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संत कबीर जी के दोहे — 1001 to 1050

सीखै सुनै विचार ले, ताहि शब्‍द सुख देय।
बिना समझै शब्‍द गहै, कछु न लोहा लेय।।१००१।।

अर्थ: सीखने, सुनने और समझने से शब्दों से सुख प्राप्त होता है। लेकिन बिना समझे केवल शब्दों को दोहराने से कुछ भी हासिल नहीं होता।

Meaning: Learning, listening, and understanding bring joy from the words. But without understanding, mere repetition of words brings no gain.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी सच्चे ज्ञान और समझ की बात करते हैं। वह कहते हैं कि यदि हम सीखने, सुनने और समझने की प्रक्रिया अपनाते हैं, तो हमें शब्दों से सुख मिलता है, लेकिन बिना समझ के केवल शब्दों को दोहराने से कोई लाभ नहीं होता। यह दोहा हमें सच्ची समझ और ज्ञान की दिशा में प्रेरित करता है।


काल फिरै सिर ऊपरै, जीवहि नजरि न आय।
कहैं कबीर गुरु शब्‍द गहि, जम से जीव बचाय।।१००२।।

अर्थ: मृत्यु सिर पर मंडराती है, लेकिन जीव इसे देख नहीं पाता। कबीर कहते हैं, गुरु के शब्द को पकड़ कर रखो, यह जीव को मृत्यु से बचाता है।

Meaning: Death hovers above, unseen by the living. Kabir says, hold on to the guru's word, it saves the soul from death.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी मृत्यु के निकट होने और गुरु के शब्द की महत्ता को बताते हैं। वह कहते हैं कि मृत्यु हमेशा सिर पर मंडराती रहती है, लेकिन जीव इसे देख नहीं पाता। इसलिए कबीर कहते हैं कि हमें गुरु के शब्द को पकड़ कर रखना चाहिए, क्योंकि वही हमें मृत्यु से बचा सकता है। यह दोहा हमें गुरु भक्ति और उनके उपदेशों के प्रति आस्था रखने की प्रेरणा देता है।


जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोय।
सार शब्‍द जानै बिना, कागा हंस न होय।।१००३।।

अर्थ: सभी जंत्र और मंत्र झूठे हैं, दुनिया के भ्रम में मत पड़ो। शब्द के सार को जाने बिना, कौआ हंस नहीं बन सकता।

Meaning: All charms and spells are false, don't be deluded by the world. Without knowing the essence of the word, a crow cannot become a swan.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी जंत्र-मंत्र और अंधविश्वासों के प्रति आगाह करते हैं। वह कहते हैं कि सभी जंत्र-मंत्र झूठे हैं और हमें दुनिया के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। बिना शब्द के सार को समझे, कौआ कभी हंस नहीं बन सकता। यह दोहा हमें सच्चे ज्ञान और समझ की ओर प्रेरित करता है, जो हमें अंधविश्वासों से मुक्त कर सकता है।


कर्म फंद जग फंदिया, जप तप पूजा ध्‍यान।
जाहि शब्‍द ते मुक्ति होय, सो न परा पहिचान।।१००४।।

अर्थ: यह संसार कर्म, जप, तप, पूजा, ध्यान के जाल में फंसा हुआ है। वे उस शब्द को पहचानने में असफल रहते हैं जो मुक्ति दिलाता है।

Meaning: The world is trapped in the snares of karma, rituals, and meditation. They fail to recognize the word that leads to liberation.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी कर्म, जप, तप, पूजा और ध्यान के जाल में फंसे हुए लोगों की दशा बताते हैं। वह कहते हैं कि लोग इन सब में उलझे रहते हैं और उस शब्द को पहचानने में असफल रहते हैं जो वास्तव में मुक्ति दिला सकता है। यह दोहा हमें कर्मकांड और बाहरी अनुशासन की बजाय सच्चे ज्ञान की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है।


शब्‍द जु ऐसा बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।।१००५।।

अर्थ: ऐसे शब्द बोलो जिससे मन का अहंकार समाप्त हो जाए। अपने शब्दों से दूसरों को शीतल बनाओ, और स्वयं भी शांत हो जाओ।

Meaning: Speak words in such a way that the ego of the mind is lost. Let your words soothe others, and you too will become serene.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी शब्दों की शक्ति और अहंकार को समाप्त करने की बात करते हैं। वह कहते हैं कि हमें ऐसे शब्द बोलने चाहिए जो हमारे मन के अहंकार को समाप्त कर दें। यदि हम अपने शब्दों से दूसरों को शांत और सुखी बनाएं, तो हम भी स्वयं शांत और शीतल हो जाएंगे। यह दोहा हमें अहंकार को त्यागने और शांति की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।


जिहि शब्‍दे दुख ना लगे, सोई शब्‍द उचार।
तपत मिटी सीतल भया, सोई शब्‍द ततसार।।१००६।।

अर्थ: ऐसे शब्द बोलो जो दुख न पहुँचाएं। जो शब्द तप को शीतल बना दे, वही सत्य का सार है।

Meaning: Speak words that do not cause pain. The word that cools down the heat is the essence of truth.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दास जी ऐसे शब्दों की बात करते हैं जो किसी को दुख न पहुँचाएं। वह कहते हैं कि जो शब्द तप (गर्मी) को शीतल बना देते हैं, वही सत्य का सार है। यह दोहा हमें सत्यमेव जयते की ओर प्रेरित करता है और यह सिखाता है कि शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए ताकि वे दूसरों को दुख न पहुँचाएं।


कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठा शब्‍द सुनाय के, जग अपनो करि लेत।।१००७।।

अर्थ: कौवा किसका धन चुराता है, और कोयल किसको देती है? मीठे शब्द सुनाकर, दुनिया को अपना बना लेता है।

Meaning: Who does the crow rob? Whom does the cuckoo give? By speaking sweet words, one wins over the world.

