खोज करता है, जब तक कि वह इन तत्वों को नहीं समझता, तब तक वह जागरूकता की स्थिति में नहीं पहुँच सकता।


सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान।
निरगुन सरगुन के परे, तहीं हमारा ध्यान।।२००।।

अर्थ: प्रस्तुत रूप की सेवा करो, और निराकार के ज्ञान को प्राप्त करो। साकार और निराकार के परे, हमारा ध्यान वहाँ होना चाहिए।

Meaning: Serve the manifest form of God, and gain knowledge of the formless. Beyond the manifest and formless, our focus should be.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने साकार और निराकार दोनों रूपों के महत्व को बताया है। उन्होंने कहा कि भौतिक रूप की सेवा करनी चाहिए, जबकि निराकार के ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए। अंततः, साकार और निराकार के पार, वास्तविक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।