व्याख्या: इस दोहे में संत कबीर कहते हैं कि जैसे कौवा किसी का धन नहीं चुराता और कोयल किसी को धन नहीं देती, वैसे ही मीठे शब्दों का अपना कोई धन नहीं होता, लेकिन ये शब्द इतनी शक्ति रखते हैं कि इनसे पूरा जग जीत लिया जा सकता है।


शब्‍द पाय सुरति राखहि, सो पहुंच दरबार।
कहैं कबीर तहां देखिये, बैठा पुरुष हमार।।१००८।।

अर्थ: जो भी व्यक्ति शब्द का स्मरण करता है, वह ईश्वरीय दरबार तक पहुंच जाता है। कबीर कहते हैं, वहां हमारे सच्चे गुरु बैठे हुए मिलेंगे।

Meaning: One who keeps the word in mind reaches the divine court. Kabir says, there you will see our true master seated.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर इस बात पर जोर देते हैं कि जो भी व्यक्ति ईश्वर के शब्द या नाम का ध्यान रखता है, उसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और वह अंत में उस दिव्य दरबार में पहुंचता है जहां भगवान के दर्शन होते हैं।


शब्‍द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल।
हीरा तो दामों मिलैं, सब्‍दहि मोल न तोल।।१००९।।

अर्थ: जो कोई सही बोलने की कला जानता है, उसके लिए शब्द से बड़ा कोई धन नहीं है। हीरे तो कीमत देकर खरीदे जा सकते हैं, लेकिन शब्दों की कोई कीमत नहीं होती।

Meaning: There is no wealth equal to the word, for those who know how to speak. Diamonds can be bought for a price, but words are priceless.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह समझा रहे हैं कि शब्दों की शक्ति अनमोल होती है। जो व्यक्ति बोलने की कला को जानता है, उसके लिए शब्द सबसे बड़ा धन होता है। हीरे-मोती की कीमत लग सकती है, लेकिन शब्दों की तुलना किसी भी धन से नहीं की जा सकती।


सन्‍त सन्‍तोषी सर्वदा, शब्‍दहिं भेद विचार।
सतगुरु के परताप ते, सहज सील मतसार।।१०१०।।

अर्थ: सच्चा संत हमेशा संतुष्ट रहता है और शब्दों की गहराई को समझता है। सच्चे गुरु की कृपा से सहज ही शील और पवित्रता प्राप्त होती है।

Meaning: A true saint is always content, understanding the depth of words. By the grace of the true guru, one attains a simple, virtuous, and pure essence.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि एक संत जो हमेशा संतोषी रहता है, वह शब्दों के सही अर्थ को समझता है। और यह संतोष और समझ उसे सच्चे गुरु की कृपा से मिलती है, जिससे वह एक सरल, शीलवान और पवित्र जीवन जीता है।


जिभ्‍या जिन बिस में करी, तिन बस कियो जहान।
नहिं तो औगुन ऊपजे, कहि सब संत सुजान।।१०११।।

अर्थ: जिन्होंने अपनी जीभ को नियंत्रित किया, उन्होंने पूरे संसार को अपने वश में कर लिया। अन्यथा, अवगुण पैदा हो जाते हैं, जैसा कि सभी ज्ञानी संत कहते हैं।

Meaning: Those who control their tongue, control the world. Otherwise, vices arise, as all wise saints say.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर इस बात पर जोर देते हैं कि जिसने अपनी वाणी को नियंत्रित कर लिया, उसने संसार को जीत लिया। वाणी का संयम न होने पर इंसान के भीतर अवगुण पनपने लगते हैं, जैसा कि सभी संतों का कहना है।


लागी लागी क्‍या करै, लागत रही लगार।
लागी तबही जानिये, निकसी जाय दुसार।।१०१२।।

अर्थ: जब तक लगाव बना रहता है, तब तक इच्छा क्या कर सकती है? सच्ची इच्छा तभी जानी जाती है जब अन्य सभी लगाव समाप्त हो जाते हैं।

Meaning: What can desire do, as long as attachment remains? True desire is known only when other attachments leave.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बताते हैं कि जब तक किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से लगाव बना रहता है, तब तक सच्ची लगन या भक्ति पैदा नहीं हो सकती। सच्ची लगन तभी प्रकट होती है जब सारे सांसारिक लगाव खत्म हो जाते हैं।


हरिजन सोई जानिये, जिह्वा कहैं न मार।
आठ पहर चितवन रहै, गुरु का ज्ञान विचार।।१०१३।।

अर्थ: उस व्यक्ति को भगवान का भक्त समझो, जो अपनी वाणी से किसी को आहत नहीं करता। वह दिन-रात गुरु की शिक्षाओं में लीन रहता है।

Meaning: Know that person as a devotee of the Lord, who doesn't hurt anyone with their words. They remain immersed in the guru's teachings day and night.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सच्चे भक्त की पहचान बताते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी वाणी से किसी को दुख नहीं पहुंचाता और हर समय गुरु की शिक्षा में डूबा रहता है, वही सच्चा हरिजन या भक्त है।


टीला टीली ढाहि के, फोरि करै मैदान।
समझ सका करता चलै, सोई शब्‍द निरबान।।१०१४।।

अर्थ: पहाड़ियों को ढहाकर और मैदान को समतल करके, जो व्यक्ति सृष्टिकर्ता को समझता है, वही मुक्ति के मार्ग पर चलता है।

Meaning: Breaking down the hills and leveling the field, one who understands the creator walks the path of liberation.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि जब व्यक्ति अपने अहंकार और अन्य मानसिक बाधाओं को समाप्त कर देता है, तभी वह सच्चे ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है।


शब्‍द दुराया ना दुरै, कहूं जु ढोल बजाय।
जो जन होवै जौहरी, लेहैं सीस चढ़ाय।।१०१५।।

अर्थ: शब्दों को छुपाया नहीं जा सकता, चाहे कोई ढोल बजाकर उन्हें प्रचारित करे। सच्चा जानकार व्यक्ति हमेशा उनका आदर करेगा।

Meaning: Words cannot be hidden, even if one beats a drum. A true connoisseur will always hold them in high regard.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर समझाते हैं कि सत्य और ज्ञान को दबाया नहीं जा सकता, चाहे कोई उसे छुपाने की कितनी भी कोशिश करे। सच्चे जौहरी या ज्ञानी व्यक्ति इसे पहचान कर उसका सम्मान करेंगे।


शब्‍द शब्‍द सब कोय कहै, शब्‍द का करो विचार।
एक शब्‍द शीतल करै, एक शब्‍द दे जार।।१०१६।।

अर्थ: सभी लोग शब्द कहते हैं, लेकिन उनके अर्थ पर विचार करो। एक शब्द शीतलता दे सकता है, जबकि दूसरा जला सकता है।

Meaning: Everyone speaks words, but reflect on their meaning. One word can cool, while another can burn.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में शब्दों की शक्ति का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि शब्दों का सही अर्थ और उपयोग समझना जरूरी है, क्योंकि एक शब्द सुकून दे सकता है जबकि दूसरा दुख का कारण बन सकता है। इसलिए शब्दों को सोच-समझकर बोलना चाहिए।


रैन तिमिर नासत भयो, जबही भानु उगाय।
सार शब्‍द के जानते, करम भरम मिटि जाय।।१०१७।।

अर्थ: जैसे ही सूर्य उगता है, रात का अंधकार मिट जाता है, वैसे ही सार शब्द को जानने से कर्मों के भ्रम दूर हो जाते हैं।

Meaning: Just as the darkness of night disappears when the sun rises, knowing the essence of the word dispels the illusions of karma.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि जैसे सूर्य के उगने पर रात का अंधकार खत्म हो जाता है, वैसे ही सार शब्द के ज्ञान से कर्मों के भ्रम दूर हो जाते हैं। इसका मतलब है कि सच्चे ज्ञान और ध्यान से सभी भ्रम और दोष समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा प्रकाशमय हो जाती है।


सहज तराजू आनि कै, सब रस देखा तोलि।
सब रस माहीं जीभ रस, जु कोय जानै बोलि।।१०१८।।

अर्थ: सरलता का तराजू लाकर, सभी रसों को तौला गया। सभी रसों में, जीभ का रस सबसे उत्तम है, जो बोलने की कला जानता है।

Meaning: Bringing the scale of simplicity, all tastes were weighed. Among all tastes, the taste of the tongue is the best for those who know how to speak.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सरलता और सही बोलने के महत्व पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि सभी रसों (स्वादों) को तौलने के बाद, बोलने की कला में निपुण व्यक्ति के लिए जीभ का रस सबसे महत्वपूर्ण है। इससे तात्पर्य है कि सही वाणी का महत्व सभी चीजों से ऊपर है।


मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार।
हते पराई आतमा, जीभ बांधि तलवार।।१०१९।।

अर्थ: जो भी मुख से आता है, बिना सोचे समझे कह देते हैं। वे अपनी जीभ को तलवार की तरह इस्तेमाल करके दूसरों की आत्मा को चोट पहुँचाते हैं।

Meaning: One speaks whatever comes to their mouth, without thinking. They hurt others' souls as if their tongue were a sword.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर बिना सोच-विचार के बोलने के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। वे कहते हैं कि जो भी बात मन में आती है, बिना सोचे बोल देने से वह वाणी तलवार की तरह घातक हो जाती है और दूसरों को आघात पहुँचाती है। इसलिए, वाणी पर संयम रखना आवश्यक है।


शब्‍द न करै मुलाहिजा, शब्‍द फिरै चह धार।
आपा पर जब चीन्हिया, तब गुरु सिष व्‍यवहार।।१०२०।।

अर्थ: शब्द दया नहीं दिखाते, वे चार धारी तलवार की तरह होते हैं। जब कोई खुद को समझता है, तभी गुरु और शिष्य का सही संबंध स्थापित होता है।

Meaning: Words do not show mercy, they cut like a sharp sword. When one understands oneself, then the relationship between guru and disciple is established.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह समझाते हैं कि शब्दों की शक्ति तलवार की तरह होती है, जो बिना दया किए वार करती है। सही गुरु-शिष्य संबंध तभी बनता है, जब व्यक्ति पहले स्वयं को समझ लेता है और अपने शब्दों का सही उपयोग करता है।


शब्‍द खांजि मन बस कर, सहज जोग है येह।
सत्त शब्‍द निज सार है, यह तो झूठी देह।।१०२१।।

अर्थ: शब्द को अपने मन में बसा लो, यही सच्चा योग है। सत्य शब्द ही वास्तविक सार है, जबकि यह शरीर तो झूठा है।

Meaning: Make the word dwell in your mind, this is the true yoga. The true word is the essence, while this body is false.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सही योग और आत्मा के महत्व की बात करते हैं। वे कहते हैं कि सच्चा योग वही है जब शब्द मन में स्थापित हो जाता है। इस सच्चे शब्द को पहचानना ही असली सार है, जबकि शरीर को माया के कारण झूठा माना गया है।


जिह्वा में अमृत बसै, जो कोई जानै बोल।
विष बासुकि का ऊतरे, जिह्वा तनै हिलोल।।१०२२।।

अर्थ: जो बोलने की कला जानता है, उसकी जीभ पर अमृत का वास होता है। यहां तक कि सर्प के विष को भी समझदार वाणी से समाप्त किया जा सकता है।

Meaning: Nectar resides on the tongue of one who knows how to speak. Even the poison of the serpent can be overcome with a wise tongue.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि बोलने की सही कला को जानने वाले व्यक्ति की वाणी में अमृत होता है। यह अमृत इतना शक्तिशाली होता है कि वह विषैले से विषैले पदार्थ को भी नष्ट कर सकता है। इसका अर्थ है कि सही वाणी और ज्ञान हर विषमता को दूर कर सकते हैं।


कबीर सार शब्‍द निज जानि के, जिन कीन्‍ही परतीति।
काग कुमत तजि हंस ह्वै, चले सु भौजल जीति।।१०२३।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, जिन्होंने सार शब्द को जान लिया और उस पर विश्वास किया, वे कौवे की मानसिकता छोड़कर हंस बन जाते हैं और जीवन के सागर को पार कर जाते हैं।

Meaning: Kabir says, those who realize the essence of the word and have faith, leave the crow's mentality and become swans, crossing the ocean of life.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर समझाते हैं कि जो व्यक्ति सार शब्द को पहचान कर उस पर विश्वास करता है, वह अपनी नकारात्मक मानसिकता (काग) छोड़कर हंस (सकारात्मकता) की तरह जीवन के कठिनाइयों को पार कर जाता है। यह सच्चे ज्ञान और विश्वास के माध्यम से ही संभव होता है।


शब्‍द सम्‍हारे बोलिये, शब्‍द के हाथ न पांव।
एक शब्‍द औषधि करे, एक शब्‍द करे घाव।।१०२४।।

अर्थ: शब्दों को सोच-समझकर बोलो, क्योंकि उनके हाथ-पांव नहीं होते। एक शब्द औषधि का काम कर सकता है, जबकि दूसरा घाव कर सकता है।

Meaning: Speak words carefully, as they have neither hands nor feet. One word can heal like medicine, while another can wound like a weapon.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर शब्दों की शक्ति और प्रभाव का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि शब्दों का कोई शारीरिक आकार नहीं होता, लेकिन उनका प्रभाव इतना गहरा होता है कि एक शब्द किसी को ठीक कर सकता है और दूसरा घाव कर सकता है। इसलिए, शब्दों को सोच-समझकर बोलना चाहिए।


शब्‍द गुरु का शब्‍द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्‍द की, सत्‍गुरु यौं समुझाय।।१०२५।।

अर्थ: शब्द गुरु का शब्द है, और यह शरीर गुरु का शरीर है। सच्चे गुरु के उपदेश के अनुसार, हमें हमेशा शब्द की भक्ति करनी चाहिए।

Meaning: The word is the guru's word, and the body is the guru's body. One should constantly worship the word, as the true guru teaches.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर गुरु और शब्द की महिमा का बखान करते हैं। वे कहते हैं कि शब्द ही गुरु का प्रतिनिधित्व करता है और यह शरीर भी गुरु का ही स्वरूप है। सच्चे गुरु के उपदेश को मानते हुए हमें सदैव शब्द की भक्ति करनी चाहिए, क्योंकि यही सच्ची भक्ति है।


शब्‍द उपदेस जु मैं कहुँ, जु कोय मानै संत।
कहै कबीर विचारि के, ताहि मिलावौं कंत।।१०२६।।

अर्थ: जो शब्द उपदेश मैं देता हूँ, अगर कोई संत उसे स्वीकार करता है, तो कबीर कहते हैं, उसे अच्छी तरह से विचार कर मैं उसे परमात्मा से मिलवा दूँगा।

Meaning: The teaching of the word that I give, if any saint accepts it, says Kabir, after careful reflection, I will unite them with the Divine.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर अपने उपदेशों की सच्चाई पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जो संत उनके शब्दों को समझकर स्वीकार करते हैं, वे उन्हें परमात्मा से मिलवा देंगे। इसका अर्थ है कि सही मार्गदर्शन और उपदेश को अपनाकर व्यक्ति ईश्वर से मिल सकता है।


बोलै बोल विचारि के, बैठे ठौर संभारि।
कहैं कबीर ता दास को, कबह न आवै हारि।।१०२७।।

अर्थ: बोलने से पहले विचार करो और सही जगह बैठकर अपने कर्तव्यों का पालन करो। कबीर कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति कभी हार नहीं मानता।

Meaning: Speak only after careful thought, and act with caution. Kabir says, such a servant of God never faces defeat.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर वाणी और कर्म दोनों में संयम और विचारशीलता का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति सोच-समझकर बोलता है और स्थिर होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वह जीवन में कभी हार का सामना नहीं करता। संयम और सावधानी से किया गया कार्य ही सच्ची विजय का मार्ग है।


एक शब्‍द सुख खानि है, एक शब्‍द दुख रासि।
एक शब्‍द बन्‍धन काटै, एक शब्‍द गल फांसि।।१०२८।।

अर्थ: एक शब्द सुख का स्रोत हो सकता है, और दूसरा दुःख का कारण। एक शब्द बंधन तोड़ सकता है, और दूसरा फांसी का फंदा बना सकता है।

Meaning: One word can be a source of joy, and another a cause of sorrow. One word can break bonds, and another can ensnare the neck.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर शब्दों की ताकत और उनके प्रभाव की बात करते हैं। वे कहते हैं कि शब्दों का सही उपयोग व्यक्ति के जीवन में सुख और शांति ला सकता है, जबकि गलत शब्द दुःख और कष्ट का कारण बन सकते हैं। इसी तरह, एक शब्द रिश्तों और बंधनों को मजबूत कर सकता है, जबकि दूसरा उन्हें तोड़ सकता है। इसलिए, शब्दों का बहुत सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए।


जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय।
मरना पह‍िले जो मरै, अजर अमर सो होय।।१०२९।।

अर्थ: जीवन में मरना अच्छा है, अगर कोई मरने की कला जानता हो। जो मृत्यु से पहले मर जाता है, वह अजर-अमर हो जाता है।

Meaning: It is better to die while living, if one knows how. One who dies before death, becomes eternal and immortal.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर आध्यात्मिक मृत्यु की बात कर रहे हैं, जिसमें व्यक्ति अपने अहंकार, इच्छाओं और माया से मुक्त हो जाता है। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति जीते-जी अपने अंदर की नकारात्मकता को समाप्त कर लेता है, वह अजर-अमर हो जाता है। इसका मतलब है कि वह व्यक्ति मृत्यु के बाद भी अमर रहता है, क्योंकि उसने जीवन की सच्ची समझ प्राप्त कर ली है।


मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्‍वास।
साधु तहां लौं भय करे, जौ लौ पिंजर सांस।।१०३०।।

अर्थ: मन को मृत समझकर उस पर विश्वास न करो। जब तक शरीर में सांस है, संत हमेशा सतर्क रहता है।

Meaning: Seeing the mind as dead, do not trust it. The saint remains cautious as long as there is breath in the body.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर मन और शरीर की नश्वरता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि मन को कभी भी पूरी तरह से नियंत्रित या मरा हुआ नहीं मानना चाहिए। जब तक शरीर में सांस है, तब तक साधु (सच्चा साधक) सतर्क रहता है और मन की चालबाजियों से बचकर चलता है। इस प्रकार वह माया के बंधनों से मुक्त रहता है।


जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय।
काया माया मन तजै, चौडे़ रहा बजाय।।१०३१।।

अर्थ: जब तक शरीर की आशा बनी रहती है, तब तक व्यक्ति मृत नहीं होता। जब शरीर, माया और मन की इच्छाओं का त्याग कर दिया जाता है, तब ही सच्ची मुक्ति प्राप्त होती है।

Meaning: As long as there is attachment to the body, one is not truly dead. When one renounces body, illusion, and mind, they achieve true liberation.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सच्ची मुक्ति के मार्ग की बात करते हैं। वे कहते हैं कि जब तक शरीर और उसकी इच्छाओं के प्रति आसक्ति है, तब तक व्यक्ति मृत नहीं माना जा सकता। सच्ची मुक्ति तब ही प्राप्त होती है जब व्यक्ति शरीर, माया और मन की आसक्तियों को पूरी तरह त्याग देता है और सत्य के मार्ग पर चलता है।


जीवत मिरतक होय रहै, तजै खलक की आस।
रच्‍छक समरथ सद्गुरु, मति दुख पावै दास।।१०३२।।

अर्थ: जीवित रहते हुए भी मृतक के समान रहना, लोक-लाज और आसक्ति का त्याग करना, और सच्चे गुरु को रक्षक मानना, ऐसा दास कभी दुख नहीं पाता।

Meaning: Living as though dead, renouncing worldly desires, and trusting the true Guru as protector, the servant never suffers.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि जो व्यक्ति जीते-जी अपनी इच्छाओं और आसक्तियों को त्यागकर संसार से निर्लिप्त हो जाता है और सच्चे गुरु को अपना रक्षक मानता है, वह कभी भी दुखों का सामना नहीं करता। इस प्रकार का आत्मसमर्पण और विश्वास ही उसे सच्ची शांति और आनंद की प्राप्ति कराता है।


पांचों इन्द्रिय छठा मन, सम संगत सूचंत।
कहैं कबीर जग क्‍या करे, सातों गांठ निश्चिन्‍त।।१०३३।।

अर्थ: पांचों इन्द्रियां और मन मिलकर छह होते हैं, और सही संगति में रहने से, कबीर कहते हैं, सातों गांठें चिंता मुक्त हो जाती हैं।

Meaning: The five senses and the mind together make six, with the right company, Kabir says, the seven knots become free of worries.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि पांच इन्द्रियों और मन का संयम और सही संगति में रहना महत्वपूर्ण है। जब व्यक्ति सही संगति और सत्संग में रहता है, तो उसकी सभी इच्छाएं और मानसिक बाधाएं समाप्त हो जाती हैं, और वह चिंता मुक्त हो जाता है। यह सात गांठों का खुलना है, जिसका अर्थ है मानसिक और आध्यात्मिक मुक्ति।


भक्‍त मरे क्‍या रोइये, जो अपने घर जाय।
रोइये साकट बापुरे, हाटों हाट बिकाय।।१०३४।।

अर्थ: भक्त के मरने पर क्यों रोना, क्योंकि वह अपने घर चला जाता है। रोना चाहिए उस अभागे साकट (अविश्वासी) के लिए, जो संसार के बाजार में बिक जाता है।

Meaning: Why weep when a devotee dies, for they return home. Weep for the unfortunate non-believer, who is sold in the marketplace of the world.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर मृत्यु के बाद की स्थिति का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि जब एक सच्चा भक्त मरता है, तो वह अपने असली घर, यानी ईश्वर के पास लौट जाता है, इसलिए उसके लिए रोने की जरूरत नहीं है। बल्कि, उस व्यक्ति के लिए रोना चाहिए जो इस संसार के मोह में फंसा रहता है और अपनी आत्मा को संसार की माया में बेच देता है।


अजहूं तेरा सब मिटै, जो जग मानै हार।
घर में झगरा होत है, सो घर डारो जार।।१०३५।।

अर्थ: अब भी तुम सब कुछ जीत सकते हो, अगर तुम संसार में हार मान लेते हो। यदि तुम्हारे घर में झगड़ा हो रहा है, तो उसे जला दो और छोड़ दो।

Meaning: Even now you can overcome everything if you accept defeat in the world. If there is conflict in your house, burn it down and leave.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि यदि व्यक्ति संसार के झगड़ों और मोह-माया को छोड़ने का साहस करता है, तो वह अभी भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है। घर का झगड़ा सांसारिक बंधनों और परेशानियों का प्रतीक है, और उसे जलाकर छोड़ देना यानी उससे मुक्त होना ही सच्चा मार्ग है।


मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ।
जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ।।१०३६।।

अर्थ: मैंने अपना घर जला दिया है, मशाल हाथ में लेकर। जो अपना घर जलाते हैं, वे मेरे साथ चलें।

Meaning: I have burned my house, taking the torch in hand. Those who burn their own house, come with me.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर माया, अहंकार और सांसारिक इच्छाओं के त्याग की बात करते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने अपने घर (अहंकार और मोह-माया) को जला दिया है और जो लोग भी ऐसा कर सकते हैं, वे उनके साथ चल सकते हैं। यहां घर जलाने का अर्थ सांसारिक बंधनों और इच्छाओं को त्यागना है, जो आत्मा की स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।


मैं जानूं मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत।।१०३७।।

अर्थ: मैंने सोचा कि मेरा मन मर गया और भूत बन गया। लेकिन मरने के बाद, वह फिर से उठ खड़ा हुआ, जैसे मेरा अपना पुत्र।

Meaning: I thought my mind was dead and became a ghost. But after dying, it arose again, just like my own child.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर मन की प्रकृति का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि मन को मारना आसान नहीं है। भले ही हम सोचें कि हमने मन को मार दिया है, लेकिन वह फिर से उठ खड़ा होता है और हमें फिर से भटकाने लगता है। यह मन की स्वाभाविकता है, जिसे बार-बार नियंत्रित करना पड़ता है।


शब्‍द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल।
काम क्रोध व्‍यापै नहीं, कबहूं न ग्रासै काल।।१०३८।।

अर्थ: जो लोग शब्द का विचार करते हुए चलते हैं और गुरु के साथ एकरूप होते हैं, वे धन्य होते हैं। उन्हें काम और क्रोध प्रभावित नहीं करते, और मृत्यु उन्हें कभी नहीं निगल पाती।

Meaning: Those who walk with consideration of the word and are aligned with the Guru, are blessed. Lust and anger do not affect them, and death never consumes them.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर बताते हैं कि जो लोग गुरु के मार्गदर्शन में रहते हैं और शब्द (सत्संग, उपदेश) का विचार करते हुए अपने जीवन को जीते हैं, वे सभी प्रकार की नकारात्मक भावनाओं से मुक्त रहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति पर काम, क्रोध और मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और वे सदैव आनन्दित रहते हैं।


सुर सती का सहज है, घड़ी इक का घमसान।
मरै न जीवै मरजिवा, धमकत रहे मसान।।१०३९।।

अर्थ: सच्चे संत की स्थिति स्वाभाविक होती है, लेकिन कभी-कभी वह क्षणिक रूप से अशांत हो जाती है। न तो पूरी तरह से मृत और न ही जीवित, वे श्मशान के आसपास मंडराते रहते हैं।

Meaning: The state of a true saint is natural, but it can be turbulent for a moment. Neither fully dead nor alive, they hover around the cremation ground.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर सच्चे साधक के जीवन की स्थिति का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि सच्चे संत का जीवन स्वाभाविक रूप से शांत होता है, लेकिन कभी-कभी वह अशांत हो सकता है। ऐसा साधक न तो पूरी तरह से मरा हुआ होता है और न ही जीवित, और वह हमेशा जीवन और मृत्यु के बीच की स्थिति में रहता है। यह स्थिति साधना के उन्नत चरण का संकेत है।


कबीर मिरतक देखकर, मति धारो विश्‍वास।
कबहूं जागै भूत ह्वे, करै पिंड का नाश।।१०४०।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, मृतक पर विश्वास न करो, क्योंकि वह भूत के रूप में जाग सकता है और शरीर का नाश कर सकता है।

Meaning: Kabir says, do not trust a dead person as they might wake up as a ghost and destroy the body.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर चेतावनी देते हैं कि हमें मृत शरीर पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी मरा हुआ व्यक्ति भी भूत के रूप में जाग सकता है और नुकसान पहुंचा सकता है। यह दोहा मन और उसकी चंचलता का प्रतीक है, जो हमेशा जागरूक रहने की आवश्यकता को बताता है।


आस पास जोधा खड़े, सबे बजावै गाल।
मंझ महल ते ले चला, ऐसा परबत काल।।१०४१।।

अर्थ: चारों ओर योद्धा खड़े हैं, जो जोर-जोर से अपनी शान बघार रहे हैं। लेकिन जब काल (मृत्यु) आता है, तो वह उन्हें उनके महल से उठा ले जाता है।

Meaning: Warriors stand all around, all boasting loudly. But when Death arrives, he takes them away from their palaces.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर मनुष्य की मृत्यु के अटल सत्य की बात करते हैं। वे कहते हैं कि चाहे कोई कितना भी बलशाली या शक्तिशाली क्यों न हो, जब काल (मृत्यु) का समय आता है, तो वह उसे उसकी शान-शौकत और महलों से उठा ले जाता है। यह दोहा हमें मृत्यु के अटल सत्य की याद दिलाता है।


जरा कुत्ता जोबन ससा, काल अहेरी नित्त।
दो बैरी बिच झोंपड़ा, कुशल कहां सो मित्त।।१०४२।।

अर्थ: बुढ़ापा कुत्ते के समान है, जवानी खरगोश के समान है, और काल (मृत्यु) एक निरंतर शिकारी है। इन दो दुश्मनों के बीच झोपड़ी में, मित्र, सुरक्षा कहां है?

Meaning: Old age is like a dog, youth is like a rabbit, and Death is the constant hunter. In the hut between these two enemies, where is safety, friend?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की नश्वरता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि बुढ़ापा और जवानी दोनों ही जीवन के दुश्मन हैं, और काल (मृत्यु) हमेशा उन्हें शिकार करने के लिए तैयार रहता है। इन दोनों के बीच जीवन असुरक्षित है, और कबीर यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि सांसारिक जीवन में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।


पात झरन्‍ता देखि के, हंसती कूपलियां।
हम चाले तुम चालियो, धारी बापलियां।।१०४३।।

अर्थ: पत्तों को गिरते देखकर, कोंपलें हंस रही हैं। हम चले जा रहे हैं, और तुम्हें भी जाना होगा, प्यारी कोंपलें।

Meaning: Seeing the leaves fall, the buds laugh. We are leaving, and you will follow, dear buds.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन के चक्र का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि जब पुराने पत्ते गिरते हैं, तो नई कोंपलें उनके स्थान पर आती हैं और हंसती हैं, लेकिन उन्हें भी एक दिन गिरना है। यह जीवन के चक्र का प्रतीक है, जहां पुरानी पीढ़ी जाती है और नई पीढ़ी उसका स्थान लेती है।


काल पाय जग ऊपजो, काल पाय सब जाय।
काल पाय सब बिनसिहैं, काल काल कह खाय।।१०४४।।

अर्थ: इस संसार में हर चीज समय के साथ उत्पन्न होती है, और समय के साथ सब कुछ चला जाता है। समय के साथ सब कुछ नष्ट हो जाता है, और समय सब कुछ निगल जाता है।

Meaning: Everything in the world arises in time, and everything passes in time. In time, everything perishes, and time devours all.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर समय की अजेय शक्ति का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि इस संसार में हर चीज समय के साथ उत्पन्न होती है और समय के साथ ही नष्ट हो जाती है। समय ही सब कुछ खा जाता है, और यह सत्य है कि कोई भी समय के प्रभाव से बच नहीं सकता।


मैं अकेला वह दो जना, सेरी नाहीं कोय।
जो जम आगे ऊबरो, तो जरा बैरी होय।।१०४५।।

अर्थ: मैं अकेला हूँ, लेकिन वे दोनों (यम और जरा) साथ हैं; मेरे साथ कोई नहीं है। अगर मैं यमराज (मृत्यु) से बच निकलूं, तो बुढ़ापा मेरा शत्रु बन जाएगा।

Meaning: I am alone, but they are two; no one is on my side. If I can escape Yama (Death), then old age will be my enemy.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन और मृत्यु के संघर्ष का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि जीवन में व्यक्ति अकेला है, लेकिन उसके सामने मृत्यु (यम) और बुढ़ापा (जरा) जैसे दो शत्रु खड़े हैं। अगर व्यक्ति किसी तरह मृत्यु से बच भी जाए, तो बुढ़ापा उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। यह दोहा जीवन के संघर्ष और उसकी नश्वरता को दर्शाता है।


जो उगै सो आथवे, फूले सो कुम्‍ह‍िलाय।
जो चूनै सो ढहि पड़, जामै सो मरि जाय।।१०४६।।

अर्थ: जो कुछ उगता है, वह खिलने के बाद मुरझा जाता है। जो कुछ पकता है, वह अंततः गिर जाता है; जो कुछ जन्म लेता है, वह अंततः मर जाता है।

Meaning: Whatever sprouts, fades after blooming. Whatever ripens, eventually falls; whatever is born, ultimately dies.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन के अटल सत्य की बात करते हैं। वे कहते हैं कि इस संसार में जो भी जन्म लेता है, वह अंततः मुरझा जाता है, गिर जाता है, और मर जाता है। यह जीवन के नश्वर और अस्थायी होने का प्रतीक है, और हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए।


चाकी चली गुपाल की, सब जग पीसा झार।
रुड़ा शब्‍द कबीर का, डारा पाट उघार।।१०४७।।

अर्थ: गुपाल की चक्की पूरे जगत को पीसकर कचरा और अनाज को अलग करती है। कबीर के शब्द उस चक्की की जबड़ों को खोलने का काम करते हैं।

Meaning: The mill of Gopal grinds the entire world, separating the wheat from the chaff. The words of Kabir act as a block that opens the mill's jaws.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर दुनिया को चक्की के रूप में चित्रित करते हैं, जो सबको पीसती है। गुपाल (ईश्वर) उस चक्की को चला रहे हैं और कबीर के शब्द उस चक्की के चक्र को रोकने का काम करते हैं। यह संसार की नश्वरता और मोक्ष के लिए ज्ञान की आवश्यकता का प्रतीक है।


काल काल सब कोइ कहे, काल न चीन्‍हे कोय।
जेती मन की कल्‍पना, काल कहावै सोय।।१०४८।।

अर्थ: हर कोई काल (मृत्यु) की बात करता है, लेकिन कोई उसे समझता नहीं है। मन की जितनी भी कल्पनाएँ हैं, उन्हें ही काल कहा जाता है।

Meaning: Everyone talks about time (death), but no one truly understands it. Whatever is imagined by the mind is called time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर काल (मृत्यु) की वास्तविकता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि हर कोई काल की चर्चा करता है, लेकिन वास्तव में उसे समझने वाला कोई नहीं है। वे यह भी बताते हैं कि मन की कल्पनाएँ और इच्छाएँ ही काल का स्वरूप हैं, जो हमें भ्रम में डालती हैं।


काल फिरै सिर ऊपरे, हाथों धरी कमान।
कहैं कबीर गहु नाम को, छोड़ सकल अभिमान।।१०४९।।

अर्थ: मृत्यु आपके सिर पर तीर-कमान लिए मंडरा रही है। कबीर कहते हैं, भगवान के नाम को पकड़ लो और सारे अभिमान को छोड़ दो।

Meaning: Death hovers over your head with a bow in hand. Kabir says, hold onto the name (of God) and abandon all pride.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर हमें मृत्यु की अनिवार्यता की याद दिलाते हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु हमेशा हमारे सिर पर मंडरा रही है, और इसे टालना असंभव है। ऐसे में, हमें अहंकार को त्याग कर भगवान के नाम का सहारा लेना चाहिए, जिससे हमें शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके।


जाय झरोखे सोवता, फूलन सेज बिछाय।
सो अब कहूं दीखै नहीं, छिन में गयो बिलाय।।१०५०।।

अर्थ: जो व्यक्ति झरोखे में फूलों की सेज पर सो रहा था, वह अब कहीं नजर नहीं आता; वह पल भर में गायब हो गया।

Meaning: One who lay in the window, sleeping on a bed of flowers, is now nowhere to be seen; he vanished in an instant.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की क्षणभंगुरता की बात करते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति जीवन में सुख-भोग में लीन था, वह अचानक गायब हो गया, यानी मृत्यु ने उसे अपने पास बुला लिया। यह संसार की अस्थिरता और मृत्यु के अनिवार्य सत्य की ओर इशारा करता है।